2014-2024 के बीच का जब इतिहास लिखा जाएगा तो लोकतंत्र के सबसे बड़े हत्यारे के रूप में मीडिया और पत्रकारों का नाम सबसे ऊपर आएगा!
पिछले 10 सालों में 6700cr की रिश्वत लेकर जिस तरह से मीडिया ने सरकार के भ्रष्टाचार, लूट, फेलियर विदेश नीति, 35% संसाधनों पर पसमांदाओं का कब्जा, सच्चर कमेटी का क्रियान्वयन आदि को दबाया है, वह लोकतंत्र का कोई हत्यारा ही कर सकता है।
आज ही #ElectoralBondsCase पर अखबारों और न्यूज चैनलों की रिपोर्टिंग देख लो। या तो रिपोर्ट अखबार के किसी कोने में कहीं चलताऊ अंदाज में डाल दिया गया है या फिर सत्ताधारी पार्टी का प्रवक्ता बन कर पत्रकार और एंकर बकैती कर रहे है! चंदे के धंधे में तो स्वयं एक मीडिया कंपनी ही शामिल है, जैसे कांग्रेस काल में कोयला घोटाले में भी शामिल थी।
कांग्रेस के समय कांग्रेसी पत्रकार ‘पेटीकोट पत्रकारिता’ करते थे, आज भाजपा के समय भाजपाई पत्रकार ‘निक्कर पत्रकारिता’ कर रहे हैं! वस्तुनिष्ठ पत्रकारिता तो कब का दम तोड़ चुकी है!
मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ नहीं, लोकतंत्र का दीमक बनता जा रहा है।