
दिल्ली में अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी की जीत के मायने!
दिल्ली की पूरी राजनीति फ्री बेस हो चुकी है। अब इसको कोई न हटा सकता है, न नकार सकता है। केजरीवाल ने महिलाओं के किचन तक पैठ बनाई और यही उनकी जीत का कारण है।
१) आखिरी समय का 18-20% वोट महिलाओं का अधिक था, और दिल्ली में पहली बार पुरुषों के बराबर महिलाओं ने वोट किया था। 62.55% महिलाओं का वोट पड़ा है, जो पुरुषों से केवल 0.7% ही कम है। घर में पुरुषों ने अलग व महिलाओं ने अलग वोट किया, यह दिख रहा है। अप्रैल 2019 तक का सब पानी-बिल माफ आम आदमी पार्टी के लिए तुरुप का पत्ता साबित हुआ। यहां तक कि यहां की महिलाओं को निर्भया के बलात्कारियों को केजरीवाल सरकार द्वारा बचाना भी अपील नहीं कर पाया। महिला सुरक्षा पर फ्री-भ्रम हावी रहा।
2) 3 फरवरी को वीडियो में बताया था कि भाजपा की राह के दो रोड़े- दिल्ली की महिलाएं और भाजपा के भीतराघाती कार्यकर्ता हैं। भाजपाई पार्षद से लेकर पांच परमेश्वर कार्यकर्ता तक ने भाजपा उम्मीदवार को हराने के लिए काम किया है। पार्षद खुद को टिकट न दिए जाने से नाराज़ थे। लिंक: https://youtu.be/zVylIt_1wVE
४) इसके अलावा शनिवार को यह भी बताया था कि सभी सुरक्षित SC सीट में भाजपा हार रही है, परिणाम वही रहा। लगभग सभी 11 सीट भाजपा के खिलाफ गया है। लिंक: https://youtu.be/RBCZh1DF7d0
५) सिख वोटों के लिए भी शनिवार को कहा था कि वह आप को पड़ा है। मुस्लिम वोट आप व कांग्रेस में बंटा, लेकिन ज्यादा आप को पड़ा है है। लिंक: https://youtu.be/RBCZh1DF7d0
६) यह जो भाजपा को 12-14 सीट मिलती दिख रही है, और करीब 41% वोट शेयर मिला है, यह भाजपा का मध्यम व निम्न मध्यम वर्ग का वैचारिक वोटर हैं, जो उसके साथ हमेशा से डटा हुआ है।
७) सांप्रदायिकता मध्यम वर्ग के हिंदू पुरुषों को अपील करता है, लेकिन उसी घर की महिलाओं को तो फ्री की राजनीति ज्यादा भाती है। यह अलग बात है कि जब भी दंगा होता है, पीड़ित पुरुष से अधिक महिलाएं होती हैं। शाहीन बाग ने मुस्लिम को गोलबंद किया, लेकिन हिंदू गोलबंद नहीं हो सका। खासकर हिंदू महिलाओं पर इसका कोई असर देखने को नहीं मिला।
८) भाजपा की एक बड़ी विफलता हर राज्य से उसके स्थानीय नेताओं का फेलियर के रूप में सामने आ रहा है। दिल्ली भाजपा पूरी तरह से गुटबंदी का शिकार है, और यही कारण है कि 20 वर्षों से वह सत्ता से बाहर हैं।
भाजपा इस गुटबंदी के कारण ही आखिरी दिन तक उम्मीदवार घोषित करती है, और एकजुटता के साथ जनता को भी नहीं समझा पाती है। लोकसभा केवल नरेंद्र मोदी के कारण भाजपा जीती है। स्थानीय भाजपा की कोई भूमिका उसमें नहीं है।
९) पहले टर्म में मोदी के नाम पर महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड, उत्तराखंड, हिमाचल जीते थे। जब वहां दोबारा चुनाव हुआ तो मुख्यमंत्री और उसके काम को जनता ने नकार दिया। अब उत्तराखंड व हिमाचल में भी यदी भाजपा ने सबक नहीं लिया तो वहां भी बड़ी हार मिलने वाली है।
१०) कांग्रेस जीरो सीट के साथ 9% से 5% पर आ गयी। यह पांच प्रतिशत वोट भी कांग्रेसियों ने आप को शिफ्ट किया है। कांग्रेस इसमें ही खुश हैं कि बस भाजपा सत्ता से दूर रहें। हर राज्य में वह अपना जमीन खोकर भी खुश होती जा रही है।
११) जहां थोड़ा भी त्रिकोणीय मुकाबला हुआ, भाजपा ने थोड़ा ठीक किया। आमने-सामने के मुकाबले में भाजपा को मुश्किल आती है, यह एक बार फिर साबित हुआ।
१२) आम आदमी पार्टी बिना कैडर, बिना कार्यकर्ता के जीती है। इसलिए देश भर में उसके फैलने का गुमान हवा-हवाई है। पंजाब से लेकर गोवा तक इसके ढहने की कहानी हम पहले ही देख चुके हैं। अरविंद केजरीवाल इस पार्टी में न अपने समकक्ष नेता को पनपने दें सकते हैं, न कार्यकर्त्ताओं की पौध खड़ा कर सकते हैं। उनकी राजनीति फ्री-बेस छापामार शैली की है, जो छोटे क्षेत्र में ही सफल हो सकता है।
१३) और आखिर में दिल्ली देशद्रोहियों, कन्हैयाओं, शरजिलों, एनजीकर्मियों व निर्भया के बलात्कारी जैसों का शरण स्थल बनने जा रही है। अब इसमें किसी को शक नहीं होना चाहिए।
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