विपुल रेगे। श्वेता शारदा युवा और प्रतिभाशाली मॉडल हैं और वे इस नवंबर मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगी। सुकून की बात है कि श्वेता ‘बायोलॉजिकली प्रूव्ड नारी’ हैं और मिस यूनिवर्स के लिए जा रही हैं। सुकून की बात ये नहीं है कि मिस यूनिवर्स के 72 साल के इतिहास में पहली बार दो ‘ट्रांसवुमन’ भाग लेने जा रही है। लैंगिक समानता को समूल नाश करने के लिए ट्रांसजेंडर को सामाजिक मान्यता दिलवाना आवश्यक है और वह ऐसे ख़िताब जीतकर ही संभव हो सकता है।
मिस यूनिवर्स 2023 में इतिहास में पहली बार कम से कम दो ट्रांसवुमन प्रतियोगी शामिल होंगी। 72वीं मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता में, ट्रांसवुमेन मरीना मचेटे (मिस पुर्तगाल) और रिक्की कोले (मिस नीदरलैंड्स) ताज जीतने के लिए अन्य प्रतियोगियों के साथ प्रतिस्पर्धा करेंगी। इस न्यूज़ पैक से मुझे कुछ माह पहले देखा एक कार्टून याद आया। उस कार्टून में दिखाया गया था कि एक ‘ट्रांसजेंडर’ महिलाओं के बाथरुम में घुस आया है और स्नान कर रहा है। उसे देखकर स्वीमिंग पूल के उस सामूहिक बाथरुम में आई दूसरी महिलाएं असहज हो रही हैं।
‘ट्रांसजेंडर’ शब्द को परिभाषित करना आवश्यक है। ट्रांसजेंडर शब्द उन लोगों के लिए प्रयोग किया जाता है जिनकी एक लैंगिक पहचान या अभिव्यक्ति उस लिंग से अलग होती है, जो उन्हें उनके जन्म के समय दी गई होती है। ये एक शारीरिक कमी है, जिसकी पूर्ति करने के लिए लिंग परिवर्तन जैसा एक विकल्प आज उपलब्ध है। कुछ ट्रांसजेंडर लोग जो लिंग-परिवर्तन के लिए चिकित्सा सहायता लेने की इच्छा रखते हैं। इन्हें ट्रांससेक्सुअल कहा जाता है। ये एक सामान्य प्रक्रिया है किन्तु ‘वॉकीज़म’ के प्रभाव में आकर न केवल दूषित हुई है, बल्कि इसके कारण नैसर्गिक लैंगिक समानता को भी भविष्य में आघात लगने की आशंका दिखाई देती है।
मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता में ट्रांसजेंडर्स की एंट्री नैतिक नहीं कही जा सकती। हाँ आप दुनिया भर से ट्रांससेक्सुअल खोज लाइए और उनकी आपसी प्रतियोगिता करवा दीजिये, ये तर्क संगत और न्याय संगत होगा। अभी तो इस प्रतियोगिता में दो ट्रांसवुमन को डालना, ऐसा ही हो गया है, जैसे आपने मिस यूनिवर्स के बाथरुम की अन्य प्रतियोगियों को बेचैन और असुरक्षित कर दिया है। ऐसी आशंका सौ प्रतिशत है कि आज नहीं तो कल कोई ट्रांसवुमन ये खिताब जीतने में कामयाब हो ही जाएगी। आखिरकार माचेटे ने अपने देश पुर्तगाल की ‘स्वाभाविक महिलाओं’ को पीछे छोड़ मिस पुर्तगाल का ख़िताब हासिल किया। ऐसे ही मिस नीदरलैंड्स रिक्की कोले की कहानी है।
भारत में ‘वोक कल्चर’ ने आराम से पैर पसार दिए हैं। भारत में ट्रांससेक्सुअल अब पुरस्कार भी पाने लगे हैं। उनका पुरस्कार पाना कहीं से भी गलत नहीं है लेकिन देश का मीडिया उनकी उपलब्धि से अधिक ये दिखाता है कि उन्होंने लिंग परिवर्तन करवाया है, मानो लिंग परिवर्तन करवाना उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि है। जबकि अमुक व्यक्ति ने अपनी लैंगिक पहचान बदलने के लिए ये इलाज करवाया है, वह उपलब्धि कैसे हो सकती है ? सन 2019 में ट्रांससेक्सुअल ‘नर्तकी नटराज’ ने पद्मश्री पुरस्कार प्राप्त किया। उस समय उनकी नृत्य साधना से अधिक ये प्रचारित हुआ कि उन्होंने लिंग परिवर्तन करवाया था। सन 2023 में कर्नाटक के मंजम्मा जोगाथी ने भी पद्मश्री प्राप्त किया। मंजम्मा कर्नाटक के एक दूरदराज के गांव का एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति था, जिसे एक लोक कला को आगे बढ़ाने, इसे सड़कों से मंच तक ले जाने और इसे लोकप्रिय बनाने के लिए देश का चौथा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, पद्मश्री दिया गया था।
भारतीय संस्कृति में ट्रांससेक्सुअल को लेकर सहमति बनाने के लिए ऊँचे स्तर पर प्रयास किये जा रहे हैं। बिहार के ‘दोस्तानासफर’ नाम के गैर सरकारी संगठन द्वारा अब देश के विभिन्न शहरों में ‘प्राइड परेड’ का आयोजन करवाने लगा है। ऐसे संगठन अब समुदाय के सदस्यों को मासिक सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए सरकारों पर दबाव बनाने लगे हैं। ‘वोक संस्कृति’ को लेकर Quora पर लुकास एमेरनेथी ने बड़ी सही परिभाषा दी है, उसे आपको भी पढ़ना चाहिए। ‘वोक संस्कृति वामपंथ का आधुनिक धर्मनिरपेक्ष कट्टरपंथी धर्म है। यह बेहद सफल है क्योंकि यह कमजोर लोगों के साथ दुर्व्यवहार करने, अपने लिए जवाबदेही स्वीकार न करने और आत्ममुग्धता व्यक्त करने का सामाजिक रूप से स्वीकार्य तरीका प्रदान करता है।’