संदीप देव। आप सभी को रामनवमी की ढेर सारी शुभकामनाएं! आज यदि समय मिले तो आप सब रामरक्षा स्तोत्र का पाठ अवश्य करें। वैसे भी जो लोग 107 श्लोक वाले विष्णु सहस्रनाम का पाठ नहीं कर पाते हैं, वो मात्र 38 श्लोक वाले रामरक्षा स्तोत्र का पाठ तो कर ही सकते हैं। वैसे रामरक्षाकवच लंबा है, लेकिन गीता प्रेस में 38 श्लोकों वाले संक्षिप्त रूप भी उपलब्ध है। वो ले लें।
नवरात्र में लगातार 9 दिन जो रामरक्षा स्तोत्र का पाठ करते हैं, उन पर कभी कोई विपत्ति नहीं आती। अतः अगले नवरात्र से इसका अभ्यास करें।
यदि प्रतिदिन पाठ संभव नहीं हो तो आप सप्ताह में एक दिन बुधवार या गुरुवार को इसका पाठ कर सकते हैं। बस ध्यान रामजी के चरणों पर केंद्रित रहे और आपका पूर्ण समर्पण उनके प्रति हो, फिर देखिए कमाल! आपका जीवन न बदल जाए तो कहिएगा!
रामरक्षा स्तोत्र के रचयिता बुधकौशिक ऋषि हैं। बुधकौशिक विश्वामित्र जी का भी एक नाम है। ऋग्वेद के तृतीय मंडल में 30वें, 33वें तथा 53वें सूक्त में महर्षि विश्वामित्र का वर्णन मिलता है। वहां से ज्ञान होता है कि ये कुशिक गोत्रोत्पन्न कौशिक थे।
विश्वामित्र क्षत्रिय थे और वह कौशिक राजा के नाम से राज करते थे। राजर्षि कौशिक का ब्रह्मर्षि विश्वामित्र बनने की कथा बड़ी विलक्षण है। श्रीराम-लक्ष्मण को राक्षसों के वध के लिए राजा दशरथ से मांग कर विश्वामित्र ही ले गये थे और श्रीराम को सारे दिव्यास्त्र उन्होंने ही दिए थे।
वैदिक ऋषि मंत्र रचते नहीं थे, बल्कि मंत्र के द्रष्टा थे। रामरक्षा स्तोत्र का एक श्लोक इसकी पुष्टि कुछ ऐसे करता है:-
आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर:।
तथा लिखितवान्प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक:।।
अर्थात्:- भगवान शंकर ने रात्रि के समय स्वप्न में इस रामरक्षा का जिस प्रकार आदेश दिया, उसी प्रकार प्रातः काल जगने पर बुध कौशिक ऋषि ने इसे लिख दिया।
विश्वामित्र जी के अलावा एक कौशिक मुनि का वर्णन महाभारत में भी आता है, जो सम्राट् युधिष्ठिर की सभा में थे और पुराणों में भी एक वेद विषारद कौशिक ब्राह्मण की चर्चा आती है। परंतु रामरक्षा स्तोत्र विश्वामित्र द्वारा रचित ही मानी जाती है।
रामरक्षा स्तोत्र का पाठ आपको हर विघ्न से बचाएगा। यदि 38 श्लोक का पाठ करने का समय आपके पास नहीं है और सारी पृथ्वी का भार आप ही वहन करते हैं, आपको लगता है कि आप यदि पाठ करने बैठ जाएंगे तो वायु की गति रुक जाएगी तो फिर ऐसी स्थिति में आप इसी रामरक्षा स्तोत्र के अंतिम श्लोक…
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने।।
इस एक श्लोक का पाठ ही 7, 9, 11, 18 या 108 पर कर लें, आपके द्वारा पृथ्वी का भार सहन करने की क्षमता और बढ़ जाएगी। यह एक श्लोक पूरे #विष्णु_सहस्रनाम का फल आपको प्रदान करता है।
बोलो सियावर रामचन्द्र जी की जय,
पवनसुत हनुमान जी की जय