प्रो. रामेश्वर मिश्र पंकज । ईस्ट इंडिया कंपनी का जेम्स टॉड नामक कर्मचारी पहले सर्वेक्षक के रूप में कंपनी का नौकर होकर आया और फिर नापजोख के काम में कुशल होने के कारण उसे सेना में वह काम दे दिया गया तथा साथ ही कंपनी को जिस क्षेत्र में अभियान करना हो या छल कौशल से कब्जा करना हो, उस क्षेत्र में घूम कर पहले उसके नक्शे बनाने का काम सौंपा गया। इसी काम के लिये उसे राजस्थान भेजा गया और राजस्थान में वह अलग-अलग राजाओं के यहाँ बड़ी ही विनम्रता और शिष्टाचार के साथ जाकर उनसे ही सहायक मांग कर क्षेत्र में घूम-घूम कर नक्शे बनाता रहा परंतु वस्तुतः जो नक्शे वह कंपनी के मुख्यालय में ले गया, वे सब नक्शे अलग-अलग राज्यों में अभिलेखागारों में सुरक्षित नक्शों की प्रतिलिपि ही थे।
यह उसने स्वयं बताया है। घूमने से उसे इलाके की जानकारी मिली और अपने भेद दृष्टि के चलते वह हर जगह यह तलाशता था कि कहाँ क्या कमजोरियाँ हैं और उनका क्या लाभ कंपनी ले सकती है। यह सदा ध्यान रखना चाहिये कि घूमते हुये उसने केवल मधुर संबंध बनाने पर ही ध्यान दिया और राजाओं से यही कहा कि हम आपके राज्य के विषय में कंपनी के अधिकारियों को और इंग्लैंड के शासन को जानकारी देंगे जिससे कि वे आपसे आत्मीय संबंध बनाये।
राजाओं में कुतूहल और जिज्ञासा की प्रवृत्ति थी और उन्होंने ग्राम प्रधानों तथा पंडितों में से कुछ को हर जगह उसकी मदद के लिये दे दिया। यह सब आत्मीय वातावरण में ही हुआ।
राजपूतों से बात करके तथा स्वयं मुगलों से बात करके उसने उनके विषय में उस समय अर्थात् 19वीं शताब्दी ईस्वी में जो बातें सर्वप्रसिद्ध थीं, उनका ही संकलन किया। अतः तथ्यों के स्तर पर उसकी बात प्रामाणिक माननी चाहिये।
अपनी पुस्तक के अध्याय 8 में उसने बताया है कि मुगल बादशाह (जिसे वह हर जगह कभी एम्पर और कभी किंग लिखता है) तथा राजपूत राजाओं के बीच जो संधिपत्र थे, उनमें यह लिखा है कि बादशाह राजा को सम्मानचिन्ह भेंट करेगा और राजा तथा बादशाह में आत्मीय संबंध रहेंगे। बादशाह अपनी रक्षा के लिये जब उनसे सहायता मांगेगा, तब वे निर्धारित संख्या में सेना को वहाँ भेजेंगे। इसे मुगल लोग सनद कहते थे और जब यह सनद किसी राजा को दी जाती थी तो उसके साथ बादशाह संबंधित राजा को हाथी, घोड़े, मूल्यवान वस्त्र और बहुमूल्य आभूषण भेंट में देकर उनका सम्मान करता था। राजा लोग वर्ष में एक बार एक निश्चित धनराशि नजराने के रूप में बादशाह को देते थे।
(देखें कर्नल जेम्स टॉड कृत राजस्थान का इतिहास, भाग 1, पृष्ठ 78, मूल अंग्रेजी से हिन्दी में केशव ठाकुर द्वारा अनूदित तथा लोकेश शर्मा द्वारा संपादित और साहित्यागार, चौड़ा रास्ता, जयपुर से वर्ष 2012 ईस्वी में प्रकाशित)
इसी पुस्तक में पृष्ठ 79 पर लिखा है – ‘जलालुद्दीन अकबर ने हिन्दू और मुसलमानों का भेद मिटा दिया था। आमेर राज्य दिल्ली के समीप था और अपेक्षाकृत कमजोर था। अन्य राजपूत राजाओं से अपनी रक्षा के लिये राजा भारमल्ल (या बिहारीमल्ल) ने जलालुद्दीन से रिश्ता बनाया और अपनी बेटी ब्याह दी। उसके बाद से अन्य अनेक राजपूत राजाओं ने भी अपनी बेटियाँ मुगलों को ब्याहीं। उन बेटियों से जो लड़के पैदा होते थे, उनके संरक्षक वे राजपूत राजा ही होते थे और इस प्रकार उन राजाओं ने अपने-अपने राज्य की वृद्धि की। सलीम (जहांगीर) का जन्म भी एक राजपूत बाला से ही हुआ था और सलीम का बेटा खुर्रम भी राजपूतनी माँ का बेटा था। उसकी माँ का नाम था मानवती देवी जिन्हें जगत गुसाईं भी कहा जाता था।
इसी प्रकार मुइउद्दीन (औरंगजेब) स्वयं तो एक फारसी माँ का बेटा था परन्तु उसका बेटा अकबर राजपूत राजकुमारी से पैदा हुआ। इसीलिये राजपूत राजाओं ने मुइउद्दीन (औरंगजेब) को गद्दी से हटाकर राजपूतनी से उत्पन्न बेटे मुहम्मद अकबर को गद्दी पर बैठाने की कोशिश की। औरंगजेब के पड़पोते फारूख सियार को भी मारवाड़ की राजकुमारी ब्याही गई थी।
(उल्लेखनीय है कि राजकुमारी इंदिरा कंवर ने बाद में विधिवत शुद्धि करके हिन्दू धर्म अपना लिया था और वापस मारवाड़ जाकर रहने लगी थीं। काजियों ने फतवा जारी किया कि एक बार मुसलमान बन गई लड़की वापस गैर मुसलमान नहीं हो सकती परन्तु न तो तत्कालीन कथित मुगल बादशाह ने इन काजियों की बात मानी और न ही मारवाड़ नरेश ने तथा न ही इंदिरा कंवर ने – लेखक) इस प्रकार टॉड ने स्पष्ट किया है कि राजपूतों और मुगल जागीरदारों के संबंध किसी गुलामी के संबंध नहीं थे अपितु राजनैतिक संबंध थे और इन संधियों का सम्मान स्वयं मुस्लिम जागीरदार को करना पड़ता था तथा हिन्दू राजाओं को हाथी, घोड़े, आभूषण और मूल्यवान वस्त्र के उपहार देने होते थे। इन तथ्यों को न जानकर भी जो लोग गुलामी की बात करते हैं, वे संभवतः या तो किसी गुलाम हो चुके कुलों के वंशज हैं या बुद्धि से अत्यन्त दीन-हीन और दयनीय हैं।