अनुज अग्रवाल. झारखंड की राजनीति विचित्र दौर से गुज़र रही है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को उनकी सहयोगी कोंग्रेस पार्टी के नेताओ ने परेशान कर रखा है। उनकी माँगे और दबाब बढ़ते ही जा रहे हैं। गंभीर वित्तीय संकट झेल रही सरकार के मुखिया के नाते हेमंत के लिए कठिन घड़ी है।
भाजपा की दबाब की राजनीति के तहत केंद्र से मिलने वाली मदद रुकी हुई है और जो पैसा राज्य का सामान्य हक़ है वे भी सोरेन नहीं ले पा रहे हैं। सरकार की कोई दिशा , विजन व नीति ही नहीं जिसके कारण नोकरशाही दिग्भ्रमित है।
माल कमाने की होड़ हर ओर है और ज़मीनो व खनिजो की लूट व्यापक पैमाने पर हो रही है। हेमंत सोरेन बड़े पारिवारिक झगड़ो में भी उलझे हैं तो बलात्कार के गंभीर मामले का भी सामना कर रहे हैं।
सही अवसर देख भाजपा अपनी सरकार बनाने के लिए साम, दाम, दंड ,भेद सभी उपाय अपना रही है। 25 विधायकों वाली भाजपा के साथ सहयोगियों को मिलाकर तीन और विधायक हैं। कुछ शर्तों के साथ सरयू राय भी आने के लिए तैयार हैं।
शेष 11 विधायकों के लिए कोंग्रेस पार्टी में बड़ी फूट की तैयारी चल रही है। कोंग्रेस के दो तिहाई विधायक पार्टी से अलग होकर भाजपा में शामिल होने को तैयार किए का रहे हैं। 6:5 के फ़ार्मूले पर सरकार बनाई जा सकती है।
यानि मुख्यमंत्री व छः मँत्री भाजपा से व पाँच मँत्री कोंग्रेस से आए विधायक। शेष को राज्य मँत्री के समकक्ष कोई पद। भाजपा की सक्रियता देखकर कोंग्रेस हाईकमान के इशारे पर चर्च सक्रिय हो गया है।
चर्च की कोशिशों से ही प्रदेश में गेर भाजपा सरकार बन पायी थी और इसके लिए चर्च ने भाजपा में फूट सहित सभी संभव कुचक्र किए थे।
चर्च को पता है कि आगे उसके लिए सरकार बना पाना मुश्किल होगा क्योंकि उसके खेल खुल गए है और आदिवासी समुदाय में चर्च के प्रति असंतोष व नफ़रत घर करने लगी है।
इसीलिए दो कोंग्रेसी विधायकों को ग़ायब करवा दिया गया है। यह किस रणनीति के तहत हुआ है इसका अभी खुलासा नहीं हुआ। भाजपा की टीमें भी मैदान में उतर चुकी हैं और उम्मीद है कि अन्तत: अगले कुछ दिनो में झारखंड में कमल खिल ही जाएगा।
कोई बड़ी बात नहीं कि सरकार गिरती देख हेमंत सोरेन हाई भाजपा से गठबंधन कर ले। जहाँ तक मुख्यमंत्री के नाम का सवाल है तो बाबू लाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, रघुवर दास अपने अपने दावे ठोक रहे हैं मगर बाज़ी किसी नए आदिवासी चेहरे की लग सकती है। इसमें पूर्व मंत्री रहे अमर बाउरी का नाम सबसे आगे चल रहा है।