नई दिल्ली। सिक्किम हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायधीश जस्टिस प्रमोद कोहली और दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एमसी गर्ग ने दिल्ली दंगों के पीछे सुनियोजित साजिश होने का दावा करती एक किताब का विमोचन किया।
रिटायर्ड जस्टिस कोहली ने कहा कि जम्मू कश्मीर से होने के नाते वो जानते हैं कि दंगा क्या होता है। उन्होंने कहा कि कश्मीर में बहन-बेटियों की अस्मत लूटी गई।
तमाम लोगों की हत्याएं हुईं। दिल्ली दंगा पीड़ितों की दास्तां सुनकर ऐसा लग रहा है कि इनके साथ इंसाफ नहीं हो रहा है। हम न्याय और आर्थिक सहायता के लिए पीड़ित लोगों की बात सरकार तक पहुंचाएंगे। वहीं दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एमसी गर्ग ने कहा कि वे दिल्ली दंगा के पीड़ित परिवारों की लड़ाई लड़ेंगे।
किताब के लेखक और वरिष्ठ टीवी पत्रकार मनोज वर्मा ने बताया कि एनोटोमी आफ ए प्लांट रायट को लिखने के पीछे उन तथ्यों को लोगों के सामने लाना है जो यह साबित करता है कि उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगे संयोग नहीं भारत विरोधी प्रयोग थे और इसकी प्रयोगशाला बनी दिल्ली।
सीएए विरोध के नाम पर दिल्ली में हिंसक प्रदर्शन,दंगे,पुलिस कर्मियों पर हमले गृह युद्ध जैसा प्रयोग था। इस प्रयोगशाला में नफरत थी। हार की हताश थी और राष्ट्र हित में एक एक कर हो रहे फैसलों से उपजी कुंडा थी। यह हताशा थी 2019 के चुनाव परिणाम की। दिल्ली का दंगा सामान्य दंगा नहीं था।
भारत विरोधी षडयंत्र था। इसके तीन कोण नजर आते हैं पहला देश के खिलाफ षडयंत्र, दूसरा देश की लोकतांत्रिक संसदीय और संवैधानिक व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह और तीसरा मीडिया मीडिया के एक वर्ग की फेक नकारात्मक भूमिका की ओर संकेत करता है दिल्ली के दंगों के पीछे अंतर्राष्ट्रीय साजिश थी। साजिश कई महीने पहले रची गई थी।
एनोटोमी आफ ए प्लांट रायट पुस्तक दिल्ली में हुए दंगों पर शोध आधारित तथ्यात्मक सामग्री है।यश पब्लिकेशन ने इसे प्रकाशित किया है। यह पुस्तक दंगे की खतरनाक अर्बन नक्सल-जिहादी गठजोड़ को परत दर परत खोलती है।
पुस्तक के दूसरे लेखक सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता संदीप महापात्रा ने बताया कि जब कोर्ट में सीएए को लेकर 150 से ज्यादा पिटिशन लगी हुई थी, तो उस समय योजनाबद्ध तरीके से कराए गए दंगे कानून को प्रभावित करने की कोशिश थी।
वहीं अधिवक्ता मोनिका अरोड़ा ने कहा कि जिस तरह दिल्ली में दंगे भड़काए गए, उसी तरह इस साल कृषि कानूनों को लेकर भी किसानों को भड़काया जा रहा है।
ग्रेटा थनबर्ग की टूलकिट अगर बाजार में नहीं आई होती तो फिर से दिल्ली दंगों जैसी स्थिति पैदा हो सकती थी। दिल्ली दंगों और किसान आंदोलन के बीच काफी समानता है।दोनों में एक ही तरह का नेतृत्व काम कर रहा है। इन दोनों आंदोलनों में कई चेहरे एक जैसे हैं।फॉर जस्टिस के संयोजक नीरज अरोड़ा ने दिल्ली दंगों की साजिश और उसके कारणों के बारे में विस्तार से बताया।