डॉ रजनी रमण झा । नासदीय सूक्त (ऋग्वेद, मण्डल – १०, सूक्त – १२९
ऋषि – परमेष्ठि प्रजापति
देवता – परमात्मा
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(२)
न मृत्यरासीदमृतं न तर्हि न रात्र्या अह्न आसीत्प्रकेत: ।
आनीदवातं स्वधया तदेकं तस्माद्धान्यन्न पर: किं च नास ।।
अर्थ – उस समय (सृष्टि से पूर्व या प्रलयावस्था में ) न मृत्यु थी, न अमृत अर्थात् मृत्यु का अभाव ही था, न रात – दिन का बोधक चिह्न था। अकेला वह मायायुक्त कारण ब्रह्म निष्क्रिय रूप में बिना वायु के प्राणयुक्त था। निश्चित ही उससे भिन्न एवम् उससे परे कुछ भी नहीं था।