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India Speaks Daily > Blog > इतिहास > गुलाम भारत > मोदी जी अब तो अहमदाबाद का नाम कर्णावती कर दीजिए!
गुलाम भारत

मोदी जी अब तो अहमदाबाद का नाम कर्णावती कर दीजिए!

Sonali Misra
Last updated: 2021/03/08 at 1:59 PM
By Sonali Misra 16 Views 10 Min Read
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10 Min Read
karnavati
karnavati
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Sonali Misra. किसी भी देश के राज्यों और जिलों के नाम उसके गौरव एवं इतिहास के प्रतीक होते हैं। परन्तु भारत के साथ ऐसा नहीं है। आज भी हमारे यहाँ नालंदा को जलाने वाले के नाम पर भी अभी भी शहर का नाम है। ऐसे ही कई शहरों के नाम है।

परन्तु एक और जगह है, जिसका नाम इस समय इतिहास के साथ साथ पूरे भारत को अपमानित करने वाला है।  वह है गुजरात का अहमदाबाद शहर। अहमदाबाद का नाम इतिहास में अहमदाबाद नहीं था।

वह तो कर्णावती था एवं शौर्य से परिपूर्ण था, अहमदशाह अब्दाली के नाम पर इसका नाम कालान्तर में अहमदाबाद हो गया. परन्तु उससे पूर्व रानी रुदाबाई और सुलतान बेघारा की कहानी ध्यान खींचती है और कहती है कि यदि अपना शौर्य चाहिए तो अपना नाम रखना होगा:

karnawati

इतिहास की तलाश में कई स्रोत सामने आते हैं। दो कहानियां सामने आती हैं। और दोनों में ही कर्णावती की रानी रुदाबाई का बलिदान सम्मिलित है। दोनों ही कहानियाँ रानी रुदाबाई के सौन्दर्य एवं वीरता की कहानियाँ हैं।  दोनों ही कहानियों में रानी का इस्लामी आक्रान्ताओं के सम्मुख सिर न झुकाना और अपने पति, अपने राज्य और अपने संस्कारों के प्रति समर्पण सम्मिलित है।  

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पहली कहानी जो सामने आती है वह हमें इस लिंक पर मिलती है और इसके साथ ही कई ब्लॉग पर:

रानी रुदाबाई ने महल के ऊपर अपनी छावनी बनाई हुई थी, जिसमें 2500 धर्धारी वीरांगनायें, जो रानी रूदा बाई का इशारा पाते ही लश्कर पर हमला करने को तैयार थी. सुल्तान बेघारा को महल के अन्दर आने का न्यौता दिया गया.

6/10@Kautilya_tilak @Raushan24459047 @Real_Vishal_

— Shri K. Sharma. 🇮🇳 (@shrikrishanrss) November 22, 2020

गुजरात में कर्णावती नाम का एक राज्य था, वहाँ के राजा थे राणा वीर सिंह वाघेला (सोलंकी)। इस राज्य ने कई तुर्क हमले झेले थे, लेकिन कामयाबी किसी भी तुर्क को नहीं मिली थी।

सुल्तान बेघारा ने सन् 1497 में पाटण राज्य पर हमला किया। राणा वीर सिंह वाघेला के पराक्रम के सामने सुल्तान बेघारा की 40000 से अधिक संख्या की फ़ौज 2 घण्टे से ज्यादा नहीं टिक पाई और सुल्तान बेघारा को जान बचाकर मैदान से भागना पड़ा।

असल में कहा जाता है कि सुल्तान बेघारा की नजर कर्णावती की महारानी रुदाबाई पर थी, रानी बहुत ही सुन्दर थी, वो रानी को युद्ध में जीतकर अपने हरम में रखना चाहता था।

सुलतान ने कुछ समय बाद फिर कर्णावती पर हमला किया। इस बार राज्य का एक साहूकार सुल्तान बेघारा से जा मिला और उसने राज्य की सारी गुप्त सूचनाऐं सुल्तान बेघारा को दे दीं थीं। इस बार युद्ध में राणा वीर सिंह वाघेला को सुल्तान बेघारा ने छल से युद्ध में हरा दिया, जिससे राणा वीर सिंह उस युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए।

सुलतान बेघारा रानी रुदाबाई को अपनी वासना का शिकार बनाने हेतु राणा जी के महल की ओर 10000 से अधिक का लश्कर लेकर पंहुचा और रानी रूदा बाई के पास अपने दूत के जरिये निकाह प्रस्ताव रखा।

रानी रुदाबाई ने महल के ऊपर अपनी छावनी बनाई हुई थी, जिसमें 2500 धर्धारी वीरांगनायें, जो रानी रूदा बाई का इशारा पाते ही लश्कर पर हमला करने को तैयार थी।

सुल्तान बेघारा को महल के अन्दर आने का न्यौता दिया गया। वासना में अन्धे सुल्तान बेघारा ने वैसा ही किया। जैसे ही वो दुर्ग के अन्दर आया, रानी ने समय न गंवाते हुऐ सुल्तान बेघारा के सीने में खंजर उतार दिया और उधर छावनी से तीरों की वर्षा होने लगी, जिससे सुल्तान की पूरी सेना धराशायी हो गयी, लश्कर का एक भी सिपाही बचकर वापस नहीं जा पाया

https://aajtaktimes.com/rani-rudabai-who-shattered-sultan-begharas-chest/

रानी रुदाबाई ने सुल्तान बेघारा का सीना फाड़ कर उसका कलेजा निकाल कर कर्णावती शहर के बीचोंबीच लटकवा दिया। और उसके सर को धड़ से अलग करके पाटण राज्य के बीच टंगवा दिया।

साथ ही यह चेतावनी भी दी की कोई भी आक्रांता भारतवर्ष पर या किसी हिन्दू नारी पर बुरी नज़र डालेगा तो उसका यही हश्र होगा। इस युद्ध के बाद रानी रुदाबाई ने राजपाठ सुरक्षित हाथों में सोंपकर कर स्वयं जल समाधि ले ली, ताकि कोई भी तुर्क आक्रांता उन्हें अपवित्र न कर पाए।

किन्तु जब और ज्यादा शोध करते हैं तो एक और कहानी निकल कर आती है और वह आत्मबलिदान की अद्भुत कहानी है। ऐसी कहानी जिसे आज तक पूरा गुजरात याद करता है और यहाँ तक कि उसे अब यूनेस्को भी सराह रहा है।

वह कहानी जिसे सेक्युलर इतिहासकार प्रेम की कहानी कह रहे हैं। पर वह कहानी जनता के प्रति सर्वोच्च समर्पण की कहानी है। रुदाबाई की कहानी है, राजा की मृत्यु भी है और साथ ही मोहम्मद बेघारा भी है।

मोहम्मद बेघारा जहाँ जाता था, वहां के मंदिरों को नष्ट करता जाता था और इस्लाम क़ुबूल करवाता जाता।  उसे औरतों का शौक था और उसके हरम में अफ्रीका तक की औरतें हुआ करती थीं।

उसे खाने और औरतों दोनों का शौक था। मगर कोई तो था, जिसने उसके इस औरतों के शौक को पराजित किया था। जैसा ऊपर की कहानी से यह पता चलता है कि उसे रुदाबाई ने मारा था तथा उसकी मृत्यु के विषय में वाकई कोई प्रमाणित जानकारी प्राप्त नहीं होती है, जिससे रुदाबाई के इस साहसी कृत्य को भी सत्य माना जा सकता है।

karnawati

गुजरात में चूंकि रेतीला क्षेत्र भी है, तो अपने क्षेत्र में पानी की समस्या को समाप्त करने के लिए राजा ने कई बावड़ी बनवाई थीं। ऐसी ही एक बावड़ी है अडलाज बावड़ी। जिसे कहते हैं कि रुदाबाई के पति राजा राणावीर की स्मृति में बनवाया था।

जो उस बावड़ी के प्रथम तल पर उल्लिखित है।   यह भी कहा जाता है कि राजा राणावीर ने यह बावड़ी बनवानी शुरू की थी, परन्तु जब उनके राज्य पर दुष्ट सुलतान बेघारा ने हमला किया तो उनकी मृत्यु के उपरान्त वह जब रुदाबाई के सौन्दर्य पर मोहित हुआ और निकाह के लिए दबाव डालने लगा। तो रानी ने एक शर्त रखी कि उसे शेष बावड़ी का निर्माण कराना होगा।

इस कथा के अनुसार रानी को पाने के लिए और अपने हरम में शामिल करने के लिए वह तैयार हो गया और इस बावड़ी के शेष बचे भाग को पूरा करवाया। तभी इसमें इस्लामिक शैली भी थोड़ी परिलक्षित होती है। 

रानी जब उस बावड़ी को देखने गयी, जब देख लिया कि उसके राज्य के लिए जल की व्यवस्था हो गयी है, जो संभवतया उनके पति का सपना था, जिसे वह अधूरा छोड़ कर परलोक गमन कर गए थे।

जब उन्होंने देखा कि एक सपना पूरा हुआ, तो उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य पूरा करने का निश्चय किया। वह था अपने पति से स्वर्ग में मिलन का। और उसकी पांचवीं मंजिल से छलांग लगाकर इस जीवन की लीला को समाप्त कर दिया।

इस कथा के अनुसार सुलतान बेघारा को जब यह बात पता चली तो वह क्रोध में पागल हो गया।  उसने इस अद्भुत बावड़ी का निर्माण करने वाले समस्त कामगारों को मरवा दिया।  यह बावड़ी रुदाबाई की अद्भुत कहानी कहती है। एक ओर इतिहासकार इसे सुलतान का रानी के प्रति प्यार बताते हैं, तो वहीं यह मात्र रानी के अपने पति के प्रति प्रेम की कहानी है।

कर्णावती की रानी रुदाबाई के जीवन से जुड़ी दोनों ही कहानियां अत्यंत ही शौर्य की कहानियाँ हैं, यह हमारा इतिहास हैं। अत: अहमदाबाद का नाम कर्णावती ही होना चाहिए, जिससे रुदाबाई जैसी वीर स्त्रियों की कहानियाँ हम सभी के सामने आ सकें। नहीं तो रानी के पति को मारकर रानी को वैधव्य देने वाला हवसी सुलतान बेघारा अमर प्रेमी बना रहेगा और रानी के वीर पति खलनायक!

जबकि कहानी उल्टी है, विपरीत है।  यही समय है जब अहमदाबाद का नाम कर्णावती किया जाना चाहिए क्योंकि जब यहाँ पर ओलंपिक्स कराने की योजना है और जब यहाँ पर विदेशों से पर्यटक आएँगे तो वह इस बावड़ी की कहानी को सुलतान द्वारा रानी के प्रेम में पागल होने के रूप में पढेंगे और उसके पीछे हजारों सैनिकों की लाशों, और लाखों हिन्दुओं का खून छिप जाएगा, जिन्हें केवल और केवल हिन्दू होने की सजा मिली थी, जिन्हें केवल अपने धर्म पर टिके रहने की सजा मिली थी, और वह भी उनके द्वारा जो इस देश में हमलावर थे। हमें हमलावर की पहचान नहीं, अपनी पहचान और इतिहास चाहिए और समय अभी है

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Sonali Misra March 5, 2021
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Sonali Misra
Posted by Sonali Misra
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सोनाली मिश्रा स्वतंत्र अनुवादक एवं कहानीकार हैं। उनका एक कहानी संग्रह डेसडीमोना मरती नहीं काफी चर्चित रहा है। उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति कलाम पर लिखी गयी पुस्तक द पीपल्स प्रेसिडेंट का हिंदी अनुवाद किया है। साथ ही साथ वे कविताओं के अनुवाद पर भी काम कर रही हैं। सोनाली मिश्रा विभिन्न वेबसाइट्स एवं समाचार पत्रों के लिए स्त्री विषयक समस्याओं पर भी विभिन्न लेख लिखती हैं। आपने आगरा विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में परास्नातक किया है और इस समय इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय से कविता के अनुवाद पर शोध कर रही हैं। सोनाली की कहानियाँ दैनिक जागरण, जनसत्ता, कथादेश, परिकथा, निकट आदि पत्रपत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं।
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