लेफ्टिनेट जनरल मोहिंदर पुरी ने “कारगिल: टर्निंग द टाइड” नाम से लिखी अपनी किताब में कारगिल के दौरान बरखा दत्त की करतूतों का खुलासा किया है। उन्होंने खुलासा किया है कि बरखा दत्त की लाइव रिपोर्टिंग की वजह से सेना संकट में पड़ सकती थी। एक पत्रकार के स्टिंग ऑपरेशन के फैसले ने तो एक जवान की जान तक ले ली है। इस प्रकार की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं ने एक बार फिर छद्म पत्रकारिता बनाम सुरक्षा बलों की सुरक्षा मसले को बहस का मुद्दा बना दिया है। पत्रकारिता के नकारात्म पहलू पर जब भी बहस होगी उसके केंद्र में बरखा दत्त ही होगी।
जब भी आप छद्म पत्रकारिता को लेकर कोई बात करते हैं निश्चित रूप से बरखा दत्त का नाम आपके जेहन में कौंध जाता है। क्योंकि बरखा दत्त जैसे कुछ पत्रकार छद्म पत्रकारिता के पर्याय बन गए हैं। कारगिल से लेकर मुंबई हमले जैसे आतंकी घटनाओं के दौरान बरखा दत्त की करतूतें सामने आ गई हैं। इसका खुलासा सबसे पहले एक ब्लॉगर चैतन्य कुंटे ने किया। इसका खामियाजा उन्हें बरखा दत्त और एनडीटीवी से माफी मांगकर चुकाना पड़ा।
बरखा दत्त की छद्म पत्रकारिता पर पहली बार कोई खुलासा नहीं हुआ है। इससे पहले भी इसकी करतूत सामने आती रही है, भले ही इसके लिए सच्चे पत्रकारों को माफीनामा ही क्यों न लिखना पड़ा हो। शॉडी जर्नलिज्म (छद्म पत्रकारिता) दरअसल एक ब्लॉग पोस्ट का नाम था जिसे चैतन्य कुंटे नाम के एक ब्लॉगर ने 2008 में मुंबई में हुए आतंकी हमले के दौरान लिखना शुरू किया था। अपने पोस्ट में वह मीडिया की आलोचना करता था। खासकर विवादित पत्रकार रही बरखा दत्त की। बरखा दत्त उस समय एनडीटीवी में काम करती थी। और केंद्र में सरकार सोनिया गांधी नियंत्रित मनमोहन सिंह की सरकार थी। उस समय उसकी धमक का अंदाजा लगा सकते हैं। इसी धमक की वजह से बरखा दत्त ने चैतन्य कुंटे को लीगल नोटिस भेज दिया। इस वजह से चैतन्य को न सिर्फ बरखा दत्त और एनडीटीवी से माफी मांगनी पड़ी बल्कि उन्हें अपना सारा पोस्ट भी मिटाना पड़ा।
दरअसल चैतन्य ने अपने ब्लॉग पोस्ट में आतंकी हमले के दौरान आतंकियों और सुरक्षाबलों के बीच चल रही मुठभेड़ के दौरान लाइव रिपोर्टिंग की आलोचना की थी। जाहिर सी बात है कि इस गैरजिम्मेदार करतूत की आलोचना होगी तो बरखा दत्त का नाम आएगा ही। उन्होंने आतंकियों और सुरक्षाबलों के बीच मुठभेड़ के दौरान रिपोर्टिंग खासकर लाइव रिपोर्टिंग को गैर जिम्मेदार बताया था। उन्होंने पत्रकारों की इन हरकतों को दुश्मन देश, आतंकियों और उनके संचालकों के पक्ष में बताया था। उन्होंने लिखा था कि इस प्रकार की छद्म पत्रकारिता से हमारे दुश्मनों को ही मदद मिलती है। चैतन्य से तो बरखा दत्त ने मांगी मंगवा ली, लेकिन चैतन्य के माफी मांगने के ठीक साढ़े तीन साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई पर हुए आतंकी हमले के दौरान मीडिया रिपोर्टिंग के साथ ही मीडिया की भूमिका पर तीखी टिप्पणी की।
बरखा दत्त ने उस समय चैतन्य को तो डरा दिया। लेकिन सच्चाई ज्यादा दिनों तक छिपती नहीं बल्कि वह किसी न किसी रूप में उजागर हो ही जाती है। बरखा दत्त ने ब्लॉग पोस्ट के रूप में छपी अपनी करतूत तो मिटवा ली लेकिन उसकी वही सच्चाई अब किताब के रूप में सामने आ गई है। लेफ्टिनेंट जनरल मोहिंदर पुरी ने अपनी किताब “कारगिल: टर्निंग द टाइड” में बरखा दत्त की पत्रकारिता को गैर जिम्मेदाराना बताया है बल्कि यह भी खुलासा किया है कि कारगिल युद्ध के दौरान उसकी लाइव रिपोर्टिंग ने सेना को संकट में डाल दिया था। एक प्रकार से कहें तो कारगिल युद्ध के दौरान बरखा दत्त ने पत्रकारिता के नाम पर देश विरोधी काम किया था। पुरी ने लिखा है कि लाइव रिपोर्टिंग की वजह से एक बार तो देश की सेना डर गई थी। क्योंकि उसकी लाइव रिपोर्टिंग की वजह से ही सेना की वास्तविक स्थिति से लेकर कार्यवाही तक की सारी जानकारी दुश्मन देश तक पहुंच गई थी। बरखा दत्त की इस करतूत की वजह से सेना संकट में पड़ सकती थी।
अपनी किताब में जनरल पुरी ने बरखा दत्त के बारे में जो खुलासा किया है, उसी का संदर्भ लेकर जब निखिल शर्मा नाम के एक ट्वीटर उपयोगकर्ता ने बरखा दत्त के बारे में यह ट्वीट किया कि बरख दत्त की टीवी पत्रकारिता अविश्वसनीय और गैर जिम्मेदार रही है। तो बरखा दत्त भड़क गई और उसने निखिल को इस मसले पर बहस करने की चुनौती देते हुए तत्कालीन सेना प्रमुख बीपी मलिक को इस मसले में घसीटते हुए पूछा कि क्या तुम बीपी मलिक से ज्यादा जानते हो। हालांकि निखिल ने बरखा दत्त की चुनौती को स्वीकारते हुए उसे जहां और जब बहस करने को कहा। कमाल की बात ये है कि निखिल के जवाब के बाद बरखा दत्त ने दोबारा कोई जवाब नहीं दिया। दूसरे शब्दों में कहूं तो वह अपनी चुनौती के साथ भाग निकली।
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URL: ‘Kargil; Turning the tide’ reveals that barkha dutt reporting scared the army
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