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India Speak Daily > Blog > Blog > स्वस्थ्य भारत > समस्या बाबा रामदेव नहीं भगवा उदय है!
स्वस्थ्य भारत

समस्या बाबा रामदेव नहीं भगवा उदय है!

Sonali Misra
Last updated: 2020/06/25 at 1:28 PM
By Sonali Misra 94 Views 7 Min Read
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7 Min Read
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वैसे तो उन्हें भगवा से चिढ़ है, उन्हें हर उस बात से चिढ है जो भारतीय हो. उन्हें हर उस चीज़ से चिढ़ है जो भारतीयता से जोडती है. और उन्हें हर उस चीज़ से प्रेम है जो उन्हें भारत से अलग करती है. उन्हें सफूरा जफगर से प्यार है और उन्हें साध्वी प्रज्ञा से नफरत है. यह नफरत गाहे बगाहे निकलती रहती है. पहले यह नफरत मोदी जी को गालियाँ देकर निकलती थी, उसके बाद यह नफरत योगी जी के भगवा वस्त्रों के माध्यम से निकलने लगी और फिर उसके बाद यह नफरत इन दिनों बाबा रामदेव पर सबसे ज्यादा निकल रही है.

पहले से ही बाबा रामदेव लेखकों के या कहें प्रगतिशील लेखकों के निशाने पर रहते हैं. वही प्रगतिशील लेखक, जिनकी कविताएँ ही बहुधा विचार के स्तर पर अनुवाद ही लगती हैं और कहानियों के नाम पर अधिकतर या तो मुस्लिम प्रेम से भरी होती हैं या फिर हिन्दू विरोध से.  सत्तर के दशक के बाद जैसे जैसे साहित्य में जैसे जैसे वामपंथियों का बोलबाला हुआ, वैसे वैसे वह लोग भारतीयता से कटते चले गए. भारतीय मूल्यों से दूर होते चले गए. समाज में हो रहे बदलावों को उन्होंने पश्चिम के नजरिये से देखा. हर चीज़ को पश्चिमी मूल्यों के हिसाब से और भारत विरोध की दृष्टि से देखा. जिनकी केवल भाषा ही हिंदी रही और भाव एवं विचार अंग्रेजी रहे. आखिर ऐसा क्या है जो उन्हें बाबा रामदेव से या फिर नरेंद्र मोदी या फिर योगी जी या फिर पूरे हिन्दू समाज से नफरत है.

इतना ही जो लोग बाबा रामदेव को कोस रहे हैं उनमें से अधिकतर लोगों की कविताएँ आम लोग पढ़ते ही नहीं हैं. वह गुटों के लेखक हैं, गुटों के कवि हैं, जिनका कोई संपर्क जनता के साथ नहीं है. अधिकतर की पृष्ठभूमि खंगालने पर कांग्रेस या वाम कनेक्शन निकलता है. जैसे ही बाबा रामदेव ने कोरोना की दवाई की घोषणा की वैसे ही अचानक से बाढ़ आ गयी नक्रारात्मक और कोसने वाली खबरों की. उनमें से वह भी पत्रकार सम्मिलित हैं जो कथित रूप से राष्ट्रवादी बनने का दावा करते हैं. पत्रकार संजय तिवारी ने तो बाबा रामदेव को फ्रॉडाचार्य कहा है और अपने आपको कथित रूप से निष्पक्ष पत्रकार कहने वाले पंकज चतुर्वेदी ने बाबा रामदेव के खिलाफ आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग करते हुए लाला करार दिया.

और जितने भी प्रगतिशील लोग जो अपनी प्रगतिशीलता में कट्टर हो गए हैं वह, अपने से विपरीत विचार को बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं हैं. इनमें ऐसी कट्टरता आती कहाँ से हैं? मैं सोचकर हैरान हो जाती हूँ. जो भी कथित प्रगतिशील कल से बाबा रामदेव को ठग, फ्रॉड या लाला कह रहे हैं, उनसे यह पूछा जाना चाहिए कि क्या एक बाबा को व्यापारी बनने का अधिकार नहीं है? क्या उद्यम करने का मूलभूत अधिकार बाबा होने पर छिन जाता है? मैं समझ नहीं पा रही हूँ कि समस्या किससे है? समस्या बाबा से है या आयुर्वेद से या भारतीयता से? समस्या की जड़ में क्या है? कोरोना काल में यह पूरा का पूरा गुट जब मंदिरों ने क्या मदद की का रोना रो रहा था, तब किसी ने भी यह सवाल नहीं किया या सुझाव नहीं दिया कि भारत में चर्च के पास जो इतनी जमीन है या इतनी बडी बड़ी मस्जिदें हैं उनमें कोरोना के लिए अस्पताल बना दिए जाएँ और न ही यह पूछा कि मस्जिदों ने क्या किया है?

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बाबा रामदेव ने कल जब अपनी दवाई लांच की तो उन्होंने किसी पत्रकार या लेखक से नहीं कहा कि वह उन्हें एंडोर्स करें. उस दवाई को मान्यता दें! क्या वह यह बोलने गए कि भाई हमारा प्रचार करिए! या उन्होंने लेखक या पत्रकारों का नाम इस्तेमाल किया. तो अचानक से ही उनपर निजी प्रहार क्यों होने लगे? कि बाबा काना है, सलवार पहनकर भागने वाला बाबा आदि? क्या ऐसा संविधान में लिखा है कि जिस व्यक्ति के एक आँख में समस्या हो वह व्यापार नहीं कर सकता? क्या औरंगजेब की कैद से शिवाजी मिठाई के टोकरे में बैठकर नहीं भागे थे? क्या कृष्ण जी नहीं भागे थे? क्या युद्ध में अपनी जान बचाना आवश्यक नहीं है? जिंदा रहेंगे तभी आगे की लड़ाई लड़ पाएंगे!

यह देखकर बहुत दुःख होता है कि खुद को जनता का लेखक कहने वाले लोग जनता की भावना नहीं समझते हैं. वह दवाइयों की उस लॉबी का हिस्सा बन रहे हैं, जो लॉबी आम जनता को हर रोज़ अपना शिकार बनाए जा रही है. अंग्रेजी दवा को नकार कर देशी दवाई विकसित करने का सपना उस व्यक्ति का था जिस व्यक्ति के नाम का इस्तेमाल कांग्रेस और कथित प्रगतिशील जमात करती है. अर्थात महात्मा गांधी जी!  महात्मा गांधी अस्पतालों को पाप की जड़ें बताते थे और पश्चिमी दवाइयों को धर्म भ्रष्ट करने वाली. उनका कहना था कि कोई भी पद्धति शत प्रतिशत का दावा नहीं कर सकती और हम अपने विश्वास से ही ठीक होते हैं. इसलिए देशी दवाइयों पर ही काम किया जाना चाहिए.

यदि वह आज होते तो इन विचारों के कारण वह भी प्रगतिशीलों का निशाना बनते! यह प्रगतिशील केवल और केवल हिन्दू धर्म के खिलाफ हैं, इनकी हर सांस में हिन्दू और भगवा विरोध है. बाबा रामदेव के विरोध के पीछे केवल यह हिन्दू विरोध ही है, और कुछ नहीं!   यदि कोई नियम के विरोध में काम हुआ है तो उसका फैसला सरकार करे या कोर्ट! बाबा या भगवा पर निजी प्रहार किसी भी प्रकार से स्वीकार्य नहीं है क्योंकि आपके द्वारा किया जा रहा विरोध केवल भगवा विरोध है!

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TAGGED: Baba Ramdev, Bhagwa, Coronavirus treatment, coronavirus vaccine, Coronil, Covid-19
Sonali Misra June 25, 2020
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Sonali Misra
Posted by Sonali Misra
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सोनाली मिश्रा स्वतंत्र अनुवादक एवं कहानीकार हैं। उनका एक कहानी संग्रह डेसडीमोना मरती नहीं काफी चर्चित रहा है। उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति कलाम पर लिखी गयी पुस्तक द पीपल्स प्रेसिडेंट का हिंदी अनुवाद किया है। साथ ही साथ वे कविताओं के अनुवाद पर भी काम कर रही हैं। सोनाली मिश्रा विभिन्न वेबसाइट्स एवं समाचार पत्रों के लिए स्त्री विषयक समस्याओं पर भी विभिन्न लेख लिखती हैं। आपने आगरा विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में परास्नातक किया है और इस समय इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय से कविता के अनुवाद पर शोध कर रही हैं। सोनाली की कहानियाँ दैनिक जागरण, जनसत्ता, कथादेश, परिकथा, निकट आदि पत्रपत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं।
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1 Comment 1 Comment
  • Avatar Pankaj chaturvedi says:
    June 25, 2020 at 3:32 pm

    किसी के बयान को कोट करना और उससे पक्ष नहीं जानना अनुचित है। लेखिका भगवा ध्वज ले कर घूमती हैं। शर्मनाक है कि ये लोग रामदेव को आयुर्वेद समझती हैं। यह धोखा नहीं तो और क्या है कि सर्दी खांसी की दवा का लाइसेंस ले कर कोरोना के नाम और बेचने की धोखाधड़ी इनको केवल इस लिए औराध नहीं लग रही क्योंकि लाला दामदेव साम्प्रदायिक भगवा पार्टी का चुनाव प्रचार करता है

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