Sonali Misra. एक ओर जहाँ कोविड 19 के प्रकोप से पूरा देश जूझ रहा है तो वहीं धर्मांतरण माफिया एक और ही चाल चल रहा है। अब तक वह लाखों हिन्दुओं को अपना शिकार बना चुका है। और कोविड-19 का प्रयोग वह ईसाई धर्म के प्रचार के लिए कर रहा है, जैसे हमें धर्मांतरण के विरोध अभियान चला रहे no conversion के ट्विटर हैंडल से सारी सूचनाएं प्राप्त होती हैं।
पर सबसे मजे की बात यह है कि रिलिजन माफिया अब अपने ही लोगों को कोविड का शिकार होने से बचा नहीं पा रहा है। उनके अपने ही लोग इस बीमारी से मारे जा रहे हैं। पहले इस बीमारी को यह कहकर प्रचारित किया गया कि यह संक्रमण केवल और केवल हिन्दुओं को मारने के लिए ही है, अर्थात काफिरों या पापियों को ही मारने के लिए है। तभी न ही ईसाई कब्रगाहों और मुस्लिम कब्रगाहों की तस्वीरें सामने आ रही हैं। यह संक्रमण केवल काफिरों को ही अपना शिकार बना रहा है, यह भ्रम पिछले दिनों सीवान के बाहुबली सांसद शाहबुद्दीन की मृत्यु से टूट गया और सामने आया सच कि यह संक्रमण ईमानवालों को भी निशाना बना ही रहा है।
अब बारी रिलिजन का धंधा करने वालों की। रिलिजन का धंधा करने वालों ने बार बार यह यही प्रचारित किया कि कोविड केवल उन्हीं के लिए है, जो यीशु के प्रिय नहीं हैं। फिर यीशु की आराधना करने वालों को ही कैसे नहीं बचा पाए यह लोग? और वह भी दक्षिण भारत में? और वह भी रिलीजियस आयोजन में? जहां पर केवल यीशु को ही मानने वाले लोग आए हों और जहां पर कोई भी पापी नहीं था, फिर भी यह वायरस आ गया और आया ही नहीं बल्कि दो पादरियों को अपनी जान से हाथ भी धोना पड़ गया। यहाँ पर यीशु उन्हें बचाने क्यों नहीं आए?
केरल में मुन्नार में 13-17 अप्रेल 2021 के दौरान चर्च ऑफ साउथ इंडिया क्राइस्ट चर्च सम्मलेन का आयोजन किया गया था। जिसमें लगभग 350 से अधिक लोगों ने भाग लिया था। यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि उन दिनों वहां पर कोविड प्रोटोकॉल लागू था और 100 से ज्यादा लोगों के सम्मिलित होने पर रोक थी। चर्च ऑफ साउथ इंडिया के ही एक सदस्य एवं सामजिक कार्यकर्ता साबू स्टीफें ने केरल मुख्य सचिव के सामने 30 अप्रेल को एक याचिका दायर की थी। इसमें शिकायतकर्ता ने यह आरोप लगाया था कि लगभग 100 लोग पॉजिटिव पाए गए हैं, जिनमें पादरी और उनके परिवार वाले भी शामिल हैं।
हालांकि अधिकारियों के अनुसार केवल 10 प्रतिशत लोग ही संक्रमित हैं एवं हर प्रोटोकॉल के अनुसार ही कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। परन्तु स्टीफेन इससे सहमत नहीं हैं। स्टीफेन का साफ़ कहना है कि “पादरी और उनके परिवार सहित लभग 100 लोग इस आयोजन के बाद संक्रमित हैं। सीएसआई साउथ केरल डियोसीज ने इस सालाना कार्यक्रम का आयोजन किया था जिसमें 350 से आधिक लोगों ने भाग लिया था और समुदाय के कई सदस्यों ने इस समय इस आयोजन को कराए जाने का विरोध किया था। पर उन्होंने यह बात नहीं मानी।”
अब जबकि न्यू इंडियनएक्सप्रेस की खबर के अनुसार दो पादरी इस आयोजन के चलते संक्रमित होकर अपने प्राणों से हाथ धो बैठे हैं, तो रिलिजन माफिया का यह भ्रम नहीं टूटना नहीं चाहिए कि यह वायरस केवल हिन्दुओं के लिए है? जबकि ब्राजील और अमेरिका में तो भारत से अधिक लोग मारे गए और मारे जा रहे है, वहां पर तो सब ईसाई ही हैं, तो यह वायरस वहां क्यों है? ब्रिटेन में कोरोना की दूसरी लहर में हज़ारों लोग मारे गए, क्या वह ईसाई नहीं थे?
रिलिजन माफिया यह बताने में नाकाम है कि आखिर उसके यीशु, जिनके नाम पर वह भोले भाले हिन्दुओं को पागल बना रहा है, वह इन पादरियों को बचाने के लिए क्यों नहीं आए क्योंकि वह तो उनके ही प्रिय बन्दे है? जब यह माफिया खुद इस बात को मान चुका है कि इन लोगों के लिए कोरोना काल बहुत ही ज्यादा सफल काल रहा है और उन्होंने कई लाखों लोगों को इस जाल में फंसाया है, तो वह अपने ही लोगों को मरने से क्यों नहीं बचा सके?
रिलिजन माफिया कभी भी यह नहीं बताएगा कि पिछले गुरूवार को 52 वर्षीय रेव बिजुमन एवं 43 वर्षीय रेवशाइन बी राज जो काझुकोडे में सीएसआई चर्च के पादरी हैं, वह इस वायरस का शिकार होकर मर चुके हैं. वह यह भी नहीं बताएंगे कि संक्रमित पादरियों का इलाज डॉ. समरवेल सीएसआई मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में चल रहा है और कुछ घर पर ही उपचार ले रहे हैं.
जलती हुई लाशों की तस्वीरें दिखाकर, हिन्दुओं को मानसिक और आध्यात्मिक रूप से तोड़ने की जो कोशिश हो रही है, यह घटना उस में एक रोड़ा है, तभी इस घटना को कहीं बताया नहीं गया। क्या ईसाइयों और मुस्लिमों को यह बीमारी छोड़ रही है? क्या वायरस केवल और केवल हिन्दुओं का शिकार कर रहा है? ऐसा लगता तो नहीं है और ऐसा है भी नहीं।
परन्तु चूंकि ईसाई रिलिजन माफिया को अपना धंधा चलाना है और मजहबियों को अपना तो वह इस संक्रमण को केवल हिन्दुओं की जान लेने वाला घोषित कर चुके हैं, तभी ईसाई मीडिया में केवल जलती लाशें हैं, रोते हिन्दू हैं, श्मशान घाटों के बाहर रखी गयी हिन्दुओं की लाशों की पंक्तियाँ हैं, पर कब्रगाहों की नहीं! वह नहीं दिखा रहे हैं, क्योंकि यदि दिखा दिया तो वह हिन्दुओं को तोड़ नहीं पाएंगे और अपने लोगों को बेवक़ूफ़ नहीं बना पाएंगे कि यह वायरस सभी की जान ले रहा है।
वह हिन्दुओं की जलती लाशों की तस्वीरों पर धंधा करना चाहते हैं, रिलिजन का धंधा! घर घर बाइबिल भेजने का धंधा, एक अधूरा प्रोजेक्ट, जिसे पूरा करने के लिए वह लगे हुए हैं और रूप बदल बदल कर आ रहे हैं. यह लोग यह नहीं बताते कि अमेरिका में अभी तक कितने लोग मारे जा चुके हैं. और कैसे मरीजों की लाशों का ढेर लगा हुआ था
शाहबुद्दीन की मौत ने ईमानवालों का यह भ्रम चकनाचूर कर दिया है क्योंकि अभी तक वह बेशक अपने लोगों को खो रहे थे, मगर बात बाहर नहीं आ रही थी। और विशेषकर रोहित सरदाना की मृत्यु के बाद जैसा भयानक उत्पाद रिलिजन और मजहबी माफियाओं ने किया, वह हैरान करने वाला था। मजहबी माफिया तो अगले दिन ही सहम गया, पर रिलिजन माफिया अपनी खबरें दबाने में लगा है। मजहबी मीडिया यह नहीं बताता कि कोरोना के कारण होने वाली मृत्यु के चलते नवम्बर तक में कब्रगाहों में स्थान नहीं थे. और आज भी नहीं हैं.
रिलिजन माफिया यह नहीं बताता कि बंगलुरु में ईसाई समुदाय कब्रिस्तान के लिए नई जगह मांग चुका है
यह शातिर लॉबी केवल और केवल भोले भाले हिन्दुओं का शिकार करने के लिए अपने भेड़िये जैसे दांत फैलाकर तैयार हो गयी है जबकि इसके अपने पादरी तक संक्रमित होकर मारे जा रहे हैं और पोप खुद इस संक्रमण से बचने के लिए वैक्सीन लगवा रहे हैं और यहाँ पर यह माफिया अपने जाल में फंसा रहा है और ईसाई एवं वामपंथी मीडिया इनकी सहायता कर रहा है.