अर्चना कुमारी। दिल्ली दंगे के उस आरोपी की जमानत याचिका खारिज कर दी ,जिसके पास से दंगे के दौरान कथित तौर पर मारे गए एक व्यक्ति का मोबाइल फोन बरामद किया गया था। उसने जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि हत्या के आरोप के लिए परिस्थितिजन्य साक्ष्य और डकैती के दौरान चोरी की गई संपत्ति को बेईमानी से प्राप्त करने के अपराध के लिए आरोपी हिमांशु ठाकुर के खिलाफ ठोस सबूत है।
लेकिन बताया जाता है कि अदालत ने इसके साथ ही मामले के अन्य आठ लोग साहिल बाबू, टिंकू, संदीप, विवेक पांचाल, पंकज शर्मा, सुमित चौधरी, प्रिंस व अंकित चौधरी को जमानत पर रिहा कर दिया। उसने कहा कि उनके खिलाफ ठोस और पुख्ता सबूत नहीं मिले हैं।
जांच कार्रवाई में पाया गया कि आरोपी 25 और 26 फरवरी, 2020 को बने एक गैरकानूनी जमावड़े का हिस्सा थे, जिसने मुरसलीन नाम के एक व्यक्ति की हत्या कर दी थी। बताया जाता है कि मुरसलीन का शव जौहरीपुर तिराहा के पास एक नाले में तैरता हुआ पाया गया था। कड़कड़डूमा कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलस्त्य प्रमाचला ने कहा कि हिमांशु ठाकुर के पास से मृतक के मोबाइल फोन की बरामदगी और मुरसलीन की हत्या के बाद उसके परिवार के सदस्यों द्वारा इसका उपयोग दिखाने के लिए कॉल डिटेल रिकॉर्ड (सीडीआर) के रूप में पेश किया गया साक्ष्य हत्या के आरोप के मद्देनजर एक प्रकार का परिस्थितिजन्य साक्ष्य है।
हिमांशु ठाकुर पर आईपीसी की धारा 149, 302 और 412 के तहत आरोप लगाए गए हैं। इस मामले के अन्य आठ आरोपियों की जमानत याचिकाओं को स्वीकार करते हुए न्यायाधीश ने कहा कि मुझे इस चरण तक कथित आरोपों के संबंध में आवेदकों के खिलाफ बहुत ठोस सबूत नहीं मिले हैं।
उन्होंने कहा कि सभी गवाहों की पहले ही बयान दर्ज किए जा चुके हैं, इसलिए समानता के आधार पर मुकदमे के समापन तक याचिकाकर्ताओं को सलाखों के पीछे रखना उचित नहीं होगा। इसके बाद न्यायाधीश ने फैसला सुनाते हुए साहिल बाबू, टिंकू, संदीप, विवेक पांचाल, पंकज शर्मा, सुमित चौधरी, प्रिंस व अंकित चौधरी को 30-30 हजार रुपए के निजी मुचलके और इतनी ही राशि के एक जमानतदार पर जमानत दे दी।