मेरे बिहार में खेती-किसानी कमीशनखोर मंडी व्यवस्था से कब की मुक्त हो चुकी है। यह मेरा गांव बरहेता है, जहां सब्जी की खेती बहुतायत में होती है। आज गांव में काफी बड़ी सब्जी मंडी विकसित हो चुकी हैं, जहां से समस्तीपुर, दरभंगा और समस्त मिथिलांचल सहित बंगाल तक सब्जी जाती है। एक जमाना था जब समस्तीपुर की बाजार समिति (मंडी) के भरोसे पूरा जिला था, आज ऐसा नहीं है।
प्रधानमंत्री मोदी बिहार की तरह ही कृषि को मुक्त मंडी व्यवस्था देना चाहते थे, लेकिन अराजकों के आगे समर्पण करते हुए उन्हें अपने ही तीन कृषि कानून को वापस लेना पड़ा। स्वयं उनके भाषणों के अनुसार 10 करोड़ किसानों को जो लाभ मिलना था, वह नहीं मिला।
गरीबी और बाढ़ की विभीषिका झेल कर भी कोई बिहारी किसान कभी आत्महत्या नहीं करता! लेकिन सबसे अधिक समय तक कृषि मंत्री रहे शरद पवार के महाराष्ट्र से लेकर आंदोलनकारियों के पंजाब तक से किसानों के आत्महत्या की खबर क्यों आती है? यह कभी सोचा है?
महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तरप्रदेश की खेती-किसानी पूरी तरह से दलालों के चंगुल में है। इन दलालों ने ही सबसे अधिक कृषि कानून का विरोध किया था। ये अराजकतावादी तथाकथित किसान कभी किसानों के हितैषी नहीं रहे। आज इनके दबाव में कृषि क्षेत्र में सुधार को रोक दिया गया। अब भविष्य में कोई सरकार शायद ही कृषि सुधार को लेकर गंभीर प्रयास करे! कृषि प्रधान भारत में खेती-किसानी को दलालों के चंगुल से मुक्त किए बिना भारत बड़ी आर्थिक छलांग नहीं लगा सकता है। यह ब्रह्म सत्य है!