आज अमेरिका से लेकर रूस तक सभी देश अपनी वैक्सीन का ट्रायल भारतीयों पर करेंगे और जब ट्रायल सक्सेसफुल हो जायेगा तभी अपने देशवासियों को वैक्सीन लगायेंगे। क्योंकि उनके देशवासियों की जान बहुमूल्य है और उनकी सरकारें इस प्रकार के आनन-फ़ानन में विकसित की गई वैक्सीन के प्रयोग से नागरिकों को सुरक्षित रखना चाहती है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति के प्रति उनकी जवाबदेही बनती है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत में किसी की कोई जवाबदेही नहीं बनती और यहाँ की जनता को गुमराह करना आसान है।
यहाँ लोगों की जान की क़ीमत 1 लाख से 5 लाख तक होती है और इसका संवेदी सूचकांक चुनावी सरगर्मी पर निर्भर करता है, वहीं विकसित देशों में कई बार सरकारें गिर जाती हैं और कम्पनियाँ तबाह हो जाती हैं। 1984, भोपाल गैस ट्रेजेडी जिसमें 15,000 से अधिक लोग एक ही रात में मर गये और 6,00,000 से अधिक लोग प्रभावित हुये, जिसमें कभी भी लोगों को न्याय नहीं मिला। जो जनता आपको राजा बनाती है उसके प्रति ऐसे संवेदनहीन भाव क्यों ?
बिल गेट्स ने कहा हर्ड इम्यूनिटी से खत्म नहीं होगी महामारी, वैक्सीन है जरूरी, उत्पादन में भारत की भूमिका अहम:। हर्ड इम्यूनिटी हिन्दी में इसे झुंड इम्यूनिटी कहा जा सकता है। यह प्राकृतिक इम्यूनिटी है। ‘हर्ड इम्युनिटी’ होने का मतलब है कि 70 से 90 फीसदी लोगों में किसी वायरस से लड़ने की ताकत को पैदा करना। ऐसे लोग बीमारी के लिए इम्यून हो जाते हैं। जैसे-जैसे इम्यून (रोगप्रतिरोधक क्षमता) वाले लोगों की संख्या में इजाफा होता जाएगा, वैसे-वैसे वायरस का खतरा कम होता जाएगा। इस वजह से वायरस के संक्रमण की जो चेन बनी हुई है वो टूट जाएगी और वो लोग भी बच सकते हैं जिनकी इम्युनिटी कमजोर है। अत: यदि हमें प्राकृतिक इम्यूनिटी किसी महामारी से नहीं बचा सकती तो क्या बिल गेट्स प्रस्तावित कृत्रिम वैक्सीन द्वारा विकसित इम्यूनिटी बचा पायेगी ?
बिल गेट्स ने हिन्दुस्तान टाइम्स को दिए ईमेल इंटरव्यू में कहा कि वैक्सीन में भारतीय दवा उद्योग की बड़ी भूमिका होगी, क्योंकि इसमें कम कीमत पर अच्छी गुणवत्ता के टीके का उत्पादन बड़े पैमाने पर करने की क्षमता है और दूसरी तरफ़ बिल गेट्स ने कहा कि उनके फाउंडेशन ने हाल ही में सीरम इंस्टीट्यूट को फंडिंग की घोषणा की है ताकि क्षमता का विस्तार करते हुए निम्न और मध्य इनकम वाले देशों के लिए 2021 में 10 करोड़ टीकों का उत्पादन कर सके। इससे यह स्पष्ट होता है कि बिल गेट्स भारतीय कम्पनियों के माध्यम से अपने इन्वेस्टमेंट को सुरक्षित कर रहे हैं।
बिल गेट्स से जब यह पूछा गया कि क्या वैक्सीन टीका वायरस से हमेशा के लिए सुरक्षित कर पाएगा? तो उन्होंने कहा कि यह अनुमान लगाना काफी जल्दबाजी होगी। इस समय हमारे पास एंटीबॉडी की अवधि और टी सेल रिस्पॉन्स को लेकर अधिक डेटा नहीं है। कई वैक्सीन का ट्रायल चल रहा है और अगले कुछ महीनों में वे प्रभाव को लेकर रिपोर्ट देंगे। तभी इन अहम सवालों का जवाब मिलेगा। वास्तविकता तो यह है कि जिस वैक्सीन के आसरे पूरा विश्व बैठा है अभी उसकी उपयोगी होने का ही प्रमाण पुख़्ता नहीं हुआ, उसके साइड इफ़ेक्ट का ज्ञान होना तो बहुत दूर रहा। अत: क्या किसी को इस प्रकार के वैक्सीन के ट्रायल की अनुमति मिलनी चाहिये ? सभी का जीवन बहुमूल्य है और किसी के जीवन का अंत इस प्रकार के बेबुनियाद ट्रायल में हो जाये तो अत्यंत निन्दनीय होगा।
क्या कोविड-19 वैक्सीन के बिना खत्म हो सकता है ? क्या हर्ड इम्यूनिटी वैक्सीन के बिना संभव है? इन सवालों के जवाब में गेट्स ने कहा कि जब लोग महामारी के प्रबंधन के लिए हर्ड इम्यूनिटी की बात करते हैं तो वे दो चीजों पर ध्यान नहीं देते। पहला यह कि लोगों को हर्ड इम्यूनिटी प्राप्त होने तक लोगों को बीमार होते रहने देने से लाखों-करोड़ों लोगों की मौत हो जाएगी। दूसरा यह कि हर्ड इम्यूनिटी हमेशा अस्थायी होती है, क्योंकि बच्चे बिना इम्यूनिटी के पैदा होते हैं और बीमारी कभी भी फिर आसानी से फैलने लगेगी। दोनों ही वजहों से वैक्सीन अहम है।
यह लोगों की जिंदगी बचाएगी और आने वाली पीढ़ियों को ऐसे अनुभव से नहीं गुजरना होगा। बिल गेट्स द्वारा दिये गये बयान में दोनों बातें ग़लत हैं – हर्ड इम्यूनिटी अस्थायी नहीं अपितु स्थाई तथा प्राकृतिक होती है। दूसरा, बच्चे की इम्यूनिटी उसी दिन से बनना शुरू हो जाती है जिस दिन एग और स्पर्म का फ़्यूज़न होता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण पूर्ण है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के आदेशानुसार कोरोना काल में होने वाली सभी प्रकार की मृत्यु को कोरोना में शामिल करने से यह आँकड़ा इतना बड़ा हो गया कि पूरी दुनिया भयभीत है। जिसके कारण वैक्सीन के ठेकेदार दुनिया पर हाबी होने का प्रयास कर रहे हैं और बेबुनियाद तर्क देकर लोगों को गुमराह कर रहे हैं।
वास्तविकता यह है कि कोरोना की कभी कोई वैक्सीन नहीं बन सकती, जिसके निम्न कारण हैं-
वैक्सीन के लिये सबसे ज़रूरी है कि जिसकी भी वैक्सीन बनानी है उसकी सही कैरेक्टर मैंपिंग हो, जो कोरोना के केस में संभव नहीं है क्योंकि कोरोना एक वाइरस नहीं अपितु पूरा परिवार है जिसमें 11 तरह के वाइरस हैं, दूसरा कोरोना निरंतर अपनी कैरेक्टर स्टिक्स बदल रहा है। पूर्व में चेचक, हैज़ा, मीजल्स, पोलियो, हेपेटाइटिस-बी आदि के वैक्सीन इसलिये बन पाये क्योंकि ये सभी स्टेबल हैं या कि बदलाव ना के बराबर है। वहीं एच आई वी का का आजतक कोई वैक्सीन नहीं बन पाया क्योंकि यह परिवर्तनशील है। हड़बड़ी में शॉर्टकट तरीक़े से बनाई जाने वाली ये वैक्सीन के साइड इफ़ेक्ट वाइरस के मुक़ाबले अधिक घातक सिद्ध हो सकते हैं।
मौजूदा कोरोना संकट का एकमात्र उपाय सिर्फ़ “सस्टेन्ड इम्यूनिटी” है। अत: वैक्सीन, थिरैपी और दवाओं का इंतज़ार ना करें और ना ही इन मौत के सौदागरों के ट्रायल हेतु अपने जीवन की आहुति दें।यदि कोरोना से स्वयं और अपने परिवार को बचाना चाहते हैं, तो उन सभी सुझावों का अनुसरण करना शुरू करें जिनसे इम्यूनिटी बढ़ती है।
कमान्डर नरेश कुमार मिश्रा
फाउन्डर ज़ायरोपैथी
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