क्या तापी गैस पाइपलाइन का निर्माण भारत के लिए सही है ? क्या भारत सरकार को इसे आगे बढ़ाना चाहिए ? मेरी हमारे प्रिय प्रधानमंत्री मोदी जी से अभी भी बहुत उमीदें हैं जिनमें से एक है कि वो तापी परियोजना को सदा के लिए ख़तम कर दे क्योंकि हो सकता है इस परियोजना से हमारी ऊर्जा जरूरतें भले ही सस्ती दरों पर पूरी हो जाये लेकिन देश हित और सुरक्षा के चलते ये परियोजना हमारे हित में कतई नहीं है और फिर आप ही तो अपने हर सम्बोधन में कहते हैं कि देश नहीं झुकने दूँगा। देश की सीमाओं की सुरक्षा मजबूत रखने का आपने दायित्व लिया हुआ है और हम भारतीय अभी भी आपके शब्दो पर यकीन करते हैं कि आप भारत की सीमाओं की सुरक्षा पर किसी से भी कोई समझौता नहीं करेंगे भले ही देश के भीतर आप 34 हज़ार करोड़ से अधिक ख़र्च कर दें।
मैंने पहले भी एक आर्टिकल लिखा था कि — तापी गैस पाइपलाइन एक असफल परियोजना है और रहेगी क्योंकि जहां – जहां से ये गुजरेगी वहां – वहां आप आने वाले बहुत सालों तक शान्ति की उम्मीद नहीं कर सकते। कोई भी बड़ी कई देशों के समझौतों की परियोजनाएं केवल तभी सफल होती हैं जब वहां शान्ति बनी रहे। इसी से आप बड़ी सहजता से समझ सकते हैं कि क्यों ये सफल नहीं होगी। इसके रोड मैप पर नज़र डालिए और देखिए रूस से शुरू होकर ये अफगानिस्तान होते हुए पाकिस्तान आएगी और फिर भारत के पंजाब राज्य के फाजिल्का से जुड़ेगी। ऐसे में ये जिस – जिस देश से गुजरेगी भारत उसका किराया साल – दर – साल चुकाता रहेगा। अब आप खुद ही सोचिये जिन्हें आप किराया देंगे वो उसी से हथियार खरीदेंगे और आपके LOC पर और आपके देश के भीतर आतंक मचाएंगे।
ये ठीक वैसा ही है जब ब्रिटिशर्स ने भारत के दो टुकड़े किये और जवाहर लाल नेहरु की कांग्रेस सरकार को 75 करोड़ रुपए पाकिस्तान को देने थे। क्योंकि उस समय आजाद भारत के खजाने में कुल 155 करोड़ रुपए थे। जिसे दोनों देशों के बीच बराबर बांटा गया था। भारत ने पाकिस्तान को 20 करोड़ रुपए पहले ही दे दिए थे। बाकी 55 करोड़ देना बाकी था। इसी बीच, कबाइलियों के वेश में पाक सेना ने 1948 में कश्मीर पर हमला बोल दिया। तब कश्मीरी हिन्दू राजा हरी सिंह ने इस हमले के खिलाफ भारत सरकार से मदद माँगी और कश्मीर का विलय भारत में किया। उसके उपरान्त ही तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल ने सख्ती दिखाते हुए तुरन्त कश्मीर में फौज भिजवाई थी और बाकि रुपयों की मदद रोक दी थी लेकिन आपको जान कर हैरानी होगी कि ऐसी स्थिति में भी महात्मा गाँधी ने अपनी ही सरकार को आमरण अनशन पर बैठने की धमकी दे डाली थी कि पाकिस्तान को जितनी जल्दी हो सके बचे हुए 55 करोड़ रूपये भी दो। कहा जाता है कि ये रुपए मांगे तो पाकिस्तान ने टेंट खरीदने के लिए थे, लेकिन उसने इनका इस्तेमाल भारत के खिलाफ किया और हथियार खरीदे। और आखिरकार हुआ भी वहीं जो वो चाहते थे। नेहरू की सरकार महात्मा गाँधी के सामने झुकी और पाकिस्तान को ये बचा हुआ रुपया दिया ये जानते हुए भी इन्हीं रूपये से और अधिक हथियार खरीद कर वो हमारे सैनिकों पर गोले -बारूद बरसायेंगे।
आपकी जानकारी के लिए बता दू कि तापी पाइपलाइन का नाम तुर्कमेनिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और इंडिया के नाम के पहले अक्षर को जोड़कर बनाया गया है। यह पाइपलाइन रूस से शुरू होकर इन चार देशों से होकर गुजरेगी। ऐसे में रूस की चाहत इस पाइपलाइन के जरिए दक्षिण एशियाई देशों की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करना है। इससे रूस का प्रभुत्व दक्षिण एशियाई देशों में काफी ज्यादा बढ़ जाएगा। गौरतलब है कि रूस पहले से ही चीन तक एक अलग गैस पाइपलाइन के निर्माण पर काम कर रहा है। ऐसे में तापी पाइपलाइन के बनने के बाद अरब सागर तक रूस की सीधी पहुंच हो जाएगी। यही कारण है कि रूस के राजनेता और अधिकारी इन दिनों अफगानिस्तान से लेकर पाकिस्तान और भारत का लगातार दौरा भी कर रहे हैं।
तापी गैस पाइपलाइन पर जहां रूस एक बार फिर से जोर लगा रहा है ताकि वो एशिया देशों तक सीधी अपनी पहुंच बना सके वहीं जनवरी 2022 में अफगानिस्तान में तालिबान के प्रवक्ता बिलाल करीमी ने कहा था कि अफगानिस्तान तापी परियोजना की सुरक्षा के लिए 30000 सदस्यों वाली फोर्स को तैनात करेगा। वहीं पाकिस्तान का कहना है कि वह भारत के साथ या भारत के बिना इस परियोजना को हर हाल में पूरा करना चाहता है। इस पाइपलाइन के निर्माण और सुरक्षा के लिए पाकिस्तान ने एक विशेष सैन्य टुकड़ी भी बनाने का प्रस्ताव दिया है। इस तरह से उन्हें एक और नया काम मिल जायेगा वैसे भी पाकिस्तान में बहुतायत व्यवसाय उन्हीं के हैं।
कुछ रिपोर्ट्स में बताया गया है कि तापी पाइपलाइन परियोजना से होने वाली कमाई अफगानिस्तान के कुल बजट का 80 से 85 फीसदी हो सकता है। इस कारण तालिबान भी इस परियोजना में अपनी दिलचस्पी दिखा रहा है। कुल मिलाकर तापी पाइपलाइन की लंबाई लगभग 1100 मील तक हो सकती है। इस परियोजना की परिकल्पना 1990 के दशक में की गई थी। हालांकि, उस समय इस परियोजना की अनुमानित लागत 10 अरब डॉलर आंकी गई थी, लेकिन अब यह कई गुना ज्यादा तक बढ़ गई है। 2018 में तापी पाइपलाइन के निर्माण पर काम शुरू हुआ, लेकिन सुरक्षा कारणों से जल्द ही बंद कर दिया गया था क्योंकि तब इस पाइपलाइन के निर्माण में शामिल श्रमिकों को अज्ञात हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। अब आप खुद ही सोचिये जहां – जहां अस्थिरता का माहौल हैं वहां – वहां से ये परियोजना निकलेगी तब क्या ये हमारे हित में है ?
यहाँ मेरे दिमाग में एक सवाल बार – बार आता है कि 1990 के दशक से लेकर अभी तक कई सरकारें आई और गई और यह परियोजना अभी तक पेपर में ही घूम रही है या आने वाले वक़्त में यह भारत के खिलाफ एक बड़ा षड्यंत्र साबित हो सकती है। जरा सोचिये उन्हें जब भी किसी अंतराष्ट्रीय मंच पर भारत से कोई बात मनवानी हो और वो कुछ अशांत देश भारत को धमकी दे कि अगर हमारे फेवर में ये नहीं किया तब इस पाइपलाइन की सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी नहीं तब क्या होगा ? न चाहते हुए भी भारत को उनकी बात माननी होगी क्योंकि हमारे लोगो को सस्ती गैस देना जो जारी रखना है वार्ना इंडियन जनता सस्ता या फ्री न मिलने पर सरकार बदलने में जरा भी देर नहीं करेगी। मतलब इस सस्ते के चक्कर में हमारी सरकार को अंतराष्ट्रीय मंच पर सामरिक समझौते करने पड़ सकते हैं।
Copyright Manu Chaudhary & Source – Many Media Reports