विपुल रेगे। ज्ञानवापी, मथुरा, अयोध्या और क़ुतुब मीनार की तरह ही मध्यप्रदेश की भोजशाला का मुद्दा भी प्राचीन काल से विद्यमान है। भोजशाला एक आराध्य स्थल होने के साथ शिक्षा का मंदिर भी था। इसी स्थान पर सरस्वती का प्रकटीकरण होने के बाद महान राजा भोज ने भोजशाला का निर्माण करवाया। ज्ञानवापी का सत्य सामने आने के बाद धार की भोजशाला को स्वतंत्र करने की मांग फिर ज़ोर पकड़ने लगी है। यदि यहाँ भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण सर्वे करवाता है तो साक्ष्यों को खोजने के लिए अधिक श्रम करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। हालाँकि फ़िलहाल हिन्दू पक्ष ने भोजशाला में नमाज़ रोकने के लिए याचिका दायर कर दी है।
ज्ञानवापी के सर्वे की आज्ञा मिलने के बाद मध्यप्रदेश से भी हिन्दू फ्रंट फॉर जस्टिस की ओर से एक याचिका दायर की गई थी। याचिका में अनुरोध किया गया कि भोजशाला के अंदर नमाज़ अदा करने पर रोक लगाई जाए। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने इस याचिका को स्वीकार कर लिया है। याचिका में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा जारी उस आदेश को चुनौती दी गई, जिसमे उसने भोजशाला परिसर में नमाज़ अदा करने की अनुमति दे दी थी।
उसके बाद से ही इस स्थान को लेकर लगातार विवाद चला आ रहा है। शुक्रवार को मुस्लिम पक्ष आकर नमाज़ पढता है और मंगलवार को हिन्दू पक्ष आकर पूजन करता है। यही स्थिति वर्षों से चली आ रही है। कभी शुक्रवार के दिन वसंत पंचमी पड़ जाती है तो प्रदेश सरकार यहाँ सीआरपीएफ तक लगा देती है। हालाँकि शुक्रवार को वसंत पंचमी पड़ने के बाद भी राज्य सरकार वहां नमाज़ अदा करवाना नहीं भूलती है।
धार जिले को प्रदेश के साम्प्रदायिक रुप से संवेदनशील जिलों में गिना जाता है। आज भी यहाँ के हिन्दू पक्ष की मांग यही है कि भोजशाला स्वतंत्र होनी चाहिए। भोजशाला प्रकरण का इतने वर्षों में सुलझ न पाने का कारण यहाँ की राज्य सरकार का ढुलमुल रवैया भी रहा है। मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह के बाद से लगातार भाजपा ही सत्ता में रही है और सत्ता में रहते हुए उसने कभी भोजशाला प्रकरण के निराकरण के लिए सकारात्मक प्रयास नहीं किये।
भोजशाला के इतिहास की टाइमलाइन
* सन 1034 में राजा भोज ने भोजशाला का निर्माण करवाया
* सन 1305 से 1401 के मध्य अलाउद्दीन खिलजी और दिलावर खां गौरी के आक्रमणों से भोजशाला नष्ट हो गई।
* औरंगजेब की मृत्यु के 66 साल बाद 1773 में धार मालवा पर मराठों का आधिपत्य हुआ। स्थानीय शासकों ने मुस्लिम समुदाय को भोजशाला प्रांगण नमाज़ अदा करने के लिए दे दिया। उस समय तक भोजशाला खंडित अवस्था में थी और वहां पूजन-अर्चन बंद हो चुका था।
* सन 1902 में भोजशाला परिसर में ही वाग्देवी की छुपाई हुई प्रतिमा अंग्रेज़ों को मिल गई। लॉर्ड कर्जन अपने साथ वाग्देवी की प्रतिमा लंदन म्यूजियम ले गया, जो आज भी वहीं रखी हुई है।
* भोजशाला में इसके बाद भी नमाज़ पढ़ने के प्रयास होते रहे लेकिन हिन्दू महासभा और आर्य समाज ने उन प्रयासों को विफल कर दिया। सन 1930 में भी भोजशाला में नमाज पढ़ने की कोशिश की गई थी।
* 12 मई 1997 को मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख़्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने मुसलमानों को भोजशाला में नमाज पढ़ने की अनुमति प्रदान कर दी। धार के हिन्दू समाज ने इस निर्णय का घोर विरोध किया। मुख्यमंत्री को लगातार ज्ञापन दिए गए लेकिन यथास्थिति कायम रही।
* सन 2000 में भोजशाला में यज्ञ और महाआरती का आयोजन हुआ। इस आयोजन में हज़ारों लोगों ने भाग लिया। इसके बाद 2001 से लेकर 2003 तक दिग्विजय सिंह ने वसंत पंचमी पर होने वाले आयोजनों को रोकने के लिए षड्यंत्र किया। वर्ष में एक दिन होने वाली सरस्वती पूजा पर प्रतिबंध लगा दिया गया। बहुत से हिन्दू कार्यकर्ताओं पर प्रकरण दर्ज किये गए।
* इस पर देशभर में तीखी प्रतिक्रिया हुई। संपूर्ण भारत में आंदोलन शुरु हो गया। इस आंदोलन को निर्ममता से कुचलने का प्रयास हुआ। दरिंदगी इस कदर थी कि जेल में महिलाओं को मारा गया। दिग्विजय सिंह ने सारी सीमाओं को पार करते हुए आंदोलन में भाग लेने वाले तीन सौ से अधिक लोगों पर कर लगाया। इस कर का कुल योग एक करोड़ सोलह लाख से अधिक था। इस कर की वसूली के लिए कलेक्टर गांव-गांव जाकर हिन्दू कार्यकर्ताओं को अपमानित करते थे।
* 8 अप्रैल 2003 को हिन्दुओं को एक बार फिर भोजशाला में पूजा का अधिकार मिल गया। अब हिन्दू मंगलवार को जाकर वहां पूजा कर सकते थे। सन 2004 में धार में वसंत पंचमी हर्षोल्लास के साथ मनाई गई।
* 29 नवंबर 2005 को शिवराजसिंह चौहान मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने। लोगों को आशा थी कि उनके आने के बाद भोजशाला का विवाद सुलझेगा और हिन्दुओं को उनका अधिकार मिल जाएगा। हालाँकि ऐसा नहीं हुआ। सन 2006 में हिन्दुओं की हितैषी भाजपा सरकार ने भोजशाला में हिन्दुओं को निर्दयता से पिटवाया। बुजुर्गों तक को नहीं छोड़ा गया। हज़ारों हिन्दुओं को चोट आई और सैकड़ों गंभीर रुप से घायल हुए। जिसने उस दिन धार में शिवराज सिंह चौहान का दमन चक्र देखा, उसे जलियांवाला बाग़ काण्ड की स्मृति हो आई थी।
* तबसे लेकर अब तक भोजशाला में हर शुक्रवार को नमाज पढ़वाई जाती है। भोजशाला को लेकर शुरु हुए आंदोलन को धीमे-धीमे षड्यंत्रपूर्वक कुचल दिया गया। अब तो ये हाल है कि मंगलवार को बमुश्किल पचास हिन्दू पूजन के लिए जुटते हैं। सन 2006 में अपनी ही सरकार द्वारा किये गए दमन के बाद स्थानीय हिन्दू नेताओं का मन भी टूट गया। तबसे आज तक भोजशाला में नमाज के दौरान महत्वपूर्ण पुरातात्विक साक्ष्य मिटाए जा रहे हैं।
लेख जारी रहेगा
मंगलवार को बमुश्किल 50 हिन्दू “नमाज” के लिए जुटते हैं।
बहुत आभार प्रकाश जी। सुधार कर दिया गया।
जी ५० हिन्दू…. नमाज
सुधार किजिए
बहुत आभार । सुधार कर दिया गया।