संदीप देव । 2009 में उस समय सोनिया गांधी की ‘मनमोहनी सरकार’ थी और वह दोबारा जीत कर आई थी, इसलिए एरोगेंट भी थी। उस समय महाराष्ट्र के NCP नेता प्रफुल्ल पटेल एविएशन मिनिस्टर थे।
उनके मंत्रालय ने जेट और किंगफिशर जैसी निजी विमान कंपनियों को फायदा पहुंचने के लिए एयर इंडिया को किस तरह बर्बाद किया, इस पर नयी दुनिया अखबार में मैंनै एक खोजी स्टोरी की श्रृंखला की थी, विमानों के टाइम-टेबल को खंघाल कर, जिनमें कुछ नीचे संलग्न है।
इस रिपोर्ट में आप पढ़ सकते हैं कि कैसे मंत्री से लेकर मंत्रालय तक को खुलकर एक्सपोज किया गया था। नयी दुनिया अखबार उस समय कांग्रेस की ओर झुका हुआ था, इसके बावजूद हमारे संपादक की ओर से हम पर कोई रोक-टोक नहीं थी कि यूपीए सरकार को एक्सपोज मत करो? या रिपोर्ट में सीधे मंत्री का नाम मत लिखो? हमारी यह एस्पोजर रिपोर्ट पहले पेज पर छपती थी, बिना काट-छांट के!
हां, रिपोर्ट के एक-एक पहलू की जांच होती थी और जब उसके फैक्ट से संपादक संतुष्ट हो जाते थे तो वह अपनी विचारधारा के विपरीत खबर को भी उचित पेज पर उचित सम्मान देते थे! आजतक की मालकिन कलिपुरी साफ तौर पर सत्ता की चापलूसी को आज जो पत्रकारिता बताकर जस्टिफाई कर रही है, असल में वह लोग केवल धंधा कर रहे हैं, न कि पत्रकारिता!
मेरी यह रिपोर्ट उस पीढ़ी के लिए है अथवा मेरे उन तथाकथित पत्रकार मित्रों के लिए है, जो कहते हैं कि 2014 से पहले कोई बोल नहीं पाता था!
मैं सब तो नहीं, लेकिन अगले कुछ दिनों में अखबार के दिनों की अपनी कुछ स्टोरी यहां पोस्ट करूंगा, जिससे आपको पता चले कि पत्रकारिता से मैंने कभी कोई समझौता नहीं किया है, और जिसकी सत्ता रही है, उसे एक्सपोज करने में कोई कोताही नहीं बरती है! यही एक पत्रकार का धर्म है!
व्यक्ति के रूप में एक पत्रकार किसी पार्टी का मतदाता होता ही है, पत्रकार चाहे तो किसी पार्टी में शामिल भी हो सकता है, परंतु पत्रकारिता पर उसका व्यक्तिपन व उसकी विचारधारा कभी हावी नहीं होनी चाहिए, यही पत्रकारिता की बारीक लाईन है, जिसे मिटा दिया गया है! पत्रकारिता अब पूरी तरह से धंधा है, जन-आवाज के उद्देश्य को उसने लगभग छोड़ ही दिया है!
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