संदीप देव । राम जन्मभूमि पर रामभद्राचार्य जी की भूमिका मीडिया और सोशल मीडिया में हमेशा चर्चा का विषय रही। इसलिए लोग बार-बार मुझसे यह पूछ रहे थे कि राम जन्मभूमि पर रामभद्राचार्य जी द्वारा अदालत में प्रस्तुत साक्ष्य के बारे में बताइए।
राम जन्मभूमि को लेकर रामभद्राचार्य जी का साक्ष्य चूंकि हाईकोर्ट में रद्द हो गया था, इसलिए वह समझौते से समाधान निकालने अथवा सरकार के अध्यादेश से मंदिर निर्माण चाहते थे।(वीडियो नीचे)
कोर्ट के निर्णय में तो यह दर्ज है ही, न्यायाधीश सुधीर अग्रवाल सार्वजनिक रूप से यह कह चुके हैं कि कोर्ट में रामभद्राचार्य जी की गवाही निरस्त हो गई थी।(वीडियो नीचे)
वहीं शंकराचार्य की पीठ की ओर से गठित ‘अखिल भारतीय श्रीराम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति’ की ओर से उनके वकील पीए.एन.मिश्रा ने स्कंद पुराण, वाल्मीकि रामायण, रूद्रयामल आदि से अकाट्य प्रमाण प्रस्तुत किए 28 दिनों तक हाईकोर्ट एवं 5 दिनों तक सुप्रीम कोर्ट में। SC के कि न्यायधीश जस्टिस चंद्रचूड़ वकील पी.एन.मिश्रा को सुनकर हक्के-बक्के रह गये थे और कहा था कि आप से हमलोगों को ज्ञान प्राप्त हो रहा है।(वीडियो नीचे)
स्कंद पुराण पर रामभद्राचार्य जी की भी मौखिक गवाही हुई थी, लेकिन उनका क्रास एग्जामिनेशन नहीं हुआ था। स्कंद पुराण पर रामभद्राचार्य जी शंकराचार्यों एवं अन्य पीठों के साथ थे। और उनकी यह गवाही स्वीकार हुई। लेकिन रामचरितमानस और तुलसी के ‘तुलसी दोहा शतक’ वाली उनकी गवाही निरस्त हो गई थी। रामचरितमानस में प्रभु राम के जन्म के वास्तविक स्थान का जिक्र नहीं है (नीचे कोर्ट के निर्णय का साक्ष्य) वहीं दोहा शतक को वह अदालत के समक्ष प्रस्तुत नहीं कर पाए।
बाद में स्कंद पुराण को लेकर ही विरोधी पक्ष की ओर से चुनौती दी गई।(मीडिया कटिंग नीचे) फिर स्कंद पुराण को अंग्रेज एडवर्ड के शिलालेख से ज्योतिष पीठ के वर्तमान शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी ने अपनी गवाही से साबित किया, जो कोर्ट के निर्णय में डिफेंस विटनेस नं-२ के रूप में उनके नाम के साथ दर्ज है।
यही नहीं, मुस्लिम पक्ष एवं विश्व हिंदू परिषद पक्ष जहां यह साबित करने में लगा था कि मंदिर बाबर या उसके सेनापति मीर बांकी ने तोड़ी थी, वहीं शंकराचार्य पीठ के वकील पी.एन.मिश्रा जी ने पूर्व IPS एवं तीन प्रधानमंत्री के कार्यकाल में अयोध्या के OSD रहे किशोर कुणाल की थिसिस की सहायता से यह साबित कर दिया कि मंदिर को बाबर ने नहीं औरंगजेब ने तोड़ा था। और इसके इतने प्रमाण प्रस्तुत किए कि सारा पक्ष हिंदुओं की ओर मुड़ गया। कोर्ट में औरंगजेब के कमांडर निकोलो मनूची की पुस्तक को इसके साक्ष्य के रूप में एडमिट भी किया गया है।(कोर्ट का निर्णय नीचे)
इससे वामपंथियों द्वारा कोर्ट और मीडिया में तुलसीदास जी पर किए गये उस हमले का भी जवाब मिल गया, जिसमें कहा जा रहा था कि यदि राम मंदिर बाबर ने तोड़े तो फिर तुलसी ने इसकी चर्चा अपने ग्रंथों में क्यों नहीं की! असल में तुलसी ने रामनवमी को रामचरितमानस लिखने का शुभारंभ ही राम जन्मभूमि पर बने मंदिर में बैठकर किया था। मंदिर उनकी मृत्यु के बाद तोड़ा गया तो वह कैसे पहले ही इसका जिक्र कर देते? बहुत सारे हिन्दू भी तुलसीदास जी पर आक्रमण करते थे, लेकिन कोर्ट के निर्णय ने बाबा तुलसीदास जी का भी सम्मान रख लिया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुस्लिम न्यायाधीश जस्टिस S.U. खान ने अपने फैसले में लिखा है कि मुस्लिम पक्ष इसे बाबरी मस्जिद साबित करने में नाकाम रहा है। वहीं हिंदू न्यायाधीश जस्टिस सुधीर अग्रवाल ने अपने फैसले में स्पष्ट लिखा कि दोनों पक्ष यह साबित करने में नाकाम रहे कि बाबर के समय मंदिर तोड़ा गया था।
यदि 2010 के हाईकोर्ट एवं 2019 के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को भारत का आम हिंदू पढ़ ले तो उसे अपने धर्मशास्त्रों, पुराण, वाल्मीकि रामायण और शंकराचार्य पीठ पर गर्व होगा। यहां तक कि ASI की रिपोर्ट पर भी स्कंद पुराण भारी पड़ा।
कोर्ट के निर्णय में ASI रिपोर्ट के लिए भी लिखा है कि वह बहुत कुछ स्पष्ट नहीं कर सका। इस फैसले के कारण बाबरी मस्जिद का वह फाल्स नरेशन गिर गया और धर्म शास्त्रों के साक्ष्य से स्पष्ट हुआ कि वहां प्रभु राम का जन्म हुआ था। यदि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के दिन के अखबारों की हेडलाइन आप देखें तो पाएंगे कि उन्होंने स्पष्ट लिखा है कि “स्कंद पुराण और वाल्मीकि रामायण के श्लोक बने राम जन्मभूमि के गवाह।”
हमारे शास्त्र टर्निंग प्वाइंट साबित हुए। मैं कोर्ट के 1045 पन्ने से एक-एक महत्वपूर्ण बिंदु को आपके समक्ष लाता रहूंगा। बस शर्त इतनी है कि पूर्वग्रह को त्याग कर सच स्वीकारना होगा।
मैंने स्वयं अपनी पुस्तक ‘राज योगी’ में संघ इतिहासकार को कोट कर जो फैक्ट लिखा था, वह आज कोर्ट के निर्णय के आलोक में झूठ साबित हुआ है। मैंने अपनी इस पुस्तक को ब्लूम्सबरी से लेने के बाद अपने प्रकाशन कपोत से इसीलिए भी नहीं छापा। बाजार में इसकी नयी कोई प्रति आपको नहीं मिलेगी। जो होगी वह पूर्व के ब्लूम्सबरी से ही छपी हुई। जब मैं स्वयं की गलती खुलकर स्वीकार कर सकता हूं, सत्य के लिए अपना आर्थिक नुकसान कर सकता हूं, अपने बनाए पूर्वग्रह पर स्वयं ही तथ्य से चोट कर सकता हूं, जब मैं स्वयं की ही आलोचना कर सकता हूं तो फिर मैं तथ्य से कोई समझौता नहीं करूंगा, यह आप मुझ पर विश्वास कर सकते हैं।
हालांकि जानता हूं कि जब दिमाग में बैठा और बना-बनाया नरेशन ध्वस्त होता है तो चोट लगती है, मन नये तथ्यों को स्वीकार नहीं करना चाहता, नये तथ्य को झुठलाने और इसे सामने लाने वाले को कोसने का मन करता है, लेकिन यही तो सत्य की शक्ति है। सत्य इतना आसान होता तो फिर इसकी यात्रा इतनी कठिन थोड़े न कही जाती हमारे धर्म शास्त्रों में! जयश्री राम। 🙏