जुलाई 1971 में हेनरी किसिंजर दिल्ली आए. तब वे अमेरिका के NSA थे. यहां उन्होंने साफ-साफ संकेत दे दिया कि बांग्लादेश के सवाल पर भारत-पाकिस्तान युद्ध में अगर चीन हस्तक्षेप करता है तो भारत अमेरिका से किसी मदद की उम्मीद नहीं रखे.
सौ साल की लंबी और परिपक्व जिंदगी जीने वाले अमेरिका के विवादित राजनेता, सुपर डिप्लोमैट हेनरी किसिंजर (Henry Kissinger) नहीं रहे. हेनरी किसिंजर की शख्सियत जितनी भारी भरकम है, उतनी ही विवादित और चर्चित उनकी विरासत है. यूएस का राष्ट्रपति न बनने के बावजूद इस अकेले शख्स ने अमेरिकी विदेश नीति को जितना प्रभावित किया है शायद ही किसी और राजनेता ने अमेरिकी नीतियों को उतने करीब से छुआ हो.
हेनरी ने भारत को भी अपने ढंग से हांकने की कोशिश की. 1971 में जब बांग्लादेश की मुक्ति के लिए भारत ने पाकिस्तान को सबक सिखाने की ठानी तो राष्ट्रपति निक्सन और विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर की जोड़ी ने भारत के लिए तमाम मुश्किलें खड़ी करने में कोई कसर न छोड़ी. लेकिन तब इंडिया की लीडरशिप आयरन लेडी इंदिरा गांधी के हाथों में थी. इंदिरा ऐसी अड़ीं कि हेनरी किसिंजर और निक्सन तिलमिला कर रह गए.
अमेरिकी क्लासिफाइड दस्तावेजों के अनुसार निक्सन और हेनरी किसिंजर ने इंदिरा को कई दफे अपमानित करने की कोशिश की और उनके लिए अपशब्द का इस्तेमाल किया.
1970 में किसिंजर अमेरिकी फॉरेन पॉलिसी में Cut status हासिल कर चुके थे. उनका कहा अकाट्य था. 1971 में जब पूर्वी पाकिस्तान (मौजूदा बांग्लादेश) में स्थिति नाजुक थी. भारत पर युद्ध का खतरा मंडरा रहा था. बड़ी संख्या में ढाका से शरणार्थी भारत की सीमा में प्रवेश कर रहे थे.
ऐन मौके पर भारत विरोधी निक्सन ने अपने एक बयान से भारत को हैरान कर दिया. जुलाई 1971 में राष्ट्रपति निक्सन के बतौर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर दिल्ली आए. यहां उन्होंने साफ-साफ संकेत दे दिया कि बांग्लादेश के सवाल पर भारत-पाकिस्तान युद्ध में अगर चीन हस्तक्षेप करता है तो भारत अमेरिकी से किसी मदद की उम्मीद नहीं रखे.
वरिष्ठ पत्रकार इंदर मल्होत्रा ने अपनी किताब इंदिरा गांधी में लिखा है, “पाकिस्तान की तरफ कुख्यात निक्सन-किसिंजर ‘झुकाव’ की पृष्ठभूमि में यह एक बड़ा झटका था. यह एक और भी बड़े धक्के में बदल गया जब कुछेक दिनों बाद ही किसिंजर की गुप्त बीजिंग यात्रा हुई.
दरअसल उस वक्त राष्ट्रपति निक्सन पाकिस्तान की कत्ले आम मचाने वाली हुकूमत याहिया खान को सपोर्ट कर रहे थे. पाकिस्तान मौजूदा बांग्लादेश में कत्लेआम मचा रहा था. लेकिन इस पर निक्सन किसिंजर की जोड़ी चुप्पी साध रखी थी.
1971 की जंग शुरू होने से पहले इंदिरा जब राष्ट्रपति निक्सन से मिलने गईं तो इस दौरान निक्सन और किसिंजर का उजड्ड़पन खूब दिखा. इंदर मल्होत्रा ने अपनी किताब में अमेरिकी विदेश विभाग की ओर से 1971 में दक्षिण एशिया के संकट पर प्रकाशित 900 पन्नों की रिपोर्ट का जिक्र करते हुए लिखा है, “कुल मिलाकर किसिंजर का मूल्यांकन यह था कि भारतीय हर तरह से दोगले (B*****D) होते हैं, वे वहां युद्ध शुरू कर रहे हैं, उनके लिए पूर्वी पाकिस्तान कोई मुद्दा नहीं रह गया है.”
दरअसल 5 नवंबर 1971 को इंदिरा गांधी ने अमेरिका में किसिंजर से मुलाकात की थी. इस मुलाकात में इंदिरा ने किसिंजर से बेबाक ढंग से कहा था, “भारत पाकिस्तान विरोधी इरादे से कतई संचालित नहीं है, भारत ने पाकिस्तान का विनाश कभी नहीं चाहा, न यह चाहा कि वह स्थायी रूप से पंगु हो जाए.”
हालांकि इस मुलाकात के बाद भी अमेरिकी राष्ट्रपति के ओवल दफ्तर में निक्सन और किसिंजर इस बात के लिए खुशी से इतरा रहे थे कि उन्होंने भारतीय पीएम इंदिरा गांधी के साथ बातचीत में अपना उद्देश्य हासिल कर लिया था. अमेरिकी विदेश विभाग से जारी रिकॉर्ड में किसिंजर इंदिरा के लिए अपशब्द का इस्तेमाल करते हैं और उनके लिए B***h शब्द का इस्तेमाल करते हैं. इस रिकॉर्ड में निक्सन आगे किसिंजर से सहमति जताते हैं.
इंदर मल्होत्रा इस बाबत लिखते हैं, ” इस रिकॉर्ड में ऐसे ही गंदे लहजे में बहुत सी बातें हैं. इसके अलावा दोनों इस बात पर सहमत हुए कि गांधी से अगली वार्ता में रुख थोड़ा ठंडा हो और इंदिरा को वार्ता रखने का ज्यादा मौका दें.”
हालांकि 2005 में किसिंजर की ये टिप्पणी सार्वजनिक होने के बाद हंगामा मच गया. किसिंजर ने कहा कि उन्हें अपनी टिप्पणी पर खेद है और वह इंदिरा गांधी का सम्मान करते हैं.
किसिंजर ने एनडीटीवी को दिए एक इंटरव्यू में कहा था, “इस बयान को 35 साल पहले शीत युद्ध के माहौल के संदर्भ में देखा जाना चाहिए, जब मैंने चीन की गुप्त यात्रा की थी… और भारत ने सोवियत संघ के साथ एक तरह का अलायंस कर लिया था.”
अमेरिकी राष्ट्रपति से दूसरी मुलाकात में निक्सन ने इंदिरा गांधी को 20 मिनट तक इंतजार करवाया. निक्सन ने कहा कि भारत पाकिस्तान की सीमा से अपनी फौज वापस करने पर विचार करे. आयरन लेडी इंदिरा ने निक्सन के इस ऑफर का कोई जवाब नहीं दिया. इंदिरा के मौन का अर्थ क्या था इसे दुनिया ने 1971 की जंग में पाकिस्तान की हार और बांग्लादेश के निर्माण के रूप में देखा.
12 दिसंबर 1971 तक बांग्लादेश में पाकिस्तानी फौज के कमांडर सरेंडर को तैयार हो गए. इसी दौरान अमेरिका निक्सन-किसिंजर की जोड़ी ने अपनी आखिरी चाल चली. उन्होंने नौसैनिक बेड़े यूएसएस एंटरप्राइज सहित सातवें बेड़े को बांग्लादेश की ओर भेज दिया. लेकिन सातवां बेड़ा बांग्लादेश के आसपास पहुंचता उससे पहले ही पाकिस्तानी सेना पस्त हो चुकी थी. 16 दिसंबर को पाकिस्तान ने सरेंडर कर दिया.