संदीप देव । भारत में मुस्लिम तृप्तीकरण का एक सिरा दुनिया के मुस्लिम देशों से भी जुड़ा है, जिसे खुश करने का प्रयास गांधी-नेहरू से मोदी तक हर नेता करते रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने तो करीब छह मुस्लिम देशों से अवार्ड भी लिया, तुर्की, अफगानिस्तान को सहायता भी दी, लेकिन फिर भी वो मुस्लिम देशों का भरोसा नहीं जीत पाए।
G20Kashmir की बैठक में सउदी अरब, मिश्र, तुर्की ने पाकिस्तान से इस्लामी यारी निभाते हुए उसमें शामिल होने से मना कर दिया। मिश्र को प्रधानमंत्री मोदी ने विशेष अतिथि के तौर पर बुलाया था, परंतु उसने अपने मजहबी भाईचारे के आगे विशेष अतिथि बनने को कोई महत्व नहीं दिया और इससे दूरी बना ली।
दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम देश इंडोनेशिया ने अपने भारतीय दूतावास के एक अदने से अधिकारी को भेज कर भारत का एक तरह से अपमान ही किया है। यही नहीं, जिस चीन का तुष्टिकरण नेहरू के बाद सबसे अधिक मोदी ने किया है, उसने भी कश्मीर को विवादित क्षेत्र बताकर इस सम्मेलन में आने से मना कर दिया है। पीएम मोदी चीन के राष्ट्रपति को झूला झुलाते रहे, सबसे अधिक चीनी निवेश उन्होंने भारत में कराया और तथ्य यह है कि चीन बार-बार अपने मित्र पाकिस्तान के साथ जाकर खड़ा हो जाता है।
सवाल उठता है कि इतना मुस्लिम तृप्तीकरण के बाद भी भारत को मुस्लिम देशों से आखिर क्या मिला? भूकंप में भारत से सहायता मिलने के बाद भी तुर्की UN में पाकिस्तान के पक्ष में खड़ा हो गया?
आखिर भारत के राजनेता ‘इस्लामी ब्रदरहुड’ की अवधारणा से आंखें क्यों चुराना चाहते हैं? क्यों शुतुरमुर्ग की तरह स्वयं के साथ-साथ पूरे देश को धोखा देते हैं? क्यों भारत की बहुसंख्या हिंदू जनता के जीवन को बार-बार दांव पर लगाते हैं? यह प्रश्न भारत की हिंदू जनता जब तक नहीं पूछेगी, तब तक हर नेता उनसे वोट लेकर उनके और इस देश के साथ हमेशा छल ही करता रहेगा! मुस्लिम देशों ने अवार्ड भले प्रधानमंत्री मोदी को दिया हो, परंतु भाईचारा वो पाकिस्तान के साथ ही निभा रहे हैं! #G20Kashmir बैठक से एक बार पुनः यह साबित हो गया है!