चन्द्रकान्त प्रसाद सिंह। सनद रहे कि जब (1990-2005) सरकार ने बिहार के किसानों को नक्सलियों और माओवादियों का नरम चारा बनने के लिए छोड़ दिया तो आरा-भोजपुर-गया-नालंदा-पटना जिले के किसानों ने ब्रह्मेश्वर सिंह मुखिया के नेतृत्व में ‘रणवीर सेना’ के नाम से एक सशस्त्र संगठन तैयार किया और अपने इलाके को शांति-समृद्धि अता की।
रणवीर सेना ने मध्य बिहार में वही नीति अपनाई जो केपीएस गिल के नेतृत्व में पंजाब पुलिस ने खलिस्तानियों से निपटने के लिए अपनाई थी और जो कश्मीर में आज सेना कर रही है। ईंट का जवाब पत्थर। पुलिस और सेना के जवानों के रिश्तेदारों को निशाना बनानेवाले आतंकवादियों के रिश्तेदारों को भी निशाने पर रखना।
इस लिहाज से जनता ने सरकार और नक्सलियों दोनों से अपनी सुरक्षा खुद की। ऐसा करके नक्सलवाद और माओवाद से निपटने का एक ऐसा मॉडल पेश किया जो सस्ता और टिकाऊ होने के साथ-साथ आत्मनिर्भरता का भी उदाहरण पेश करता है।
दूसरी तरफ़ यह भी कहा जाता है कि बिहार में अपने 15 साल के शासन के दौरान लालू प्रसाद के राष्ट्रीय जनता दल ने एमसीसी (माओइस्ट कम्युनिस्ट सेंटर) का इस्तेमाल अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने के लिए किया। यही बात छत्तीसगढ़ भाजपा में भाजपा के बारे में कही जाती है जहाँ काँग्रेस के अधिकतर शीर्ष नेताओं की माओवादियों ने हत्या कर दी।
यह भी चर्चा है कि नक्सलियों- माओवादियों द्वारा हजारों करोड़ की अवैध वसूली में लगभग सभी राजनीतिक दलों, पुलिस और पत्रकारों की हिस्सेदारी होती है। ऊपर से ‘लाल गलियारे’ में सुरक्षा और विकास के नाम पर जो अकूत धन केंद्र सरकार भेजती रहती है उसमें से भी संबद्ध लोगों को अपना-अपना हिस्सा मिल जाता है जिस कारण कम्युनिस्ट उग्रवाद-अलगाववाद को जड़ से मिटाने में किसी एजेंसी की कोई ख़ास रूचि नहीं होती।
उपरोक्त संदर्भ में देखें तो अर्बन नक्सलियों की सरपरस्ती में न प्रधानमंत्री मोदी की हत्या की साज़िश में कुछ नया है न ही देश भर में हिंसा-अराजकता फ़ैलाने के लिए आंदोलनों को हवा देने की बात अजूबी है। बस देशकाल के हिसाब से पात्र बदल गए लगते हैं।
साभार: चंद्रकांत सिंह जी के फेसबुक वाल से
URL: Maoist-Naxalite gang blasted by political protection
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