मनीष ठाकुर। वाक्या फरवरी 2011 का है गोधरा कांड का जजमेंट कवर करने के लिए गुजरात जाना हुआ तो किसी कारणवस लगभग 20 दिन वहीं रहना पर गया। उसी दौरान एक शामअहमदाबाद के प्रेस कल्ब में वहां के कुछ पत्रकार साथियों के साथ बैठा और उनके मुख्यमंत्री नरेद्र मोदी के बारे में जानने की कोशिस कर रहा था। वह इसलिए क्योंकि गुजरात में जी न्यूज के ब्यूरो प्रमुख मेरे साथी भार्गव पारिख और हमारे चैनल के ब्यूरो प्रमुख ने हमे बताया था कि उनके मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी कई साल से प्रेस से नहीे मिल रहे। उनके् मुताबिक, बस एक सीडी जारी कर देते हैं प्रेस वाले उसे लूटने पहुंच जाते हैं हो गई प्रेस कांफ्रेस। भार्गव भाई और साथी मयूर जानी ने हमे बताया कि एक समय तो गुजरात सरकार के मीडिया प्रभारी टीवी के कैमरामैन को बुलाकर सीएम की पीसी करा लेते थे। बाद में पत्रकारों ने उसका जमकर विरोध किया तो सीडी दी जाने लगी।
गुजरात के पत्रकार साथियों का दर्द था कि उनका सीएम तो कैमरे पर आता ही नही। कभी वे सवाल जवाब ही नही कर पाते। दरअसल खिलाड़ी पक्षकारो की जिद्द थी कि वो एसआईटी को नही मानेंगे जो सुप्रीम कोर्ट ने बनाया था। वो उस अदालत को नही मानते, जो सुप्रीम कोर्ट की बनाई एसआईटी के आधार पर फैसला देती है। वो बस फरेब कर तैयार अपनी स्टिंग, तीस्ता सितलवाड़ द्वरा कब्र खोदकर लाश के साथ खेलते हुए यह साबित कर देंगे कि कैसे किसी एक महिला के गर्भ से भ्रूण निकाल कर मार दिया। वे तमाम कांग्रेसी नेता जो दंगा में शामिल थे तीस्ता के इस्तेमाल से कैसे उन्हे बचाकर साबित कर देंगें की दंगा एकतरफा था और उसमें सरकार की भूमिका थी। फरेबियों ने अपने फरेब को अलग अलग रंग में रंगा यह सब एसआईटू रिपोर्ट में है। फंडिग पा रहे इन फरेबियों को गुमान था कि वो लगातार अपना फरेब साबित कर मोदी को घर में घुसा दिए हैं। कैमरे से दूर कर दिए। आखिर एक आदमी एक झूठ पर कितनी बार सफाई दे सकता है। तब और अब में अंतर यही है कि वो आज भी फरेबियों के कैमरे के सामने नहीं आते। कैमरे उनके दीवाने हो गए हैं। कैमरे की मजबूरी हो गए हैं मोदी! क्यों वे भारतीय टीवी कैमरे के श्रृंगार हो गए?
बतौर रिपोर्टर गुजरात दंगे को बहुत करीब से कवर किया है। पूरी एसआईटी रिपोर्ट दस्तावेज के रुप में मेरे पास है। कैसे भारतीय मीडिया ने स्टींग के खेल के लिए तहलका डॉटकाम बनाया,उसके फर्जी पत्रकार आशिष खेतान का फर्जीवाड़ा उसमें तीस्ता सितलवाड़ और एनडीटीवी की सुपारी से लेकर कई पत्रकारों का तीस्ता के साथ मिलकर की गई साजिश। इसके बदले तिस्ता और तहलका के एकाउंट में करोड़ो की फंडिग। कभी दस्तावेज के साथ इस पर लिखूंगा। ये सब साजिश मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ बस इसलिए ताकि अटल बिहारी बाजपेई सरकार को गिराया जा सके। भारतीय मीडिया का बड़ा हिस्सा लगतार उसके लिए नरेंद्र मोदी के खिलाफ साजिश कर उन्हें दंगाई साबित करने में लगा था। इसके लिए वो तमाम भारतीय पक्षकार अपने धंधे में लगे थे जिन्हे सुपारी दी गई थी जिन्हे हम और आप बिला वजह बड़ा पत्रकार मान रहे थे। तहलका का संपादक तरुण तेजपाल (फ्रौड और बलात्कार के आरोप में जेल जा चुका है) उस समय हम सब उदयिमान पत्रकारों के लिए आदर्श था। आज उन तमाम लोगों से घिन आती है।
कभी सोचिएगा इन संपादकों की दस से पचास लाख की सैलरी क्यों होनी चाहिए? ऐसा क्या करते हैं ये? जबकि उन्ही की टीम में लोग दस हजार पर रिपोर्टिंग कर रहे हैं। जिस पत्रकारिता को खोजी पत्रकारिता का नाम दिया गया वो दरअसल उगाही के धंधे से ज्यादा कुछ था ही नहीं। आज वे ज्यादातर पक्षकार हासिए पर हैं। उनमें ज्यादातर से मिलने, उन्हें छूने की चाह होती थी लेकिन जब नजदीक से जाना तो वे दोयम दर्जे के उठाईगिर और उचक्के से ज्यादा नहीं लगे! इसीलिए जब आप उन्हे टीवी पर विश्लेषण करते देखते हैं तो आपको हसीं आती होगी। ये तमाम उठाईगिरों के सरगना सालों तक बस मोदी के खिलाफ साजिश रचते रहे,आज उनकी इन्ही साजिशों ने मोदी को इतना बड़ा बना दिया कि देखकर उनका छाती फटता होगा। सूरत का रोड सो तो बताता है कि नफरत के बीज से कोई रॉक स्टार कैसे पैदा होता है? भारतीय राजनीति में मोदी से ज्यादा धृणा मीडिया ने किसी के खिलाफ नहीं फैलाया। सच यही है । अब हालात यह है कि कह सकते है कि मीडिया में मोदी से ज्यादा महिमांमंडन भी किसी का नहीं हुआ।
कभी कैमरे से दूर रहने वाले मोदी जानते हैं कि सेल्फी के एक एक शाट के मायने क्या हैं? ललाट पर त्रिपूंड के मायने क्या हैं? मंदिर के दीवारों को निहारने वाले शाट के मायने क्या हैं? दरअसल वो टीवी के परेबियों को एक एक शॉट के मायने सिखा रहे हैं। वो जानते हैं लाख विकास के नाम पर 20 घंटे काम किया जाए ,उसके लिए दिन रात एक कर लें , लेकिन तृष्टिकरण की नीति से दशकों से त्रस्त ,राजनीति के शिकार मानस को कैमरे के इस शॉट से शूकुन मिलता है।। कभी कैमरे के खिलाड़ियों के खेल से त्रस्त मोदी, कैमरे के हर श़ॉट के महारथी नजर आने लगे हैं। और बच्चा – बच्चा उन्हे अपने कैमरे मे समेटने के लिए दीवाना बना हुआ है। आपने सुना होगा उन युवको, किशोरो और बच्चो की बाइट ,जो दीवाना बना हुआ था अपने पीएंम की एक झलक पाने को,,उन्हें अपने मोबाईल के कैमरे में कैद करने के लिए। अब फरेबी सोच रहे होगें कि किसने गढा मोदी को…पेशे की अाबरू लूट कर तुम्हीं ने तो गढा है! सोचो न! देखो न ,एक-एक शाट क्या कह रहे हैं!टीवी की भाषा तो जानते हो न!