क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि राजदीप और बरखा जैसे अंग्रेजी द पत्रकार बीएसएफ को सीआरपीएफ के अंतर को न समझे! पुलवामा आतंकी हमले के बाद कुछ लुटियन पत्रकारों ने यह फरेब फैलाया कि दिल्ली समेत देश के कुछ शहरों में पुलवामा की प्रतिक्रिया में कश्मीरियों पर लोग हमला कर रहे हैं। जब विमर्श बदलने का यह फरेब ज्यादा देर टिक नहीं पाया तो राजदीप और बरखा सरीखे पत्रकारों ने विमर्श बदलने के लिए नया खेल खेलना शुरु कर दिया। यह कहना शुरू कर दिया कि सीआरपीएफ के जवान इस लिए मारे गए क्योंकि उनके द्वारा की जा रही एअर लिफ्टिंग की मांग, जो सीआरपीएफ की तरफ की गई थी भारत सरकार ने उस मांग को नहीं माना। राजदीप ने एक अनजान पत्रकार सैकत दत्ता के एक ट्वीवट का सहारा लेते हुए फरेब की बुनियाद गढ़ दी। बिना खबर को समझे।बिना एक पेज के सरकारी दस्तावेज को देखे। बस झूठ फैलाना शुरु कर दिया कि सरकार ने सीआरपीएफ के दलील को नहीं मांगा। हैलिकाप्टर नही दिया जिसके कारण 40 सीआरपीएफ जवान मारे गए। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि अंग्रेजी में गृह मंत्रालय की पुलिस डिवीजन की चिठ्ठी को राजदीप सरदेसाई ना समझे हों! लेकिन जब नियत ही झूठ के सहारे देश में उन्माद फैलाना हो तो सालों से झूठ की पत्रकारिता करते अपनी विमर्श बदलने की साजिश चलना जरुरी लगा लुटियन मास्टर पत्रकार को। लेकिन वे अब भी भूल रहे हैं कि सोशल मीडिया के इस दौर में भी फरेब की पत्रकारिता ज्यादा देर नहीं टिकती। राजदीप बीएसएफ और सीआरपीएफ के अंतर को ना जान पाए इसकी कल्पना तो कतई नहीं की जा सकती न। लेकिन जब पत्रकारिता ही देश के खिलाफ करने का एजेंडा हो। विदेशी चंदों से प्रभावित हो । तो फिर बीएसएफ और सीआरपीएफ की भ्रम से राष्ट्र विरोधी खेल खेलना आसान होता है। दरसअल बीएसएफ की तरफ सेMI 17 हेलीकाप्टर की मांग गृह मंत्रालय के अंदर आने वाले BSF के ही एयर विंग से की गई थी। विभाग के ही एयर विंग में। विभाग के एयर विंग ने एअरलिफ्टिंग की मांग को इस तर्क के साथ निरस्त किया कि जनवरी में फरवरी महीने में मौसम खराब होने के कारण एअरलिफ्टिंग सुरक्षा की दृष्टि से सही नहीं है। दूसरा तर्क यह भी दिया गया कि कश्मीर के लिए किसी भी दृष्टि से इस मौसम में एअरलिफ्टिंग सही नहीं है। मंत्रालय ने अपने जवाब में साफ लिखा है कि फिर भी इस प्रपोजल को एयर फोर्स के पास भेजा जाएगा। मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर्स की तरफ से जारी इस जवाब में स्पष्ट रुप से लिखा हुआ है। जो आप आसानी ने पढ़ और समझ सकते हैं। लेकिन राजदीप दूसरे के पत्रकार के इस ट्वीवट को सूत्र बना लिए और बिना गंभीरता से पढ़े या समझे खेल खेलना शुरु कर दिया। अब राजदीप को अंग्रेजी नहीं आती,बीएसएपफ और सीआरपीएफ में अंतर नहीं पता या खबर की रत्ती भर भी समझ नहीं यह तो नहीं माना जा सकता । फिर यह साजिश क्यों! क्यों राजदीप सरीखे पत्रकार ने इस नोट को बीएसएफ के बदले सीआरपीएफ की मांग बना दी! जिसमें यह तर्क गढ़ा गया कि ढाई हजार जवानों के लिए एअरलिफ्टिंग की मांग की गई थी । क्या माना जा सकता है कि राजदीप सरीखे पत्रकार को खबर की रत्ती भर समझ नहीं है! तो यह फरेब क्यों! जब कि सरकारी नोट में साफ लिखा है कि बड़ी संख्या में जवानों की एअरलिफ्टिंग ऐसे मौसम में यूं ही संभव नहीं है। लेकिन बहुत जरुरत हो एअर फोर्स से निवेदन किया जा सकता है। यह पूरा नोट बीएसएफ के लिए था जिसे लुटियन गिरोह ने सीआरपीएफ का बना दिया। सरकारी नोट को गलत तरीके से पेश करना राजदीप ने गुजरात दंगों में खबरों को तोड़ मरोड़ कर पेश करने के समय ही सीखा था। दरअसल राजदीप सरदेसाई ने यह पोस्ट एक पत्रकार सैकत दत्ता की ट्वीट के आधार पर तैयार कर विमर्श बदलने की कोशिश की । राजदीप और बरखा जैसे पत्रकारों ने ही पुलवामा आतंकी हमले के बाद देश के अन्य हिस्सों में कश्मीरियों पर बड़े हमले का फरेब फैलाया । यह खबर भी झूठी साबित हुई। लेकिन इन लोगों ने कोई माफी नहीं मांगा। गृह मंत्रालय से जो आवेदन बीएसएफ की तरफ से था उसे सीआरपीएफ का आवेदन बनाया गया। डाक्यूमेंट्स को गलत तरीके से पेश किया गया। इस पत्र में बिंदुवार सब कुछ लिखा हुआ है ।मंत्रालय ने लिखा है कि बीएसएफ चाहे तो एयरपोर्ट से इस संदर्भ में बात करते हुए आवेदन कर सकता है ।अगर ऐसी जरूरत आन पड़ी यह दोनों बातें बीएसएफ के संदर्भ में है।
दिलचस्प है कि मंत्रालय ने बीएसएफ की एअर लिफ्टिंग विभाग से सलाह करने के बाद हेलीकॉप्टर की अनुमति देने से अपनी असमर्थता जताई।विमर्श बदलने के लिए फरेब करने वाले पत्रकारों ने इस बात में कोई रुचि नहीं ली कि मौसम खराब होने के कारण 2 महीने में उड़ान संभव नहीं हो सकता है । सिक्योरिटी कारण हवाई उड़ान संभव नहीं हो या कोई और कारण हो। लेकिन तीन तीन दशक से पत्रकारिता करने वाले लंपट गिरोहों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता और उस सरकारी दस्तावेजों को तोड़ मरोड़ कर ऐसे पेश करते हैं कि देशभर में झूठ का माहौल तैयार किया जा सके। झूठ के सहारे गुजरात दंगों को इन्होंने डेढ़ दशक तक खींचा। लेकिन तब सोशल मीडिया का दौर नहीं था। उनका झूठ लंबे समय तक चलता रहा था। सोशल मीडिया के इस दौर में अब यह संभव नहीं । फिर भी विमर्श बदलने के लिए सूत्रों के हवाले से झूठ का खेल लुटियन पत्रकार लगातार खेल रहे हैं । किसी सैकत के ट्वीट के सहारे। राजदीप जैसे बड़े नाम वाले पत्रकारों ने विमर्श बदलने का खेल जारी रखा। इसके लिए कश्मीरियों पर हमले का सूत्रों के हवाले से फर्जी खबर चलाया और शांति की अपील करनी शुरू कर दी। पुलवामा में 40 जवानों की नृशंस हत्या कर दी गई जिनकी चीते की अग्नि में ठंडी हुई नहीं हुई और लेकिन वहां से उठकर कश्मीरियों को भारत ने मारा में मारा जा रहा है, यह विमर्श बनाने की कोशिश की । यह समझना होगा कि आखिर ये लुटियन पत्रकार सालों से किसके लिए कर रहे हैं । कम से कम इस बात से तो इनकार नहीं है क्या सकता कि अंग्रेजी समझने में भूल चूक हुई। जिसके कारण उन्होंने सीआरपीएफ को बीएसएफ समझ लिया या बीएसएफ को सीआरपीएफ। एअरलिफ्ट के मायने नहीं समझे और फिर विक्टिम कार्ड खेलना शुरू कर दिया। ऐसी नीच पत्रकारिता के खिलाफ कब चक चुप्पी धारण कर साख के पेशे के साथ खेला जाता रहेगा! URL: Fake news master rajdeep sardesai want to change narration
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विमर्श बदलने के लिए राजदीप और बरखा ने फैलाया CRPF का झूठ!
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