संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान दिल्ली में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी की लगातार आवाजाही को लेकर उनकी पार्टी के एक सांसद का कहना था कि कोलकाता से दिल्ली महज दो घंटे की दूरी पर है और इसलिए दीदी राज्य और देश से जुड़े मुद्दों को उठाने के लिए इसी प्रकार दिल्ली के दौरे करती रहेंगी।
लेकिन जनता की समस्याओं को खोजने के लिए हजारों किलोमीटर की यात्रा पर निकलीं ममता जी को अपने दफ्तर से महज 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जलता हुआ धूलागढ़ नजर नहीं आया जहाँ समुदाय विशेष ने मजहबी कट्टरता के चलते हिन्दुओं के सैकड़ों घरों और दुकानों को फूंक दिया, उनकी सम्पत्ति को तबाह कर डाला और लूटपाट का जमकर तांडव मचाया। मुख्यमंत्री बनर्जी की तुष्टिकरण की नीतियों से पोषित प्रशासन ने भी हिन्दुओं के खिलाफ दंगाइयों को प्रोत्साहन दिया। जहाँ अपराधी धूलागढ़ में खुलेआम घूम रहे हैं वहीँ उन्होंने भाजपा के केंन्द्रीय प्रतिनिधि मंडल को क़ानून व्यवस्था का हवाला देकर दंगा स्थल पर जाने से रोक दिया।
सत्ता में हर हाल में बने रहने के लिए जब तृणमूल जैसे राजनैतिक दल तुष्टिकरण को राज्य की नीति बना लेते हैं तब उसका अंजाम धूलागढ़ दंगों के रूप में सामने आता है जहाँ शांतिपूर्ण तरीके से रह रहा समुदाय धार्मिक कट्टरता की आग में भस्म हो जाने को विवश हो जाता है। देश के बहुसंख्यकों के साथ त्रासदी केवल तुष्टिकरण की दहलीज पर ही खत्म नहीं हो जाती बल्कि इससे भी बड़ा जुल्म उन पर तब होता है जब राष्ट्रीय मीडिया भी बहुसंख्यकों के खिलाफ होने वाले सांगठनिक अपराध को महत्वहीन मानता है और अगर वो इसे रिपोर्ट करता भी है तो किसी कोई छिटपुट घटना की तरह अथवा जिससे असल अपराधी का चेहरा और संगठन का नाम आम लोगों के सामने न आ सके।
राष्ट्रीय स्तर की नेत्री बनने की महत्वकांक्षा की खातिर उनके पास खूब समय और संसाधन हैं लेकिन अपने ही राज्य के लोगों के जान और माल की रक्षा के लिए उनके पास समय और सोच नहीं है। ये हमारी व्यवस्था का दुर्भाग्य है जहाँ विभाजनकारी मानसिकता की सोच लिए कुछ लोग सत्ता के शीर्ष पर पहुँच जाते हैं।