24 अक्टूबर, 1919 की बात है। जलियांवाला बाग हत्याकांड को छह माह बीत चुके हैं। महात्मा गांधी लाहौर के एक देशभक्त पंजाबी वकील रामभज दत्त चौधरी के घर पहुंचते हैं। यहीं सरलादेवी चौधरानी से गांधी की दूसरी मुलाकात होती है, जिसके लिए आगे चलकर उन्होंने ‘आध्यात्मिक पत्नी’ शब्द का इस्तेमाल किया।
सरलादेवी से उनकी पहली मुलाकात 19 साल पहले इंडियन नेशनल कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में हुआ था। तब सरला ने गांधी का लिखा गीत ‘नमो हिंदुस्तान’ स्टेज से गाया था।
कौन थीं सरलादेवी?
सरलादेवी चौधरानी लेखिका, स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिक कार्यकर्ता और भारत के पहले महिला संगठन ‘भारत स्त्री महामंडल’ की स्थापना की थी। वह बांग्ला की पहली उपन्यास लेखिका स्वर्णकुमारी देवी की बेटी थीं। पिता जानकीनाथ घोषाल बंगाल कांग्रेस के सचिव थे। सरलादेवी चौधरानी की मां नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर की बहन थीं। सरला टैगोर को रवि मामा कहती थीं। कलांतर में रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित प्रतिष्ठित पत्रिका ‘भारती’ के संपादन की जिम्मेदारी सरला ने ही संभाली थी।
सरलादेवी की शिक्षा और तेजस्विता से मुग्ध होकर स्वामी विवेकानंद ने उन्हें अपने साथ प्रचार करने के लिए विदेश ले जाना चाहते थे। सरला ने साल 1905 में 33 साल की उम्र में कांग्रेस नेता और वकील रामभज दत्त चौधरी से शादी की थी।
गांधी से दूसरी मुलाकात और…
सरलादेवी से महात्मा गांधी की दूसरी मुलाकात 24 अक्टूबर, 1919 को होती है। वह सरला और रामभज के घर मेहमान बनकर पहुंचे थे। तब गांधी उम्र 50 साल हो चुकी थी। साथ ही उन्हें ब्रह्मचर्य अपनाए हुए भी 13 वर्ष बीत गए थे। सरलादेवी सैंतालीस की हो चुकी थीं और उन्हें एक 12 साल का बेटा भी था, जिसका नाम उन्होंने दीपक रखा था।
जब गांधी पहुंचे तो सरलादेवी दरवाजे पर सिल्क की साड़ी और गले में मोतियों की माला पहने स्वागत के लिए खड़ी थीं। उन्होंने गांधी की जरूरतों का पूरा ख्याल रखा। दिन भर लोग गांधी से मिलने आते रहें। जब शाम तक मुलाकातों का सिलसिला थम गया, तब गांधी सरलादेवी से मुखातिब हुए और कहा, “मुझे तुम्हारी जिंदगी का वृत्तांत जानने की तलब हो रही है।”
सरलादेवी कहती हैं, “आप सुबह से बातें करते-करते थक गए होंगे। अब मेरी बात सुनकर और नहीं थक जाएंगे? मेरी कहानियों का अंत जल्दी नहीं होता। वे मेरी नस-नस में बहती है। आपको शायद पता न हो, मेरी मां स्वर्णकुमारी देवी बांग्ला की पहली उपन्यास लेखिका हैं। रवि मामा यानी रवींद्रनाथ टैगोर की तो खैर बात ही क्या?”
इतना सुन गांधी कहते हैं, “यदि तुमको लगता है कि मैं थका हूं, तो कहानी सुनते मेरी थकान पक्की गायब हो जाएगी।” सरलादेवी कुछ देर सोच में डूबी रहती हैं। फिर मुस्कुराकर कहती हैं, “ठीक है, मैं अपनी कहानी को सरला की कहानी की तरह सुनाती हूं” इसके बाद सरलादेवी चौधरानी अपनी जिंदगी की कहानी गांधी को बताती हैं। और यही से दोनों के बीच एक रिश्ता सा बन जाता है।

करीब आने लगे गांधी और सरला
इस मुलाकात के बाद सरलादेवी चौधरानी और गांधी करीब आते रहे। बाद में सरलादेवी चौधरानी अपना घर छोड़कर बेटे साथ गांधी के आश्रम में रहने चली गईं। हिंदी की मशहूर साहित्यकार अलका सरावगी ने राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित अपनी किताब ‘गांधी और सरलादेवी चौधरानी: बारह अध्याय’ में बताया है कि कैसे गांधी ने अपने एक पत्र में सरलादेवी को अपनी आध्यात्मिक पत्नी तक बता दिया था।
दरअसल गांधी को एक रोज अचानक हरमन केलनबाख का पता चला। केलनबाख से उनका संपर्क कई वर्षों से छूट गया था। गांधी और केलनबाख 1907 से 1909 तक दक्षिण अफ्रीका के जोहानिसबर्ग में साथ रहे थे। पता मिलने पर गांधी उन्हें पत्र लिखने बैठ गए। उस वक्त उनके साथ सरलादेवी भी बैठी थीं। सरला रामायण के पन्ने पलटती हुई सोच रही थीं कि क्या गांधी अपने पत्र में उनका भी जिक्र करेंगे। गांधी ने पत्र पूरा करने के बाद, सरलादेवी को पढ़ने के लिए दिया। पत्र में एक जगह लिखा था,
“अभी मैं देवदास और एक दूसरे भरोसेमंद साथी के साथ यात्रा कर रहा हूं। उसे देखोगे तो उसपर मुग्ध हो जाओगे। बात यह है कि इस महिला से मेरा बहुत घनिष्ठ संपर्क हो गया है। वह अक्सर यात्रा में मेरे साथ रहा करती है। इसके साथ मेरे संबंधों को किसी परिभाषा में नहीं बांध सकता। मैं उसे अपनी आध्यात्मिक पत्नी कहता हूं।…”
ब्रह्मचारी गांधी और दैहिक मिलन की कगार
सरलादेवी की गैरमौजूदगी पर आह भरते हुए महात्मा गांधी 27 अप्रैल, 1920 को लिखते हैं, “अब यह बिछड़ना और अधिक कठिन लगने लगा है। जिस जगह तुम बैठती थी, उस ओर देखता हूं और खाली देखकर अत्यंत उदास हो जाता हूं।”
किताब में दावा है कि सरलादेवी और ब्रह्मचारी गांधी का रिश्ता दैहिक मिलन की कगार पर जा पहुंचा था। लेकिन कांग्रेस नेताओं और उनके सहकर्मियों ने गांधी को समझाया। उन्हें बताया गया कि अगर वह ऐसा कुछ करते हैं, तो इससे सिर्फ उनका नहीं बल्कि पूरे स्वतंत्रता आंदोलन को नुकसान होगा। गांधी को पीछे हटना पड़ा।
लेकिन दिलचस्प यह है कि कालांतर में जब गांधी अपने जीवन के विभिन्न पहलुओं पर लिखते हैं, तो सरलादेवी का जिक्र नहीं करते। वह अपनी आत्मकथा में तमाम अंतरंग क्षणों आदि को लिख देते हैं। सत्य के साथ अपने प्रयोगों पर भी खुलकर लिखते हैं। लेकिन सरलादेवी के साथ अपने विवाहेतर प्रेम को लिखने से बच जाते हैं। सरलादेवी के प्रति उपजी कामेच्छा पर वह पर्दा डाल देते हैं।