“गुजरात के शहर बड़ौदा के इकलौते एयरपोर्ट पर एक जहाज़ उड़ान भरने के लिए तैयार खड़ा था. पिछले दो दिनों से इस रनवे पर सामान से भरी कारें आ रही थीं और उस जहाज़ के अमेरिकी पायलट को पूरा अंदाज़ा था कि यहां क्या चल रहा था.”
“भारत को आज़ादी हासिल किए दो साल हो चुके थे. अमेरिकी पायलट यह डकोटा जहाज़ दो साल पहले ही ब्रिटिश फ़ौज से ख़रीद कर भारत लाए थे और इसमें थोड़ा बहुत बदलाव करके वह इसे माल और यात्री ढोने वाले प्राइवेट जहाज़ के तौर पर इस्तेमाल कर रहे थे.”
“बड़ौदा एस्टेट से क़ीमती सामान ले जाने की तैयारी जारी थी और पायलट यह सब कुछ अपनी आंखों के सामने होता देख रहा था.”
“इसी बीच एयरपोर्ट के रनवे पर एक रोल्स-रॉयस कार पहुंची, जिसमें से एक सुंदर महिला निकलीं. लगभग 30 साल की यह महिला जहाज़ में सामान लोड होने के बाद पायलट के कॉकपिट की पिछली सीट पर बैठ गईं. उनके साथ दो अन्य महिलाएं भी मौजूद थीं.”
जैसे ही जहाज़ ने टेक ऑफ़ किया तो पायलट ने महिला को संबोधित करते हुए कहा कि वह जानता है कि इस जहाज़ में लदे सामान में क्या कुछ है, इसलिए वह इस सामान को ले जाने के अधिक पैसे लेगा.
महिला को पायलट की यह बात सुनकर कोई हैरत नहीं हुई. शायद वह जानती थीं कि ऐसा हो सकता है. इसलिए उन्होंने पायलट की बात सुनकर अपने पर्स से एक रिवॉल्वर निकाला और पायलट की आंखों में आंखें डाल कर कहा, “तुम्हें जैसा करने को कहा गया था वैसा करो.”
इसके बाद पायलट को यह अहसास हुआ कि शायद उसने यह बात करके ग़लती कर दी है.
यह महिला कोई और नहीं बल्कि महारानी सीता देवी थीं. बड़ौदा के महाराजा प्रताप सिंह राव गायकवाड़ की दूसरी पत्नी.
उस जहाज़ में क़ीमती सामान के 56 बक्से थे, जिनमें बड़ौदा के शाही ख़ज़ाने का एक क़ीमती हिस्सा भी था.
भारत से निकलकर महारानी पेरिस पहुंची, जब महारानी सीता देवी ने पेरिस में रहना शुरू किया तो उन्होंने यह कहानी इन शब्दों में अपने कुछ वफ़ादारों को सुनाई.
अब यह उन पर निर्भर था कि वे इस कहानी को मानते या नहीं. लेकिन इतनी हिम्मत और विश्वास के साथ कोई ऐसा कैसे कर सकता है?
जूलर, फ़ैशन डिज़ाइनर और लेखक मीलान विल्सन ने अपने किताब ‘वन क्लीफ़ एंड आर्पल्स: ट्रेज़र्स एंड लीजेंड्स’ में इस कहानी के बारे में लिखा है. मीलान विल्सन ने विंटेज जूलरी पर काफ़ी गहरा शोध किया है और वह इस विषय पर किताबों के लेखक भी हैं.
सीता देवी का नाम भारत के इतिहास में विशेष क्यों?

बड़ौदा की इस रानी की प्रेम कहानी तो काफ़ी चर्चा में थी और उसे समय उनकी शादी पर विवाद भी हुआ था. सीता देवी को बड़ौदा के महाराजा प्रताप सिंह राव गायकवाड़ से प्यार हो गया था.
जब इस प्यार की शुरुआत हुई तो सीता देवी पहले से विवाहित थीं और पहले पति से उनका एक बच्चा भी था जबकि महाराजा प्रताप सिंह भी पहले से शादीशुदा और आठ बच्चों के बाप थे.
ऐसी स्थिति में उनकी शादी की राह में कई रुकावटें थीं. लेकिन उस समय सीता देवी ने जो क़दम उठाया था उसे भारतीय शाही परिवार के इतिहास में अलग स्थान प्राप्त है.
जब भी भारत के शाही परिवारों की प्रेम कहानी की बात की जाती है तो सीता देवी का नाम आता है.
न केवल सीता देवी की शख़्सियत बल्कि उनके गहनों और उनके लिबास की चर्चा उस समय सब की ज़ुबान पर आम हुआ करती थी. विशेषज्ञों के अनुसार, वह अपने समय की सबसे अधिक ग्लैमरस व्यक्तित्व की मालकिन थीं और उन्होंने ख़ूब ऐश की ज़िंदगी बिताई.
उन्होंने उस दौर में बहुत सी पुरानी परंपराओं के ख़िलाफ़ बग़ावत की, जब शाही परिवार से जुड़ी औरतें सर ढंकती और पर्दा करती थीं.
सीता देवी कौन थीं और उनके प्यार की कहानी

इमेज कैप्शन,फ़ैशन आइकॉन मानी जाती थीं सीता देवी
सीता देवी 12 मई 1917 को उस समय की रियासत मद्रास (अब चेन्नई) मैं पैदा हुईं. वह श्री राज राव वेंकट कुमार महापति सूर्य राव बहादुर गारो और रानी चिनम्बा की बेटी थीं. पीतापुरम मद्रास रियासत की महत्वपूर्ण राजधानी थी.
सीता देवी की पहली शादी वीवर के एक बड़े ज़मींदार से हुई थी और उस शादी से उनका एक बेटा भी था.
गायकवाड़ परिवार के एक सदस्य और प्रताप सिंह राव के भतीजे जितेंद्र सिंह गायकवाड़ ने बीबीसी गुजराती को बताया, “1943 में सीता देवी और महाराजा प्रताप सिंह राव की मुलाक़ात मद्रास के एक रेस कोर्स में हुई थी. उन्हें पहली ही नज़र में एक दूसरे से प्यार हो गया था.”
“सीता देवी की ख़ूबसूरती हैरत में डालने वाली थी. महाराजा भी उनकी ख़ूबसूरती के जादू में आ गए थे. सीता देवी महाराजा प्रताप सिंह राव की शख़्सियत की ओर आकर्षित हुईं और दोनों ने शादी करने का फ़ैसला किया.”
पी मेनन ने अपनी किताब ‘इंटीग्रेशन ऑफ़ द इंडियन स्टेट्स’ में लिखा है कि 1939 में बड़ौदा की गद्दी पर बैठने के तीन या चार साल के अंदर उन्होंने सलाहकारों के कहने पर दोबारा शादी कर ली. “इससे उनकी प्रतिष्ठा पर आंच आई.”
उनके प्यार में पहली रुकावट सीता देवी के पति थे जो अपनी बीवी को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे. इसलिए प्रताप सिंह राव ने क़ानूनी सलाह ली. सलाहकारों ने वह बात बताई जिसने भारतीय संस्थानों के इतिहास में एक विवादास्पद अध्याय जोड़ दिया.
सीता देवी ने अपने पहले पति से तलाक़ लेने के लिए इस्लाम क़बूल कर लिया.
पी मेनन अपनी किताब में लिखते हैं, “प्रताप सिंह राव ने सन 1929 में पहली शादी महारानी शांता देवी से की थी. शांता देवी का संबंध कोल्हापुर के एक बड़े ज़मींदार परिवार से था. इस शादी से दोनों के आठ बच्चे हुए.”
इस्लाम क़बूल करने के बाद अक्टूबर 1944 में सीता देवी ने ख़ुला (शादी से अलग होने का हक़) लेने के लिए मुक़दमा दायर किया और अदालत में शपथपत्र दिया कि वह इस्लाम क़बूल कर चुकी हैं.
किताब के अनुसार, सीता देवी ने इस्लाम क़बूल किया और फिर अपने पहले पति से इस्लाम क़बूल करने का अनुरोध किया लेकिन उनके पति ने ऐसा करने से इनकार कर दिया. इसलिए सीता देवी ने अपने पति से तलाक़ के लिए मद्रास के सिटी कोर्ट में आवेदन दिया जिसके नतीजे में अदालत में मुस्लिम क़ानून के तहत तलाक़ करवा दिया.
पहले पति से तलाक़ के बाद सीता ने दोबारा हिंदू धर्म अपना लिया और महाराजा प्रताप सिंह राव गायकवाड़ से शादी की.
पी मेनन लिखते हैं कि 26 और 31 दिसंबर के बीच उन्होंने आर्य समाज के रीति रिवाज के अनुसार हिंदू धर्म अपना लिया और प्रताप सिंह से शादी की.
किताब ‘वन क्लीफ़ एंड आर्पल्स: ट्रेज़र्स एंड लीजेंड्स’ में उनकी शादी की तारीख़ 31 दिसंबर बताई गई है.
लेकिन महाराजा से शादी करने के बाद भी उनकी मुश्किलें कम न हुईं. महाराजा के राज में पहली बीवी के जीवित होने की स्थिति में दूसरी शादी प्रतिबंधित थी क्योंकि गायकवाड़ सरकार ने दूसरी शादी पर पाबंदी का क़ानून बनाया था लेकिन प्रताप सिंह राव ने अपनी ही रियासत के क़ानून को मानने से यह कहकर इनकार कर दिया कि यह क़ानून महाराज पर लागू नहीं होता.
गुजरात के इतिहासकार रिज़वान क़ादरी ने बीबीसी के साथ बातचीत में कहा कि तीन जनवरी को महाराजा की शादी की ख़बर अख़बार ‘संदेश’ में छपी थी.
रिज़वान क़ादरी ने 15 जनवरी 1944 को प्रकाशित ‘वंदे मातरम’ अख़बार में प्रकाशित एक ख़बर के बारे बताते हुए कहा कि उस वक़्त महिलाओं के संगठनों ने भी महाराजा की दूसरी शादी का विरोध किया था. प्रजा मंडल के कुछ नेताओं ने भी इसका विरोध किया. प्रजा मंडल के नेताओं ने सवाल किया कि क़ानून बनाने वाला क़ानून कैसे तोड़ सकता है.
ब्रितानी अधिकारियों ने शुरू में प्रताप राव की दूसरी शादी को मानने से इनकार कर दिया मगर बाद में इस शर्त पर शादी की मंज़ूरी दे दी कि उनके राज का वारिस उनका बेटा होगा.
कहा जाता है कि एक दिन प्रताप सिंह सीता देवी को अपने ‘नज़र बाग़ महल’ में ले गए और उन्हें शाही ख़जाने दिखाए. सीता देवी दुनिया के बहुत से दुर्लभ हीरे-जवाहरात, मोतियों और पत्थरों से जुड़े बहुत से गहनों को देखकर दंग रह गईं.
घूमने-फिरने और शॉपिंग की शौकीन सीता देवी

उस समय गायकवाड़ की रियासत भारत की तीसरी सबसे अमीर रियासत थी.
किताब ‘वन क्लीफ़ एंड आर्पल्स: ट्रेज़र्स एंड लीजेंड्स’ में प्रताप सिंह राव को भारत का दूसरा सबसे अमीर महाराजा बताया गया है.
प्रताप सिंह महाराज के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी. सीता देवी को विदेश यात्रा, महंगे सामान की ख़रीदारी और शाही पार्टियों का शौक़ था. वह हमेशा महंगे ब्रांडेड सामान इस्तेमाल करने पर ज़ोर देती थीं.
सीता देवी के आने से शाही परिवार में अफ़रा-तफ़री भी बढ़ गई.
इतिहासकारों का कहना है कि महाराजा प्रताप सिंह की पहली बीवी शांता देवी और सीता देवी के बीच झगड़ा हुआ.
बीबीसी से बात करते हुए गायकवाड़ परिवार पर शोध करने वाले चंद्रशेखर पटेल ने बताया कि दोनों रानियां अलग-अलग रहती थीं. “लक्ष्मी विलास पैलेस में शांता देवी और मकरपुरा में बने महल में सीता देवी.”
जितेंद्र सिंह गायकवाड़ कहते हैं, “सीता देवी को शिकार, गन शूटिंग और घुड़सवारी का शौक़ था. वह मेहमानों की बहुत आवभगत करती थीं. उन्हें कई यूरोपीय भाषाओं और फ़ैशन का ज्ञान था.”
साल 1946 में दूसरा विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद प्रताप राव और सीता देवी विदेश दौरे पर चले गए. दोनों दो बार अमेरिका गए और उन्होंने बहुत पैसा ख़र्च किया. सीता देवी ने बहुत सारा महंगा सामान खरीदा.
उन्हें गाड़ियों का भी शौक़ था. उनके पास मर्सिडीज़ डब्ल्यू 126 थी. इस कर को मर्सिडीज़ कंपनी ने विशेष तौर पर सीता देवी के लिए डिज़ाइन किया था.
लेकिन जितेंद्र सिंह गायकवाड़ कहते हैं कि यहां पर अच्छी चीज़ें विदेश से आती थीं और आधुनिक विचारों का आदान-प्रदान होता था. नई टेक्नोलॉजी भारत में आती और लोग उससे फ़ायदा उठाते थे.
बड़ौदा के ख़ज़ाने से क़ीमती सामान ग़ायब

महाराजा प्रताप सिंह ने सीता देवी के साथ अमेरिका और यूरोप की शहर के लिए सरकारी ख़ज़ाने से लाखों रुपए ख़र्च किए. रिकॉर्ड के मुताबिक भारत सरकार को यह भी मालूम हुआ कि उन्होंने शाही ख़ज़ाने से क़ीमती सामान और गहने निकालकर इंग्लैंड भेजे थे.
पी मेनन लिखते हैं, “उन्हें सालाना मिलने वाले 50 लाख रुपयों के अलावा प्रताप सिंह राव ने रियासत में पूंजी निवेश के कोषों यानी सार्वजनिक फ़ंड से छह करोड़ रुपये निकाल कर दिए. उन्होंने मोतियों के सात हार, क़ीमती हीरे-जवाहरात और मोतियों का क़ालीन ख़रीदा. इसके अलावा भी कई क़ीमती सामान इंग्लैंड भेजा गया था.
रिज़वान क़ादरी कहते हैं कि उन्होंने करोड़ों रुपए के मूल्य का ख़ज़ाना बड़ौदा से योजनाबद्ध ढंग से विदेश भेजा.
पी मेनन लिखते हैं कि बड़ौदा में जवाहरख़ाना के खातों में भी डेढ़ करोड़ रुपये के नए गहनों की ख़रीदारी पता चलती है. उनमें से बहुत सी चीज़ें या तो खो गई थीं या टूट गई थीं जिन्हें नए गहनों में बदल दिया गया. जवाहरख़ाने से कई ग़ैर क़नूनी क़ीमती सामान भी मिला.
पी मेनन लिखते हैं कि भारत सरकार ने इस पूरे मामले का ऑडिट करने के लिए एक विशेष अधिकारी भेजा लेकिन महाराजा प्रताप सिंह राव ने जांच-पड़ताल में कोई मदद नहीं की.
चंद्रशेखर पटेल कहते हैं, “भारतीय शाही परिवार के लोग अपने रुतबे का इस्तेमाल कर के पासपोर्ट चेक कराए बिना विदेश यात्रा करते थे. बहुत सी महंगी पेंटिंग्स, जिनमें एडगर डेगास और पिकासो की पेंटिंग्स भी शामिल हैं, के बारे में समझा जाता है कि उन्हें सूटकेसों में पैक करके विदेश भेजा गया था.”
लेकिन गायकवाड़ परिवार के जितेंद्र सिंह गायकवाड़ ने कहा कि उन्होंने कुछ भी नहीं चुराया. यह उनकी जायदाद थी और यह उनका व्यक्तिगत मामला था.
बड़ौदा और दूसरी रियासतों में रिवाज था कि सरकारी ख़ज़ाने का सामान व्यक्तिगत इस्तेमाल के बाद ख़ज़ाने में वापस कर दिया जाता था. भारत सरकार ने उन सभी सामान की गुमशुदगी का शक प्रताप सिंह राव पर किया.
इसके अलावा भारत सरकार बड़ौदा रियासत के भारत के साथ विलय के बारे में उनके मामलों से नाख़ुश थी.
लेकिन महाराजा प्रताप सिंह ने अपने ऊपर लगाए गए आरोपों का खंडन किया और अपने ज़रिए किए गए ख़र्च की वापसी का वादा किया.
पी मेनन लिखते हैं कि इसकी वजह से भारत सरकार ने उन्हें सन 1951 में आर्टिकल 366 (22) के तहत महाराजा के पद से हटा दिया और उनकी जगह उनके बड़े बेटे युवराज फतेह सिंह को बड़ौदा की गद्दी पर बिठा दिया.
महाराजा प्रताप सिंह की गद्दी चली गई लेकिन सीता देवी के महंगे शौक़ कम नहीं हो रहे थे.
फ़ैशन और जूलरी का शौक़

सीता देवी का रेशमी साड़ियों और गहनों का जुनून उस वक़्त फ़ैशन की दुनिया में एक गरमा गरम मुद्दा था.
जितेंद्र सिंह ने बीबीसी को बताया, “महारानी सीता देवी को भारत की वालेस सिंपसन कहा जाता था. वालेस सिंपसन एक अमेरिकी सोशलाइट थीं. इंग्लैंड के महाराजा एडवर्ड अष्टम को उनसे प्यार हो गया था. लेकिन क्योंकि वह तलाक़शुदा थीं इसलिए ‘पुरातनपंथी ब्रिटिश समाज’ उन्हें क़बूल करने के लिए तैयार नहीं था. फिर भी किंग एडवर्ड ने वालेस सिंपसन से शादी की.
वालेस सिंपसन और सीता देवी की कहानी एक जैसी थी जिसकी वजह से लोग सीता देवी को इंडियन वालेस सिंपसन कहने लगे.
उनका रूबी, हीरे और मोतियों के ज़ेवरों का संकलन आश्चर्यजनक था. उनका जीवन उन क़ीमती हीरे जवाहरात पर टिका था. उनके पास सैकड़ों महंगी साड़ियां, पर्स, जूते और गहनों का संकलन था.
साल 1949 में सीता देवी की 78.5 कैरेट इंग्लिश ड्रेसडन हीरों का हार पहने एक तस्वीर चर्चा में आई थी. पश्चिम की फ़ैशन पत्रिकाओं में फ़ैशन और गहनों से उनके प्यार की काफ़ी चर्चा होती थी.
किताब ‘वान क्लीफ़ एंड आर्पल्स: ट्रेज़र्स ऐंड लीजेंड्स’ में बताया गया है कि सीता देवी के पास बहुमूल्य मोतियों का हार था. यह मोती बिसरा मोती थे जो लाल सागर में पाए जाने वाले दुर्लभ मोती हैं. उस ज़माने में मोतियों के इस हार की क़ीमत 5,99,200 डॉलर बनती थी.
उनके पास दो और हार थे जिनकी क़ीमत उस समय के हिसाब से 50,400 डॉलर बनती थी.
उनके संकलन में 4200 डॉलर मूल्य के दो काले मोतियों के हार भी शामिल थे. 33,600 डॉलर की क़ीमती मोती की अंगूठी भी थी.
इसके अलावा उनके पास वह क़ालीन भी था जिस पर मोती जड़े हुए थे.
चंद्रशेखर पटेल कहते हैं, “महाराजा खंड राव का कोई बेटा नहीं था, इसलिए उन्हें कुछ मौलवियों ने राय दी कि अगर आप मदीना में इस्लाम के पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद के पवित्र स्थल पर चादर चढ़ाएंगे तो आपको बेटा होगा. इसलिए खंड राव ने चढ़ाने के लिए अनगिनत मोतियों से बना क़ालीन तैयार करवाया मगर इस दौरान उनकी मौत हो गई और वह क़ालीन कभी मदीना नहीं पहुंच सकी.”
मोतियों की यह क़ालीन अनमोल थी. आठ फ़ुट लंबे इस क़ालीन पर बेशुमार मोती थे जिनमें पुखराज, हीरे और क़ीमती पत्थर जड़े हुए थे.
मगर बाद में यह क़ालीन सीता देवी तक पहुंच गई. सीता देवी की यह क़ालीन क़तर के नेशनल म्यूज़ियम तक कैसे और कब पहुंची इसके बारे में बहुत सी रोचक कहानी हैं. उन सभी कहानियों में एक सच्ची कहानी यह है कि मोतियों की यह क़ालीन अब क़तर के नेशनल म्यूज़ियम का हिस्सा है.
सीता देवी की मौत के बाद मोतियों की क़ालीन जेनेवा के एक लॉकर से मिली थी.
कहा जाता है कि सीता देवी के पास सोने और चांदी की प्लेटें भी थीं. किताब ‘वान क्लीफ़ एंड आर्पल्स: ट्रेज़र्स ऐंड लीजेंड्स’ के अनुसार सन 2009 में उनका एक हार 20 लाख यूरो में बिका था.
“वह फ़्रांस में बसने से पहले अक्सर वान क्लीफ़ और आर्पल्स के बूटिकों में जाती थीं. उन्होंने जैक आर्पल्स को बहुत सा फ़ैशनेबल सामान बनाने का काम सौंपा था. उनका ‘हिन्दू हार’ एक शानदार गहना था.”
“यह हार बड़ौदा के शाही ख़ज़ाने से लाए गए क़ीमती जवाहरात और 150 कैरेट से अधिक वज़नी कोलंबिया के पन्ना से बनाया गया था.”
इस तरह वह अपने हीरों और मोतियों के गहनों की वजह से उस ज़माने में पेरिस की महारानी भी कहलाती थीं.
जितेंद्र सिंह गायकवाड़ का कहना है कि सीता देवी को गहनों और उसके डिज़ाइन की भी समझ थी.
सीता देवी और प्रताप सिंह राव का अलगाव

प्रताप राव और सीता देवी ने यूरोप में रहने का फ़ैसला किया. सबसे पहले उन्होंने मोनाको के पास मोंटे कार्लो में एक हवेली ख़रीदी.
यह जोड़ा अक्सर यहां आया करता था. उस समय यह सीता देवी का स्थाई पता था. कहा जाता है कि प्रताप सिंह राव ने बड़ौदा के ख़ज़ाने से कुछ क़ीमती चीज़ें यहां लाई थीं.
इसके बाद सीता देवी ने पेरिस में घर भी ले लिया.
किताब ‘वान क्लीफ़ एंड आर्पल्स: ट्रेज़र्स ऐंड लीजेंड्स’ में मीलान ने महारानी सीता देवी पर एक पूरा अध्याय लिखा है. इसमें वह लिखते हैं कि सीता देवी और प्रताप सिंह ने अपने अमेरिकी दौरे पर उस दौर में एक करोड़ डॉलर ख़र्च किए थे.
आठ मार्च 1945 को उन्होंने यहां बेटे को जन्म दिया. प्रताप सिंह राव ने उसका नाम अपने दादा के नाम पर सियाजी राव रखा और उन्हें प्यार से शहज़ादा कहा जाता था.
लेकिन कुछ समय बाद दोनों के बीच फ़ासले बढ़ने लगे और दोनों अलग हो गए. उनका बेटा प्रिंसी सीता देवी के पास रहा.
प्रताप सिंह राव से अलग होने के बावजूद उन्होंने महारानी की पदवी बनाए रखी. उनके पास जो रोल्स-रॉयस कार थी उसमें बड़ौदा के शाही परिवार के प्रतीक भी मौजूद थे.
चंद्रशेखर पटेल कहते हैं, ‘सीता देवी बहुत फ़िज़ूलख़र्ची करती थीं. वह मनोरंजन पर बहुत पैसा ख़र्च करती थीं जिसकी वजह से दोनों के बीच विवाद पैदा हो गया और सन 1956 में उनका तलाक़ हो गया.”
जितेंद्र सिंह गायकवाड़ कहते हैं, “महाराजा प्रताप सिंह राव ने इंग्लैंड में घोड़े का फ़ार्म बनाया था. सीता देवी से तलाक़ के बाद वह वहीं रहे और साल 1968 में उनकी मौत हो गई.”
वालेस सिंपसन के साथ सीता देवी की बहस

प्रताप सिंह राव से तलाक़ के बाद सीता देवी ने बहुत सी क़ीमती चीज़ें बेच दीं. चंद्रशेखर पटेल कहते हैं कि उन्हें अपने ऐश के लिए पैसों की ज़रूरत थी. उनकी जीवन शैली बहुत भड़कीली थी. इसलिए उन्होंने अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कुछ क़ीमती चीज़ें बेच दीं.
किताब ‘वान क्लीफ़ एंड आर्पल्स: ट्रेज़र्स ऐंड लीजेंड्स’ में एक घटना का उल्लेख है जिसमें सीता देवी और डचेस ऑफ़ विंडर्स वालेस सिंपसन के बीच एक पार्टी में गहनों को लेकर झगड़ा हो गया.
उनका कहना था कि सीता देवी ने वह ज़ेवर बेच दिया था जो वालेस सिंपसन ने पहना हुआ था. वालेस सिंपसन ने उसको ख़रीद कर उसके डिज़ाइन में बदलाव किया था और कुछ नए हीरे और क़ीमती पत्थर उसमें शामिल किए थे ताकि यह जताया जा सके कि हार नया है.
मगर सीता देवी ने उसे पहचान लिया जिस पर सिंपसन को ग़ुस्सा आ गया.
हालांकि इस हार को बनाने वाले ज्वेलर ने भी इन आरोपों का खंडन किया लेकिन सिंपसन ने इस घटना से बेइज़्ज़ती महसूस की और उन गहनों को ज्वेलर को वापस कर दिया.
इस घटना के बाद सिंपसन और सीता देवी एक दूसरे के सामने आने से बचने लगीं. उस समारोह से पहले दोनों को पश्चिमी फ़ैशन में देखा गया था. पार्टियों की मेज़बानी शाही और अमीर लोगों ने की थी.
सीता देवी को सिगरेट पीने का भी शौक़ था. वह दुनिया के सबसे महंगे सिगरेट और सिगार पीती थीं. हवाना के सिगार उनके सबसे पसंदीदा सिगारों में से थे.
उनका सिगरेट केस वान क्लीफ़ ऐंड आर्पल्स ने डिज़ाइन किया था और उसमें क़ीमती पत्थर भी जुड़े हुए थे.
किताब ‘वान क्लीफ़ ऐंड आर्पल्स: ट्रेज़र्स ऐंड लीजेंड्स’ में लिखा गया है कि एक अफ़वाह यह भी थी कि उनकी ख़ूबसूरती का राज़ भारतीय शराब में छिपा हुआ था. यह अफ़वाह थी कि यह शराब मोर और हिरन के ख़ून, सच्चे मोतियों के पाउडर, केसर और शहद को मिलाकर तैयार की जाती थी.
जितेंद्र सिंह गायकवाड़ कहते हैं कि उनके बारे में बहुत सी नकारात्मक और अपमानजनक बातें लिखी गई हैं लेकिन वह ऐसी नहीं थीं. वह पढ़ी-लिखी और फ़ैशन आइकॉन थीं. उनमें समझदारी और बेमिसाल ख़ूबसूरती भी थी.
वह अपने बेटे की दुर्घटना में मौत के बाद सदमे में चली गई थीं और उस घटना के चार साल बाद सन 1989 में उनकी भी मौत हो गई.