रामेश्वर मिश्र पंकज। समाजवाद के नाम पर फैलाए गए अज्ञान और कुशिक्षा के कारण सामान्य भारतीय शिक्षित व्यक्ति को संसार के बारे में विचित्र विचित्र धारणाएं हैं। उदाहरण के लिए उस ने मान लिया है कि ईसाई लोग किसी परमेश्वर की ही ईशा के प्रभु के नाम से उपासना करते हैं जबकि सत्य है कि उनके गॉड का सर्वव्यापी कण-कण में वास कर रहे परमात्मा से कोई संबंध नहीं अपितु वह अपने एक आराध्य देव का आश्रय लेकर शेष सबको दमित और वशवर्ती बनाना चाहते हैं। इस प्रकार भारतीय दृष्टि से ईसाइयत कदापि आध्यात्मिक नहीं अपितु एक नास्तिकपंथ है!
यह सही है कि मार्क्स ने ईसाईयत को अफीम कहा था! जो कि वह है। रिलीजन से मार्क्स का आशय केवल ईसाईयत था परंतु यह भी विश्व में सभी लोग जानते हैं कि कम्युनिज्म ईसाइयत का ही एक परिशिष्ट है। उसने theology की जगह आइडियोलॉजी को रख दिया और चर्च की जगह स्टेट को रख दिया। बाकी सब चीजें उसने ईसाईयत से उधार लीं। यह तो हुई मार्क्स के चिंतन की बात।
उसके बाद लेनिन और स्टालिन के नेतृत्व में विश्व के सबसे पिछड़े और टेक्नोलॉजी की दृष्टि से सामंत युग में रह रहे समाजों में मार्क्सवाद की आड़ लेकर जो क्रांति हुई उसका मार्क्स के विचारों से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं था, वस्तुतः अनेक ईसाई पादरियों ने शुरू में लेनिन और स्टालिन की मदद की थी। इन दिनों मार्क्सवाद विश्व से समाप्त है। रूस पूरी तरह मार्क्सवाद विरोधी हो चुका है और चीन में जो मार्क्सवाद है वह ‘चूं-चूं का मुरब्बा’ है।
सोवियत संघ का सहारा छिन जाने के बाद भारत के सभी कम्युनिस्ट मुस्लिम अलगाववादियों और ईसाई पादरियों से सांठगांठ कर भारतीय राज्य को और हिंदू समाज को तोड़-फोड़ कर नष्ट कर डालने की रणनीति पर साझा रूप से काम कर रहे हैं। उड़ीसा में आचार्य महंत लक्ष्मण दास जी को कम्युनिस्टों ने ईसाइयों के संकेत पर मारा। भारत में अनेक स्थानों पर ईसाई पादरी और कम्युनिस्ट आपराधिक तत्व मिलजुल कर काम कर रहे हैं और इस्लामी अलगाववादियों की भी इन दोनों से सांठगांठ है।
अनेक भोले भारतीय, ईसाईयत को सनातन धर्म की ही तरह का या उससे मिलता जुलता कोई धर्म पंथ मान लेते हैं और कम्युनिस्टों को नास्तिक समझ कर उन्हें ईसाइयत का विरोधी मान लेते हैं जबकि ईसाईयत और कम्युनिज्म एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। दूसरी ओर यूरोप के प्रबुद्ध लोग कम्युनिज्म को पूरी तरह अस्वीकार करते हैं और ईसाइयत को भी एक सीमा से आगे महत्व नहीं देते। इस प्रकार केवल प्रबुद्ध यूरोपीय ही हिंदुओं के और भारत के मित्र हैं।
नोट- रामेश्वर मिश्र पंकजजी एक इतिहासकार हैं। यह लेख उनके फेसबुक वॉल से साभार लिया जा रहा है। इसमें वर्णित विचार पूर्णत: उनके हैं।
URL: Do Communism and Christianity have common anything?
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