रामेश्वर मिश्र पंकज-
परिवारवाद वंशवाद यह जाने कहां के शब्द भारत की पार्टियों ने यहां तक कि भाजपा ने भी सीख रखे हैं।
यह ईसाइयों के शब्द हैं।
ईसाई नेशन स्टेट की समस्याओं से जुड़े शब्द है जो वंशवाद से परेशान थे क्योंकि अधिकांश जर्मन वंश के राजा यूरोप के अनेक नेशन स्टेट के आज भी शासक हैं ।
भारत में इन निरर्थक शब्दों से केवल भ्रम फैलता है ।।
अभी स्थिति यह हो गई है कि भाजपा कह रही है कि हम सब मोदी का परिवार है। जिससे एक भ्रम खड़ा हो रहा है कि पार्टी ही परिवार होती है।
एक दूसरा नारा है कि 140 करोड लोग मोदी का परिवार हैं ।जिससे यह पता चलता है कि राष्ट्र, परिवार और पार्टी तीनों एक ही है।
अगर 140 करोड लोग मोदी जी का परिवार हैं तो फिर यह संपूर्ण 140 करोड लोगों का परिवार सारा राष्ट्र है।
राष्ट्र ही एक परिवार हो गया ।
फिर मेरा भी समस्त 140 करोड़ भारतीय मेरा परिवार है । लालू का भी 140 करोड़भारतीय परिवार है जिसे वह पहचानता नहीं, यह कहना चाहिए।
कहना चाहिए कि क्षुद्र राजनेता अपने परिवार को नहीं पहचानते ,महान राजनेता अपने संपूर्ण परिवार को पहचानते हैं।
ऐसा कुछ कहना चाहिए।।
अभी तो पार्टी, राष्ट्र और परिवार:-
तीनों शब्दों में मानो कोई भेद ही नहीं है।
इस तरह के निरर्थक भ्रम जाल में क्यों , फंसना?
एक गलत शब्द चला देने से यह सब बातें चलती है ।
भ्रष्टाचार भी वस्तुतःः अति व्यापक शब्द है।
शासकीय धन में हेरा फेरी ,
भारत के सार्वजनिक धन में हेरा फेरी और उनका दुरुपयोग:- यह कहना चाहिए।
भ्रष्टाचार तो हमारे यहां शराब पीना भी भ्रष्टाचार है ।
झूठ बोलना भी भ्रष्टाचार है ।चोरी करना भ्रष्टाचार है। भ्रष्टाचार बहुत व्यापक शब्द है ।
नेताओं पर आरोप विशेष लगाने चाहिए। जो विशेष दुष्कर्म उन्होंने किया हो, उनकी उचित संज्ञा देनी चाहिए।
भारतीय राजनीति नारों और मुहावरों में उलझी हुई है और भाषा अमूर्त सी है।
वह केवल भाषा का काम चलाऊ इस्तेमाल करती है।
शब्दों के किसी भी अर्थ का मनन भारत के राजनीतिक दलों में नहीं होता।
राष्ट्रवाद ,समाजवाद आदि शब्द भी इसी प्रकार के निरर्थक शब्द यहां की स्थिति में हैं।
स्वयं कांग्रेस तो विदेशी शब्द है ही।