रामेश्वर मिश्र पंकज। जब आप यानी जो भी व्यक्ति भारत की शिक्षा में जो कुछ चल रहा है उसे मैकाले की देन कहता है तो वह मैकाले को कितना अधिक शक्तिशाली प्रचारित कर रहा है ?
मैकाले के पास ऐसी कौन सी शक्ति है जो पहले तो ब्रिटिश शासन ने उसे मान लिया? मैकाले तो ईस्ट इंडिया कंपनी का बाबू था । प्रशासन ने उसकी टिप्पणी का सहारा लेकर वह किया जो वह चाहता था । ब्रिटिश राज्य जो चाहता था,वह उसने किया ।मैकाले की आज्ञानुसार नहीं किया।अपनी इच्छानुसार किया।
इसी प्रकार जवाहरलाल नेहरू ने वह किया जो ,वे चाहते थे और इसीलिए उन्होंने मौलाना आजाद को शिक्षा मंत्री बनाया । यह मैकाले की किसी टीप के कारण नहीं किया।अपनी योजनानुसार किया।। इसी प्रकार अब तक के हर प्रधानमंत्री और हर शिक्षा मन्त्री।ने जो चाहा किया। इन्हें इतना दीन हीन मत बताइए क्या करें, बेचारे चाहते तो थे अच्छा करना ,पर मैकाले से बन्धे थे।कितनी हास्यास्पद बात है यह और इसमें हमारे नेताओं का कैसा अपमान है? प्रधानमंत्री लोग जैसा चाहते हैं ,उसके अनुसार शिक्षा मंत्री नियुक्त करते हैं ।
जब आप मैकाले मैकाले रटते हैं तो क्या वह हमारे सारे राष्ट्रपतियों प्रधानमंत्रियों और शिक्षा मंत्रियों से भी अधिक शक्तिशाली है ? या क्या वह उनका पूर्वज है जो वे उस श्रद्धा भाव से उसकी आज्ञा का पालन करेंगे ? हम कौन सा तर्क दे रहे हैं? किसी भी एक बाबू या अफसर या व्यक्ति ,,या संस्तुति करने वाला कोई अधिकारी , उसको आप क्या मानते हैं? उसमें क्या शक्ति होती है जो उसकी बात मानना शासन को अनिवार्य हो ,? भारत की सरकारों को ,क्या मजबूरी हो सकती है?
संसार में आज तक नहीं देखा गया कि जो भी नीति शासन अपनाता है,हैं उसमें किसी बाबू या अफसर की टिप्पणी कारण होतीहै।
कागज में वह एक दस्तावेज का आधार हो सकती है परंतु सारे निर्णय सरकारें लिया करती हैं। 1947 ईस्वी के बाद आज तक भारत में शिक्षा में जो कुछ भी हुआ उसके लिए भारत के प्रधानमंत्री और शिक्षा मंत्री लोग जिम्मेदार है ।
आप मैकाले को उन सबसे अधिक शक्तिशाली किस आधार पर मानते हैं? क्या वह उनका पूर्वज था? या उनका परम पूज्य जैसा कुछ था कृपया उसे इतना महिमा वान मत बनाइए । इसमें उस क्लर्क का महिमामंडन तो है परंतु यह अपने प्रधानमंत्रियों और शिक्षा मंत्रियों का बहुत अधिक अपमान है ।बहुत अधिक अपमान है। ऐसे मत करिए।कृपया।