विपुल रेगे। अभिनेता अरुण गोविल धारा 370 पर बनी एक फिल्म में नरेंद्र मोदी की भूमिका में दिखाई देने वाले हैं। ‘आर्टिकल 370’ नामक फिल्म को आदित्य सुहास जम्भाले ने निर्देशित किया है। फिल्म में दो प्रोडक्शन कंपनी का पैसा लगा है। इनमे से एक मुकेश अंबानी का जियो स्टूडियोज भी है। फिल्म का ट्रेलर आते ही मीडिया द्वारा स्तुतिगान शुरु कर दिया गया है। देश में आम चुनाव करीब है और ऐसे में इस फिल्म को रिलीज करना मतदाताओं को प्रभावित करने की कोशिश के रुप में देखा जा सकता है। फिल्म के ट्रेलर में नरेंद्र मोदी नामक कैरेक्टर उभारकर दिखाया जा रहा है। अब तक तो विश्व के सनातनी समाज के हृदय में अरुण गोविल श्री राम जैसे बसे हुए थे लेकिन इस फिल्म के बाद संभवतः उनकी ‘श्रीराम’ वाली इमेज हमेशा के लिए विदा ले लेगी।
देश में आम चुनाव होने जा रहे हैं। इन चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की साख दांव पर लगी है। दांव पर इसलिए लगी है कि देश के सामने ‘अबकी बार 400 पार’ का नारा बुलंद कर दिया गया है। 400 पार हो जाना काश इतना आसान होता। 2019 के चुनाव से इतर 2024 के आम चुनाव की तस्वीर बहुत अलग दिखाई देती है। अबकी बार भाजपा के बहुत से विश्वसनीय साथी उसके विरोधी हो चुके हैं। महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश के क्षत्रपों से प्रधानमंत्री के शीत युद्ध की ख़बरें सोशल मीडिया की छलनी से छनकर बाहर आती रही है। ये ख़बरें मैन स्ट्रीम मीडिया पर खोजे नहीं मिलती और शायद इसलिए ही हमारे मुख्य मीडिया को लोग ‘गोदी मीडिया’ कहने लगे हैं।
2014 से शुरु हुआ प्रचार युद्ध अपने चरम पर है। मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए अब फिल्मों का सहारा बचा है तो वह ‘आर्टिकल 370’ के ज़रिये ले लिया गया है। मीडिया सबसे अधिक चर्चा अरुण गोविल की ही कर रहा है। अरुण गोविल ने फिल्म में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का किरदार निभाया है। मुझे इस बात का डर है कि इस किरदार को निभाने के बाद उनकी ‘श्री राम’ वाली छवि को गहरा आघात लगेगा। अरुण गोविल का चयन सोच समझकर किया गया है। निर्माता-निर्देशक जानते हैं कि अरुण गोविल को भारत और विश्व में श्रीराम के स्वरुप में देखा जाता है और नरेंद्र मोदी के किरदार के लिए उनका चयन कर एक अजीब सा ‘मोदी-राम’ का मिक्सअप बनाया जा रहा है।
एन चुनाव के समय इस फिल्म को रिलीज करना, चुनाव को प्रभावित करने का खेल है, जियो स्टूडियोज की मौजूदगी इस बात की पुष्टि करती है। ये फिल्म पैसा कमाने के उद्देश्य से कतई नहीं बनाई जा रही है। इसका उद्देश्य नरेंद्र मोदी का प्रचार भर करना है। और वह प्रचार बाकायदा शुरु हो चुका है। मैन स्ट्रीम मीडिया ने ‘आर्टिकल 370’ को लेकर समाचारों की बाढ़ ला दी है। नब्बे प्रतिशत समाचारों में अरुण गोविल के कैरेक्टर का ही ज़िक्र हो रहा है। स्पष्ट है कि नरेंद्र मोदी की प्रचार नीति इस समय अपने चरम पर है। प्रचार अभियान के इस चरमोत्कर्ष पर जन-भावनाओं का दोहन होता दिखाई दे रहा है।
अरुण गोविल ने प्रधानमंत्री की भूमिका करना स्वीकार किया है। आयु की ढलान पर धन की आवश्यकता सभी को होती है। कभी गोविल एकांत में मनन करें तो वे पाएंगे कि उनकी बड़े ही परिश्रम द्वारा अर्जित एक सम्माननीय छवि को पांसा फेंककर लूट लिया गया है। आज देश का अधिकांश तबका भ्रामक प्रचार तंत्र द्वारा सम्मोहित है। देश की समस्याएं और बड़े मुद्दे अख़बारों और टीवी चैनलों से निकालकर फेंक दिए गए हैं और बस हर ओर एक ही नाम गूंज रहा है और एक ही नाम की स्तुति हो रही है। ऐसा एकाधिकारवाद इस देश में इंदिरा युग के बाद अब देखने को मिल रहा है।
अरुण गोविल के जरिये नरेंद्र मोदी की माला जप रही पत्रकार मंडली कभी सब्जी खरीदने बाज़ार नहीं जाती। जाती तो उसे पता चलता कि लहसुन आम आदमी की पहुँच से बाहर हो चुका है। लहसुन आज की तारीख में अरुण गोविल से महत्वपूर्ण मुद्दा है लेकिन आज यहाँ एक ऐसी अद्भुत प्रजाति पनप रही है, जो व्यक्तिवाद के नशे में 500 रुपये लीटर पेट्रोल भरवाने के लिए भी तैयार है। संपूर्ण मीडिया, संपूर्ण सोशल मीडिया और अब फिल्मों को भी स्तुति करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, जो कि बहुत खतरनाक है।
इंदिरा गांधी के कार्यकाल में थियेटर्स में फ़िल्में शुरु होने से पूर्व सूचना व प्रसारण मंत्रालय द्वारा दी गई न्यूज़ रील दर्शकों को दिखाना अनिवार्य हुआ करता था। इन न्यूज़ रील्स के ज़रिये सरकार अपने नेता का प्रचार करा लेती थी। दर्शक के लिए वह न्यूज़ रील देखना आवश्यक होता था। क्या भारत पुनः उसी न्यूज़ रील वाले दौर में लौट गया है। मोबाइल से लेकर टीवी और सिनेमा के परदे तक हम नज़र दौड़ाएं तो ऐसा ही कुछ महसूस होता है।
विगत दस वर्ष के तूफानी प्रचार ने एक आम भारतीय को महंगाई दी, सत्ता द्वारा खड़ा किया कृत्रिम तनाव दिया, पंद्रह लाख की झूठी उम्मीद दी, काला धन लाने की आस जगाई। इन सबके अलावा आम भारतीय को एक ज़िम्मेदारी और मिली। उसे दस वर्ष तक प्रधानमंत्री का प्रचार करना था। वे एक ऐसे प्रधानमंत्री हैं, जो सहेजे जाने चाहिए। सहेजने की बात भी प्रचार तंत्र से ही आई। अब हमें एक फिल्म देखनी है। इस फिल्म के ज़रिये टेलीविजन से श्रीराम की भूमिका कर विश्व विख्यात हुए एक कलाकार को हम अब एक रोचक और यूनिक मिश्रण के रुप में देखें। उसे देखने के बाद हमें बस ये याद रहे कि ‘जो राम को लाए हैं, हमें अब उन्हें फिर से लाना है।’