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India Speaks Daily > Blog > राजनीतिक विचारधारा > अस्मितावाद > संघ औेर भाजपा मुक्त भारत का सपना देखने से पहले नीतीश कुमार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ताकत को तो पहचान लें!
अस्मितावाद

संघ औेर भाजपा मुक्त भारत का सपना देखने से पहले नीतीश कुमार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ताकत को तो पहचान लें!

Ras Bihari
Last updated: 2016/05/10 at 10:17 AM
By Ras Bihari 477 Views 19 Min Read
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19 Min Read
India Speaks Daily - ISD News
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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जनता दल के अध्यक्ष पद से शरद यादव की छुट्टी करने के बाद खुद पद संभाला और नारा दिया संघमुक्त भारत। उन्होंने गैर भाजपावाद के लिए सभी दलों से एकजुट होने की अपील की। लालू यादव ने तो नीतीश ने का समर्थन कर दिया और उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे दमदार उम्मीदवार भी बता दिया पर बिहार की सत्ता में भागीदार कांग्रेस ने इसे ठुकरा दिया। कांग्रेस ने साफ साफ बता दिया है कि उनके प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार राहुल गांधी ही होंगे। ऐसे में अपने सहयोगी दल से मिले जवाब के बाद नीतीश को आखिर कहना ही पड़ा कि वह प्रधानमंत्री पद के दावेदार नहीं है। नीतीश कुमार संघमुक्त भारत की बात तो कर रहे हैं पर भाजपा के साथ 17 साल रहने के बावजूद संघ की ताकत नहीं जान पाए।

भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर बिहार में लालू यादव का जंगलराज खत्म करने वाले नीतीश कुमार अब गैर भाजपावाद का नारा लगा रहे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लग रहा है कि अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा विरोधी सभी राजनीतिक दल उनके झंडे के नीचे आ जाएंगे। कमाल की बात यह है कि गैर कांग्रेसवाद नारे के सहारे के राजनीति में बढ़ते रहे नीतीश कुमार को अब भाजपा के खिलाफ कांग्रेस का साथ भी चाहिए। गैर भाजपावाद के साथ ही उन्होंने संघमुक्त भारत का नारा भी दिया है। नीतीश कुमार 17 साल तक भाजपा के साथ मिलकर राजनीति में बढ़ते रहे। अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के कारण नीतीश कुमार ने भाजपा से नाता तोड़ा। पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी, राहुल गांधी और नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री के दावेदार के तौर पर पेश किया गया। नतीजा हम सब के सामने हैं। मोदी के सामने सब धराशायी हो गए।

दरअसल नीतीश कुमार का नारा मोदी के खिलाफ है। दो साल में प्रधानमंत्री बनने के बाद ही मोदी ने देश की राजनीति की दशा-दिशा बदल दी। डा.राममनोहर लोहिया के गैर कांग्रेसवाद के नारे लगाने वाले नीतीश कुमार ने अब संघमुक्त भारत का सपना पाल लिया। पहले तो नीतीश को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ताकत को अनुमान लगाना होगा। साथ ही अपने साथ खड़े दलों की हैसियत भी आंकनी होगी। संघ और भाजपा का भय दिखाकर नीतीश कुमार भाजपा विरोधी दलों के सामने प्रधानमंत्री पद की दावेदारी ठोक रहे हैं। महागठबंधन में शामिल राष्ट्रीय जनता दल ने जरूर नीतीश कुमार के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनने की दावेदारी पर सहमति जताई है। महागठबंधन की हिस्सेदार कांग्रेस ने इस तरह की चर्चा को अभी हवा नहीं दी है। कांग्रेस का कहना है कि इस तरह की चर्चा समय से बहुत पहले हो रही है।

बिहार प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और राज्य के शिक्षा मंत्री अशोक कुमार चौधरी का कहना है कि लोकसभा का चुनाव 2019 में होना है। इस विषय अभी चर्चा का उचित समय नहीं है और अगले तीन सालों में गंगा से काफी पानी बह चुका होगा। यह आंकड़ों का खेल है और जो भी दल राष्ट्रीय स्तर पर सबसे अधिक सीटें जीतेगी वह केंद्र में सरकार बनाएगी। कांग्रेस एक राष्ट्रीय स्तर की पार्टी है और हमारे पास अधिक संख्या बल होंगे। चौधरी ने साफतौर पर यह भी जता दिया कि कांग्रेस के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार तो राहुल गांधी ही होंगे। उनकी राय में हर दल में एक नेता प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार है।

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आरजेडी लालू प्रसाद यादव को, तृणमूल कांग्रेस ममता बनर्जी को और कांग्रेस राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में देखा चाहती है। बाद में चौधरी ने यह भी कह दिया कि नीतीश कुमार ने स्वयं यह स्पष्ट कर दिया है कि वे इस पद के दावेदार नहीं है। चौधरी की इस बात पर भी गौर करने की जरूरत है कि जितना अधिक नीतीश कुमार का राजनीतिक तौर पर स्वीकार्यता बढ़ेगी, उतना ही राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने का मार्ग प्रशस्त होगा।इससे पूर्व कांग्रेस के महासचिव शकील अहमद ने राष्ट्रीय स्तर पर किसी प्रकार के गठबंधन से इनकार करते हुए कहा था कि 2019 के आते-आते मोदी सरकार और बीजेपी की स्थिति और भी बिगड़ेगी, ऐसे में उनकी पार्टी को किसी प्रकार के गठबंधन की आवश्यकता नहीं होगी। भारत की जनता स्वयं ‘आरएसएस और बीजेपी मुक्त’ भारत का मार्ग प्रशस्त कर देगी। इससे इतना तो साफ हो गया है कि कांग्रेस भाजपा के खिलाफ अपनी अगुवाई में अभियान चलाएगी।

मिलने से पहले साथ छोड़ने की तैयारी

संघमुक्त भारत नारे का समर्थन तो राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी भी पार्टी कर रही है। गैर-भाजपा दलों के बीच एकजुटता के लिए जदयू प्रमुख नीतीश कुमार के प्रयास का समर्थन भी किया, लेकिन प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवार होने के मुद्दे पर कोई चुप्पी साध रखी है। राकांपा महासचिव तारिक अनवर ने यह तो कहा है कि उनकी पार्टी नीतीश कुमार की संघमुक्त भारत की अपील का समर्थन करती है। उनकी पार्टी ऐसे किसी वैकल्पिक गठबंधन का हिस्सा हो सकती है जो भाजपा और आरएसएस को हरा सके। तारिक का यह भी कहना है कि उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में भी ऐसी पार्टी या गठबंधन को समर्थन देने का फार्मूला अपनाएगी जो भाजपा या आरएसएस को हरा सके। तारिक ने नीतीश कुमार के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनने के मसले पर कांग्रेस की तरफ ही रुख अपना रखा है। उनकी राय में भी नीतीश के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की दावेदारी अभी समय से बहुत पहले की चर्चा है। अभी तो चुनाव तीन सला दूर बताते हुए उन्होंने कहा कि नेतृत्व के मुद्दे पर फैसला करने के लिए अभी काफी समय है। पहले मोर्चा या गठबंधन बनने दीजिए और उसके बाद ही हम इस पर सोच सकते हैं।

लोकतांत्रिक ढांचे में कोई भी किसी नेता को थोप नहीं सकता। इसके बदले नेता का चुनाव आम सहमति से होगा। भाजपा के खिलाफ तो सब एकजुट होने की बात कर रहे हैं पर नेता होगा, इसके लिए इंतजार करना होगा। जाहिर है कि भविष्य में भी नेता कौन, इस सवाल पर एकजुट होना आसान नहीं है। नीतीश कुमार जदूय के मुखिया जरूर बन गए हैं, पर उत्तर प्रदेश विधानसभा के अगले साल होने वाले चुनाव से पहले जदयू, राष्ट्रीय लोकदल और अन्य दलों की मिलाकर नई पार्टी बनाने की कोशिश भी सफल नहीं हुई है। सबसे बड़ा धक्का तो नीतीश को उत्तर प्रदेश में ही लग गया है। उत्तर प्रदेश में जदयू का तो कोई वजूद है नहीं। कांग्रेस जदयू से कोई तालमेल को तैयार नहीं है। कांग्रेस बहुजन समाज पार्टी से तालमेल की इच्छुक है पर मायावती कांग्रेस से हाथ मिलाने को तैयार नहीं। ऐसे में जदूय और राष्ट्रीय लोकदल को एक करने की कोशिश थी। अब खबर आ रही है कि रालोद के अध्यक्ष अजित सिंह भाजपा के साथ मिल सकते हैं। अजित सिंह पहले भी भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ चुके हैं। भाजपा से समझौते को लेकर रालोद के कार्यकर्ता खुश तो नहीं पर पार्टी की हालत भी ऐसी नहीं है कि अकेले दम पर कोई दम दिखा सके।

संघ की ताकत तो देखें नीतीश

गैर कांग्रेसवाद का नारा राममनोहर लोहिया और भारतीय जनसंघ के पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने मिलकर आगे बढ़ाया था। आज नीतीश कुमार इसी तर्ज पर गैर भाजपावाद का नारा लगाकर भाजपा और संघ के खिलाफ एकजुट होने की बात तो कर रहे हैं पर शायद उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं है कि संघ की ताकत क्या है। संघ का काम देश में लगातार बढ़ रहा है। पिछले एक वर्ष में 5 हजार 524शाखाएं और 925 साप्ताहिक मिलन बढ़े हैं। वर्ष 2012 में 40 हजार 922 शाखाएं थी, जो वर्ष 2015 में बढ़कर 51 हजार 335 हो गईं। इन तीन वर्षों में 10 हजार 413 शाखाएं बढ़ी हैं। वहीं वर्ष 2016 में 5 हजार 524 शाखाओं की बढ़ोतरी के साथ कुल 56 हजार 859 शाखाएं हो गई हैं। देश के कुल 840 जिलों में से 820 में संघ का काम है। कुल 90 प्रतिशत ब्लाकों में संघ का काम चल रहा है।संघ की शाखाओं की संख्या ग्रामीण क्षेत्रों में ही ज्यादा है। 2594 शहरों में 2406 में संघ का काम चल रहा है।

संगठन का विस्तार करने के लिए संघ देशभर में फैले अपने दायरे को और फैलाने की तैयारी में है। अपनी स्थापना के 90 साल पूरा कर चुका संघ देश के हर गांव में शाखा शुरू करने की तैयारी में है। संघ ने देश के छह लाख गांवों तक अपनी पैठ बनाने के लिए नई योजना तैयार की है। इसके तहत दस-दस गांवों का समूह बनाया गया है. हरेक समूह को एक खंड या एक ब्लॉक माना जाएंगा। संघ की योजना 2016 तक इन सभी 60 हजार खंडों में एक शाखा खोलने की है। संघ एक कुआं, एक मंदिर और एक श्मशान को तेजी से आगे बढ़ाने की तैयारी में है। पिछले साल नागपुर में हुई संघ की प्रतिनिधि सभा की बैठक में दलितों को जोड़ने की कवायद शुरू हुई थी। इसके तहत एक कुंआ, एक श्मशान और एक मंदिर का प्रस्ताव पारित किया गया था।

नीतीश कुमार के संघमुक्त भारते के नारे और उस के पक्ष में भाजपा विरोधी ताकतों के समर्थन में जवाब में सोशल मीडिया पर संघ परिवार की शक्ति के बारे में व्यापक प्रतिक्रिया हुई। संघ और भाजपा के नेताओं तथा कार्यकर्ताओं की तरफ से नीतीश कुमार के सपने का जमकर मजाक उड़ाया जा रहा है। संघ की ताकत के बारे में सोशल मीडिया पर चल रहे एक संदेश को लेकर एक टीवी चैनल की गई पड़ताल से लगाया जा सकता है। संदेश में बताया गया है कि आरएसएस की कुल 60 हजार शाखाएं लगती हैं।

दूसरा दावा है कि आरएसएस में करीब 60 लाख स्वंयसेवक है। पड़ताल में पहले दोनों दावे सच साबित हुए हैं देश भर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 60 हजार शाखाएं लगती हैं और 60 लाख स्वंयसेवक हैं। अगला दावा है कि देश भर में करीब 30 हजार विद्यामंदिर हैं, 3 लाख आचार्य हैं और स्कूलों में 50 लाख विद्यार्थी पढ़ते हैं। पड़ताल में पता चला कि आरएसएस की तरफ से संचालित देश में 30 हजार नहीं 24 हजार 414 विद्यामंदिर हैं आचार्यों की संख्या करीब एक लाख 46 हजार 643 हैं। विद्यार्थियों की संख्या 50 लाख नहीं करीब साढ़े चौतींस लाख है। संदेश में बताया गया है कि 90 लाख बीएमएस के सदस्य हैं और 50 लाख एबीवीपी के कार्यकर्ता जबकि 20 लाख भारतीय किसान संघ के सदस्य है।

पड़ताल में सामने आया कि भारतीय मजदूर संघ यानी बीएमएस में 90 लाख से ज्यादा 2 करोड़ सदस्य हैं और एबीवीपी के 50 लाख नहीं 27 लाख कार्यकर्ता हैं. हालांकि ये दावा बिल्कुल सही है कि भारतीय किसान संघ के 20 लाख सदस्य हैं। बीजेपी के 10 करोड़ सदस्य होने का दावा किया गया है। पूर्व सैनिक परिषद में एक लाख सद्स्य हैं। बीजेपी के 10 करोड़ सदस्यों का दावा सच है। इसी तरह पूर्व सैनिक परिषद में एक लाख सदस्यों का दावा सच्चा है।

संदेश में किए आखिरी चार दावों में बताया गया है कि 7 लाख विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के सदस्य हैं। 13 राज्यों में सरकारें हैं, 283 सांसद हैं और 500 विधायक भी हैं। पड़ताल में पाया गया है कि सात लाख विहिप और बजरंग दल के सदस्यों का दावा सच है। 13 राज्यों में सरकार का दावा भी सच्चा है. ये भी सच है बीजेपी के 500 विधायक हैं। हालांकि बीजेपी के 283 नहीं 328 सांसंद हैं जिसमें 281 लोकसभा में और 47 राज्यसभा में हैं। टीवी चैनल की तरफ कहा गया है कि ज्यादातर दावे या तो सही हैं या सच के काफी करीब हैं। इसलिए हमारी पड़ताल में वायरल हो रहा ये संदेश सच साबित हुए हैं। 1925 में अपनी स्थापना के बाद संघ ने तमाम झंझटों और प्रतिबंधों और नफरत की राजनीति में अपनी ताकत बढ़ाई है। संघ जिन क्षेत्रों में काम कर रहा है, वहां तो संघमुक्त भारत का नारा देने वाले पहुंच भी नहीं सकते।

कोई दम नहीं गैर भाजपावाद के नारे में

संघ और भाजपा की बढ़ती ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि गैर कांग्रेसवाद के नारे पर राजनीति करते रहे दल आज गैर भाजपावाद के नाम पर एकजुट होने की बात कर रहे हैं। इनमें ज्यादातर दलों के नेता अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए कभी एक हो जाते हैं और कभी एक-दूसरे को गाली देने लगते हैं। 1967 में कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा बनाने की बात हुई। विपक्षी दलों में एका न होने के कारण अलग-अलग चुनाव लड़ा गया। कांग्रेस की ताकत तो घटी। कुछ कांग्रेसी नेताओं ने पार्टी भी छोड़ी। गैर कांग्रेसवाद के नारे को पंडित दीनदयाल उपाध्याय और राममनोहर लोहिया ने आगे भी बढ़ाया। एक साल बाद ही उनके निधन से यह अभियान आगे नहीं बढ़ पाया।

1971 में गरीबी हटाओं का नारा लगाकर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने विपक्षी दलों की ताकत को कम कर दिया। आपात काल के बाद हुए चुनाव में सभी दल एक झंडे के नीचे आए और केंद्र में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी। कई राज्यों में कांग्रेस का सफाया हो गया। जनता पार्टी के नेताओं के आपसी टकराव के कारण पार्टी टूट गई। संघ से जुड़ने के सवाल पर भारतीय जनसंघ के जनता पार्टी में शामिल हुए नेता भी भारतीय जनता पार्टी की गठन कर अलग हो गए। आज उसी जनता पार्टी में शामिल नेता गैर भाजपावाद का नारा दे रहे हैं। बिहार और उत्तर प्रदेश को छोड़ भी दे तो बाकी राज्यों में ऐसे दलों की ताकत कम ही हो रही है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पालने के लिए ही भाजपा से समझौता तोड़ा और अब देश में अगुवाई करने के लिए गैर भाजपावाद का नारा उछाल रहे हैं।

1967 और 1977 में देश में आए बदलाव को समाजवादियों ने ही आगे नहीं बढ़ने दिया। जनता पार्टी का पतन भी समाजवादियों के कारण ही हुआ। आज भी समाजवाद की घुट्टी पीने वाले नेता फिर से कांग्रेस के सहारे राजनीति में जमना चाहते हैं। बिहार में तो राजनीतिक अवसरवाद ने सभी रिकार्ड तोड़ दिए थे। कभी लालू यादव के साथ रहे नीतीश बिहार में जंगलराज का आरोप लगाकर भाजपा के साथ आ गए। 17 साल तक भाजपा का गुणगान करते रहे नीतीश अचानक लालू के साथ चले गए और कांग्रेस से भी हाथ मिला लिया। अब नीतीश की दिक्कत यह है कि लालू यादव से साथ तालमेल करना आसान तो नहीं है।

लालू भी चाहते हैं कि नीतीश बिहार की कमान उनके परिवार के लिए छोड़ दें और देश की राजनीति करें। इसी कारण लालू और उनका परिवार नीतीश को प्रधानमंत्री पद का सबसे दमदार उम्मीदवार बता रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी, पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, ओडिशा में बीजू जनता दल, तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक के अलावा बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रीय लोकदल, इंडियन नेशनल लोकदल, द्र्मुक जैसे दल नीतीश कुमार के नेतृत्व को स्वीकार करेंगे। भाजपा ने तो अपने सहयोगी दलों की संख्या बढ़ाई है। आगे भी बढ़ सकती है। ऐसे में नीतीश कुमार का गैर भाजपावाद का नारा फुस्स ही होने वाला है!

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TAGGED: Bjp, Narendra modi, Nitish Kumar, RSS
Ras Bihari May 10, 2016
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Ras Bihari
Posted by Ras Bihari
Senior Editor in Ranchi Express. Worked at Hindusthan Samachar, Hindustan, Nai Dunia.
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