दिल्ली दंगे के दौरान कुछ पत्रकारों ने एक खास एजेंडे के तहत न केवल अफवाह फैलाया था बल्कि एक तरफा रिपोर्टिंग भी की थी जामिया हिंसा से लेकर उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए बवाल और दंगे में राजधानी कई दिन तक सुलगती रही और कथित पत्रकारों का एक वर्ग लगातार झूठ परोसती रही। सियासी एजेंडे के तहत रोटियां सेकने वालों में देसी- विदेशी मीडिया भी शामिल रही जबकि दंगे के दौरान कुछ पत्रकारों पर पक्षपात पूर्ण रिपोर्टिंग के चलते हमला भी किया गया था।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि जिस वक्त जामिया से नागरिक कानून के विरोध में हिंसा की शुरुआत हुई थी, उस वक्त कुछ खास पत्रकारों ने अफवाह फैलाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ रखी थी। ऐसे पत्रकार अपने मजहबी और सेक्यूलर चश्मे से इस नए कानून के विरोध में रिपोर्टिंग की आड़ में प्रदर्शन में भी परिजनों समेत हिस्सा लिया था।
वह इस गैरकानूनी प्रदर्शन को देश की आजादी मिलने के आंदोलन से बड़ा बताते हुए उस समय मर मिटने के लिए भी आमादा थे। ऐसे ही कुछ कथित पत्रकार पुलिस के व्हाट्सएप ग्रुप में भी मौजूद रहकर कई बार प्रदर्शन को लेकर झूठी सूचनाएं लगातार मुहैया कराते रहें ताकि झूठ को इस कदर फैलाया जा सके, जिससे अन्य मीडिया भ्रमित होकर मुस्लिमों से सहानुभूति जताते हुए उनके पक्ष में रिपोर्टिंग करने को मजबूर हो जाएं।
ऐसे कथित पत्रकारों को कई बार फजीहत भी झेलनी पड़ी लेकिन कई बार की चेतावनी के बावजूद उनकी आदत में कोई सुधार नहीं आया था। आपको यह बात और भी हैरान करेगी कि मीडिया के एक खास वर्ग ने पूरे दंगे को लेकर यह मिथक भी फैलाने की कोशिश की थी कि यह लड़ाई हिंदू और मुसलमानों के बीच है। यही वजह था कि एनडीटीवी के एंकर रवीश कुमार ने दंगे में सरेराह फायरिंग करने वाले दंगाई शाहरुख को हिंदू युवक अनुराग बताकर फेक न्यूज का धंधा तक चलाया था।
इतना ही नहीं पक्षपात पूर्ण रिपोर्टिंग के चलते कुछ मीडिया वर्ग ने दंगों में मारे गए मुसलमानों के नाम तो अपनेेे लेख में लिखे लेकिन क़त्ल किए गए हिंदुओं का कोई जिक्र करना मुनासिब नहीं समझा। एक खास एजेंडे के तहत पीत पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों ने भाजपा नेता कपिल मिश्रा के सड़क खाली करवाने संबंधी बयान को तो बता चढ़ाकर पेश किया और उसे दंगों की मुख्य वजह बताया, लेकिन आप के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन की हिंसक हिंदू विरोधी भूमिका, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में पढ़ने वाला शरजील इमाम, उमर खालिद आदि के देश के टुकड़े- टुकड़े करने बाले इस्लामिक चेतावनी, केजरीवाल -मनीष ,राहुल सोनिया-प्रियंका के नए कानून के विरोध में आर-पार की लड़ाई वाले भड़काऊ बयान, ओवैसी के पार्टी के नेता वारिस पठान की 15 करोड़ वाली धमकी तथा आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह खान के जहरीले भाषण को दरकिनार कर दिया गया।
यह सोची समझी साजिश का ही एक हिस्सा था कि जामिया में जब हिंसा और आगजनी हुई तो इसका आरोप पुलिस पर मढ़ा गया और उपद्रवी भीड़ को जब तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने जामिया कैंपस में घुसकर बल प्रयोग किया तो इसके बचाव में कई सफेदपोश पुलिस को कटघरे में खड़े करने के लिए सामने आ गए थे। उत्तर पूर्वी दिल्ली के जाफराबाद, सीलमपुर समेत आसपास के इलाकों में जब दंगे ने विकराल रूप लिया तब पक्षपात पूर्ण रिपोर्टिंग के चलते ही मुस्लिमों के घरों में घुसकर तोड़फोड़ की चर्चा तो की गई लेकिन हिंदुओं को उनके घरों में घुसकर मार दिए जाने और लूटपाट की कई घटनाओं को दबा दिया गया।
देश में मीडिया का एक खास वर्ग झूठ परोसने में आगे तो रही ही, विदेशी मीडिया में भी यह कहने की कोशिश की गई की प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और दिल्ली पुलिस आदि ने मिलकर मुसलमानों पर बड़े जुल्म ढाए है और उन्हें मुसलमानों का दुश्मन करार दे दिया गया।
अब जबकि पुलिस जांच में दिल्ली के इस दंगे को सुनियोजित बताया गया है तो भी ये अपना भारत और हिंदू विरोधी एजेंडा जारी रखे हुए हैं। उस समय इस सुनियोजित दंगे को ‘हिंदू दंगा’ का नाम देकर देश और दुनिया में भारत को बदनाम करने की हरसंभव कोशिश की गई थी। इसी तरह की पक्षपात पूर्ण रिपोर्टिंग केे चलते जामिया हिंसा से लेकर जाफराबाद की गलियों में दंगेे के कवरेज के दौरान कथित पत्रकारों पर हमला भी किया गया।
एक ऐसे ही कथित पत्रकार ने उस समय यह कह कर सनसनी मचा दी थी कि कुछ हिंदू उन्मादियों ने उसे रिपोर्टिंग के दौरान मुस्लिम समझ कर उनकी पैंट नीचे करने की धमकी दी थी ताकि उन्हें यह पता चल सके कि मैं हिन्दू हूं या मुस्लिम।
बाद में इस कथित पत्रकार ने दावा किया था कि हाथ जोड़ कर विनती करने के बाद उन्हें हिंदू उग्रपंथ्यों ने भली-भांति छोड़ दिया था। इस घटना को लेकर एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने हमले पर “गंभीर चिंता” व्यक्त करने हुए एक बयान जारी किया था जिसमें कहा गया है, “पत्रकारों पर हमला प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला जैसा है और ऐसी हिंसा में शामिल लोगों के खिलाफ ज़रूर कार्रवाई होनी चाहिए लेकिन उन्हें यह नहीं पता की कवरेज की आड़ में कौन सा एजेंडा चलाया जा रहा है।
दिल्ली पुलिस का कहना है कि ऐसे पत्रकार जो झूठ फैलाने में आगे थे, उनकी भूमिका को लेकर भी जांच की जा रही है ।