23 मई को चुनाव के नतीजे आ जाएंगे। हार की आशंका से हताश विपक्ष पहले ईवीएम पर हमला कर रहा था, अब मुख्य चुनाव आयुक्त पर ही हमलावार है। इसमें विपक्ष खासकर कांग्रेस ने अपने ‘पालतू पेटीकोट पत्रकारों’ को ठेके पर लगा दिया है, जो संविधान एवं कानून की गलत व्यख्या कर चुनाव आयोग पर झूठा आरोप लगा रहे हैं। अभिसार शर्मा, रवीश कुमार जैसे लोगों को न तो कानून की समझ है, न संविधान की, बस कांग्रेस ने जो भोंपू थमा दिया है, वही बजाना है।
दरअसल चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त सहित तीन सदस्य होते हैं। तीनों सदस्यों का अधिकार व शक्तियां समान होती है। आयोग के अंदर निर्णय बहुमत से लिए जाते हैं। चुनाव आयोग के एक सदस्य अशोक अलावा अचानक से निकल आए और मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा को पत्र लिखकर आरोप लगा दिया कि उनके विरोध को दर्ज नहीं किया जा रहा है।
अशोक लवासा का आरोप है कि आचार संहिता को लेकर चुनाव आयोग ने भाजपा खासकर प्रधानमंत्री मोदी व भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को लेकर अलग रुख अपनाया और विपक्ष के नेताओं को लेकर अलग रुख अपनाया। इसे लेकर उन्होंने विरोध किया, लेकिन उनके विरोध को दर्ज नहीं किया गया। इसी बात को लेकर उन्होंने 4 मई को मुख्य चुनाव आयुक्त को पत्र लिखा था। लवासा ने यह भी लिखा है कि ‘जब मेरे अल्पमत को दर्ज नहीं किया जा रहा तब आयोग में हुई बैठकों में मेरी हिस्सेदारी का कोई मतलब नहीं है।’ इसे ही कांग्रेस और पेटीकोट पत्रकार उछाल रहे हैं।
उधर मीडिया में खबर आने के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त ने बयान जारी कर इसे गैरज़रूरी विवाद बताया है। मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने कहा है,
“आदर्श आचार संहिता को लेकर चुनाव आयोग की आंतरिक कार्यशैली के बारे में आज मीडिया के एक हिस्से में अनावश्यक विवाद की ख़बरें आई हैं । ” सुनील अरोड़ा ने अपने बयान में कहा है, “चुनाव आयोग में तीनों सदस्य एक दूसरे के क्लोन नहीं हो सकते। ऐसे कई मौक़े आए हैं जब विचारों में मतभेद रहा है । ऐसा हो सकता है और होना भी चाहिए, लेकिन ये बातें चुनाव आयोग के अंदर ही रहीं । जब भी सार्वजनिक बहस की ज़रूरत हुई, मैंने निजी तौर पर उससे मुंह नहीं मोड़ा है लेकिन हर चीज़ का समय होता है । ”
संविधान क्या कहता है?
1) मुख्य चुनाव आयुक्त सहित तीनों आयुक्तों का अधिकार व शक्तियां समान हैं। किसी मुद्दे पर मतभेद होने पर बहुमत का फैसला ही मान्य होगा, फिर चाहे मुख्य चुनाव आयुक्त ही अल्पमत में क्यों न हों?
2) न्याययिक या अर्ध-न्यायकि मामलों में ही अल्पमत की राय रिकाॅर्ड की जाएगी। इसके अलावा कोई राय रिकाॅर्ड करने की बाध्यता नहीं है। आचार संहिता उल्लंघन में आयोग का फैसला न्यायिक या अर्ध न्यायिक श्रेणी में नहीं आता है।
अब कांग्रेस और उसके पालतू पेटीकोट जबरदस्ती अशोक लवासा के बयान को दर्ज कराना चाहते हैं, जबकि वह जानते हैं कि यह न्यायायिक या अर्ध-न्याययिक मामला नहीं है, इसलिए उनका बयान दर्ज करने की कोई बाध्यता नहीं है। दरअसल अशोक लवासा आयोग पर अपना मत थोपना चाहते हैं जबकि वह जानते हैं कि आयोग में मत केवल बहुमत का ही मान्य होता है। लवासा कांग्रेस के लिए और कंाग्रेस के पालतू पेटीकोट पत्रकारों के लिए केवल नाॅनसेंस-न्यूज मैटेरियल उपलब्ध करा रहे हैं ताकि चुनाव में हार की हताशा को साजिश बताया जा सके।
कानून व संविधान से इतर रवीश जैसे पेटीकोट पत्रकारों की बकैती देखिए!
कांग्रेस का प्योर पालतू पेटीकोट रवीश कुमार ने तो बकायदा इस पर ब्लाॅग लिख डाला और कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला की भाषा बोलते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त को मोदी का पिट्ठू बता दिया। सच कहूं तो रवीश को संविधान और कानून की मामूली समझ भी नहीं है। दो कौड़ी की सोच रखने वाला यह बकैत केवल अपने भेड़ जैसे समर्थकों को गुमराह करने के लिए असंवैधानिक बातें लिख रहा है। अब आइए बकैत पांड़े रवीश कुमार क्या लिखता है वह देखिए। वह अपने ब्लाॅग में लिखता है-
बताइये कोई चुनाव आयुक्त लिख रहा है कि आयोग कानून के हिसाब से काम नहीं कर रहा है?
उत्तर- रवीश कम से कम पढ़ लिख कर तो बकैती किया करो। चुनाव आयोग की नियमावली पढ़ लो आयोग कानून के हिसाब से काम कर रहा है। कानून में कहीं नहीं लिखा है अल्पमत के बयान को दर्ज किया ही जाए।
हम कैसे अपना भरोसा इस आयोग में व्यक्त कर सकते हैं ?
उत्तर- तुम भरोसा करते ही कब थे? ईवीएम पर अपना भौंकना भूल चुके हो क्या? और बताना 2004-14 के बीच ईवीएम को लेकर कभी भौंके हो तो लिंक देना।
यह जनता का चुनाव करवा रहा है या मोदी का चुनाव करवा रहा है ?
उत्तर- चुनाव आयोग न जनता का चुनाव कराता है न मोदी का चुनाव। वह चुनाव की प्रक्रिया को संचालित करता है। जिसे यह तक नहीं मालूम है, उसकी समझ पर तरस ही खाया जा सकता है।
चुनाव आयुक्त अशोक लवासा का यह पत्र हल्के में नहीं लिया जा सकता है. वैसे ही तमाम तरह के आरोप चुनाव आयोग पर लग रहे हैं. क्या चुनाव मैनेज किया जा रहा है?
उत्तर- तुम तो जज लोया की मौत से लेकर राफेल तक को हल्के में नहीं ले रहे थे। शक्ल देख लो अपनी घृणा और कुंठा से भरे लगते हो। और हां, आरोप जनता नहीं, मालिक और उसके गुलाम लगा रहे हैं, जो हर बार अदालत मंे भी धाराशाई होती है और जनता के समक्ष भी। चुनाव मैनेज अगर होता तो तुम्हारा मालिक कमलनाथ और अशोक गहलोत मप्र और राजस्थान में मुख्यमंत्री नहीं होता? अब मुंह फाड़ देते हो, लेकिन उसके लिए भी स्टडी तो कर लिया करो।
Keep moving Sandeep sir…we are with you…
Great work by dear SANDEEP DEO DIXITJI