Ashwini Upadhyay Biography: ऐतिहासिक शहरों और जगहों के नाम बदले जाने के लिए दाखिल याचिका पिछले दिनों खारिज की गई थी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आप चाहते हैं कि ऐसे मामले हमेशा जिंदा रहें और देश उबलता रहे? वह याचिका दाखिल की थी एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने। उपाध्याय सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जनहित याचिका (PIL) दाखिल करने के लिए खासे फेमस हैं। एक बार तो तत्कालीन चीफ जस्टिस एन वी रमण ने कहा था कि अश्विनी उपाध्याय की इतनी अर्जियां हैं कि उनके लिए तो एक स्पेशल बेंच बनानी पड़ जाएगी।
अश्विनी उपाध्याय की करीब 125 पीआईएल सुप्रीम कोर्ट में और 25 पीआईएल दिल्ली हाई कोर्ट में पेंडिंग हैं। कुछ लोग उन्हें पीआईएल मैन ऑफ इंडिया भी कहते हैं। कई बार उनकी अर्जियां खारिज भी हुईं, लेकिन ज्यादातर अर्जियां ऐसी रही हैं, जिन पर सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश जारी किए हैं।
आइए जानते हैं कौन हैं अश्विनी उपाध्याय?
उपाध्याय का जन्म इलाहाबाद के फूलपूर में हुआ था। उनके पिता स्कूल टीचर रहे। उनके दादाजी ग्राम सेवक थे। उपाध्याय की शुरुआती पढ़ाई गांव के स्कूल में हुई। 1988 में उन्होंने दसवीं पास की। उनके गांव में कई वकील थे, इसलिए उनके पिता उन्हें इंजीनियर बनाता चाहते थे। उपाध्याय बताते हैं कि उन्होंने आम के पेड़ के नीचे बैठकर शुरुआती शिक्षा ली थी। बाद में वह इंजीनियर बने और इलेक्ट्रिकल इंजीनियर के तौर पर उन्होंने कई ऑटोमोबाइल कंपनियों में काम किया। लेकिन उनका मन नौकरी में नहीं लग रहा था। इसी दौरान उन्होंने 2002 में लॉ की पढ़ाई पूरी कर ली। 2004 में उनकी पत्नी की सरकारी स्कूल में टीचर की नौकरी लग गई और पत्नी ने घर की जिम्मेदारी संभाल ली। इसके बाद उपाध्याय ने नौकरी छोड़ कर वकालत का रुख कर लिया।
उपाध्याय बताते हैं कि वह श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय और बी आर आंबेडकर से प्रभावित हैं। उन्होंने सूचना के अधिकार के लिए लड़ाई लड़ी। इसी दौरान वह आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल के संपर्क में आए। वह अन्ना आंदोलन से भी जुड़े। उपाध्याय का कहना है कि आम आदमी पार्टी की स्थापना में उनका भी योगदान रहा, लेकिन बाद में पार्टी से दूरियां बढ़ीं और 2014 में वह बीजेपी में चले गए। वह दिल्ली प्रदेश बीजेपी के प्रवक्ता भी बने।
उपाध्याय का कहना है कि इस दौरान उन्होंने महसूस किया कि आजादी के 75 साल बाद भी राजनीति में अपराधीकरण है और कई सांसद ऐसे हैं, जिनके खिलाफ क्रिमिनल केस हैं और वही कानून बनाते हैं। इसलिए उन्होंने राजनीति में अपराधीकरण खत्म करने के लिए कई पीआईएल दाखिल कीं।
उपाध्याय ने दाखिल की थी राजनीति में अपराधीकरण से जुड़ी याचिका
उपाध्याय ने कंटेप्ट याचिका दायर की थी। उसमें उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने 25 सितंबर 2018 को फैसला दिया था कि क्रिमिनल को अगर इलेक्शन में कैंडिडेट बनाया जाता है तो उसके खिलाफ लंबित मामलों की जानकारी सार्वजनिक की जानी चाहिए, लेकिन इस फैसले पर अमल नहीं किया गया। उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 13 फरवरी 2020 को सभी राजनीतिक दलों से कहा था कि वे कैंडिडेंट के खिलाफ पेंडिंग क्रिमिनल मामलों की जानकारी अपनी वेबसाइट पर अपलोड करें। यह भी कहा था कि लंबित क्रिमिनल मामलों के बारे में एक स्थानीय और एक राष्ट्रीय अखबार में विस्तार से जानकारी दी जाए। साथ ही, पार्टियां यह भी बताएं कि जिन लोगों के खिलाफ क्रिमिनल केस पेंडिंग हैं, उन्हें उन्होंने किस वजह से अपना कैंडिडेट बनाया।
उपाध्याय ने गंभीर अपराध में आरोप तय होने पर चुनाव लड़ने पर रोक की गुहार भी लगाई है। उनकी अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांग रखा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आम आदमी व्यापक तौर पर फैले करप्शन से प्रभावित है।
उपाध्याय ने दागी नेताओं के खिलाफ लंबित मामलों के जल्द निपटारे के लिए भी पीआईएल दाखिल की थी। इसमें मांग की गई थी कि जिन नेताओं और ब्यूरोक्रेट को सजा हो चुकी हो, उनके चुनाव लड़ने पर आजीवन रोक होनी चाहिेए। यह अनुरोध भी किया गया था कि नेताओं के खिलाफ लंबित मामलों का निपटारा एक साल में हो और इसके लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाया जाना चाहिए। 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में निर्देश जारी किया था। कोर्ट ने कहा था कि दागी नेताओं के मामले की जल्दी सुनवाई करने के लिए स्पेशल कोर्ट बनाई जाए। उपाध्याय बताते हैं कि इस जजमेंट के बाद दागियों के खिलाफ स्पीडी ट्रायल हुआ है और अब तक 200 से ज्यादा नेता क्रिमिनल केस में सजा पा चुके हैं और उनके चुनाव लड़ने पर रोक लग चुकी है।
वोटरों को लुभाने के लिए मुफ्त उपहार के खिलाफ लगाई थी गुहार
उपाध्याय ने वोटरों को लुभाने के लिए मुफ्त उपहार देने या इसका वादा करने वाले राजनीतिक पार्टियों की मान्यता रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई है। उपाध्याय ने कहा है कि राजनीतिक दल सरकारी फंड से चुनाव से पहले वोटरों को उपहार देने का वादा करते हैं या उपहार देते हैं। इससे चुनाव पर असर पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग और केंद्र सरकार के वकील से उनकी राय पूछी थी। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने कहा था कि कोई यह नहीं कह सकता है कि यह गंभीर विषय नहीं है और जो लोग मुफ्त उपहार बांटने के खिलाफ हैं, उनका यह अधिकार है क्योंकि वे टैक्स पेमेंट करते हैं, लेकिन जिन्हें मिलता है, वे उसे चाहते हैं। यह वेलफेयर ऑफ स्टेट का मामला है।
निकाह हलाला और बहुविवाह को चुनौती
उपाध्याय ने अर्जी दाखिल कर बहुविवाह और निकाह हलाला की संवैधानिक वैधता को चुनौती दे रखी है। सुप्रीम कोर्ट ने 26 मार्च 2018 को निकाह हलाला और बहुविवाह की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को संवैधानिक बेंच को रेफर कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा था।
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को भी दी है चुनौती
उपाध्याय की ओर से अर्जी दाखिल कर प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 की धाराओं – 2, 3 और 4 को चुनौती दी गई है और उन्हें गैर संवैधानिक घोषित करने की गुहार लगाई गई है। प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के तहत प्रावधान है कि 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस स्थिति में था और जिस समुदाय का था, भविष्य में उसी का रहेगा। याचिका में कहा गया है कि यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेदों-14, 15, 21, 25, 26 और 29 का उल्लंघन करता है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस मामले में जवाब मांगा है।
उपाध्याय की कई अर्जियों पर सुप्रीम कोर्ट का रुख सख्त रहा है। कोर्ट ने इन याचिकाओं पर सवाल उठाते हुए कहा था कि ये मामले विधायिका के अधिकार क्षेत्र में आते हैं, ऐसे में वह आदेश पारित नहीं कर सकता है।
हर धर्म और जेंडर के लिए एकसमान कानून को लेकर दाखिल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया था कि क्या वह केंद्र सरकार को शादी, तलाक, उत्तराधिकार और गुजारा भत्ता से संबंधित मामलों को सभी धर्मों के लिए एकसमान और जेंडर न्यूट्रल करने के लिए कानून बनाने का निर्देश जारी कर सकता है? 20 फरवरी को चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने मौखिक टिप्पणी में ज्यूडिशिल पावर के स्कोप की बात उठाई थी।
पुरुषों और महिलाओं की शादी की न्यूनतम उम्र एकसमान यानी 21 साल किए जाने के लिए दाखिल याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह इस मामले में कानून नहीं बना सकता है और इस मामले में संसद को निर्देश जारी नहीं कर सकता कि वह कानून बनाए।
जंतर मंतर पर भाषण के मामले में पुलिस हिरासत में भी गए थे उपाध्याय
अगस्त 2021 में दिल्ली पुलिस ने जंतर मंतर पर एक भाषण के सिलसिले में अश्विनी उपाध्याय को गिरफ्तार कर लिया था। उन पर आरोप था कि उन्होंने मुस्लिमों के खिलाफ बयान दिए थे। हालांकि उन्होंने इससे इनकार किया था। मामले में जब उपाध्याय की ओर से जमानत अर्जी दाखिल की गई तो निचली अदालत में देश के दिग्गज वकील उनकी ओर से पेश हुए थे। सुप्रीम कोर्ट बार असोसिएशन के प्रेसिडेंट और सीनियर एडवोकेट विकास सिंह, सिद्धार्थ लूथरा और गोपाल शंकर नारायण जैसे दिग्गजों ने उनके लिए जमानत की दलील दी थी और उन्हें बाद में बेल मिल गया था। उपाध्याय ने बताया कि वह मामला अभी पेंडिंग है, लेकिन उन पर लगाए गए आरोप गलत हैं।
ट्विटर पर उपाध्याय के पांच लाख फॉलोअर
उपाध्याय बेहद सौम्य और मधुरवाणी के धनी हैं। सोशल मीडिया पर भी वह खासे एक्टिव रहते हैं और ट्विटर पर उनके करीब सवा पांच लाख फोलोअर हैं। फेसबुक पर उनके सवा छह लाख फॉलोअर हैं। उपाध्याय का कहना है कि वह चुनाव सुधार और दूसरे सामाजिक सुधारों के लिए काम करते रहेंगे। वह बताते हैं कि उनके परिवार से उनको काफी सहयोग मिला है, खासतौर से उनकी पत्नी का, जो कभी कोई डिमांड नहीं करती हैं।