आईएसडी नेटवर्क। आज आंवला नवमी का त्यौहार हैं। आज के युवा शायद ही इसके बारे में अधिक जानते हो क्योंकि ये उत्सव भी व्यस्तता और आधुनिकता की भेंट चढ़ता जा रहा हैं।आँवला नवमी को अक्षय नवमी भी कहा जाता हैं। क्योंकि आंवले को आयुर्वेद में फलो का राजा कहा गया हैं। ये उत्सव सनातन के पर्यावरण प्रेमी होने का एक और प्रमाण हैं क्योंकि आज आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती हैं। मनुष्य को प्रकृति से जोड़ने का उत्सव हैं आंवला नवमी।
ये उत्सव आते ही बचपन की यादें ताजा हो जाती हैं। इस दिन हम परिवार सहित और आसपास के परिचित परिवार सभी साथ मिलकर किसी परिचित की बाड़ी(जहाँ आंवला, अमरूद, बेर, इमली जैसे वृक्ष हो) में जाते थे। वहां पूजा के साथ पिकनिक भी हो जाया करती थी। सभी परिवार घर से भोजन बनाकर साथ ले जाते थे। सुबह से ही तैयारियां शुरू हो जाती। दिनभर पिकनिक चलती। अंताक्षरी जैसे खेल सब मिलकर खेलते।
आँवला, अमरूद या जो भी फल बाड़ी में मिलते खूब खाते बहुत आनंद आता। बचपन मे दीपावली के बाद आंवला नवमी की ही सबसे अधिक प्रतीक्षा रहती थी। ये उत्सव एक माध्यम था बच्चों को पर्यावरण, प्रकृति से सीधे जोड़ने का। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवला नवमी या अक्षय नवमी कहा जाता है। इस दिन से ही द्वापर युग की शुरुआत हुई थी। इस दिन दान-धर्म का अधिक महत्व होता है।
मान्यता है कि इस दिन दान करने से उसका पुण्य वर्तमान के साथ अगले जन्म में भी मिलता है। शास्त्रों के अनुसार, आंवला नवमी के दिन आंवला के वृक्ष की पूजा की जाती है। कहते हैं कि ऐसा करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। हिंदू पंचांग के मुताबिक कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि 01 नवंबर को रात 11 बजकर 04 मिनट से शुरू होकर 02 नवंबर, बुधवार को रात 09 बजकर 09 मिनट तक रहेगी।
उदया तिथि के हिसाब से 02 नवंबर को आंवला नवमी मनाई जाएगी। आंवला नवमी पूजन का शुभ मुहूर्त सुबह 06 बजकर 34 मिनट से दोपहर 12 बजकर 04 मिनट तक है