- देश का नाम- भारतवर्ष
- राष्ट्रभाषा -संस्कृतं, पण्डित/Dr. अम्बेडकर का जनंदिन 14/4/2024 को संस्कृत दिवस घोषणा करना
- छत्रपति शिवाजी का जन्म्स्तान जुन्नर को- वीर्भूमी घोषित करना
- वीर्भूमी मे तक्षशिला के तर्ज पर- दक्षिणशिला का स्तापना करना
- शिवनेरी(छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्मस्तान)से वैष्णोदेवी तक की राजमार्ग को – शिवाई -वैश्नोदेवी राजमार्गः गोषित करना
समय के साथ ये पांच बदलाव करने की जरूरत
वेद, उपनिषद, रामायण या महाभारत, भगवत गीता, किसी भी ग्रंथ में हिंदू भारत या हिंदुस्थान का कोई उल्लेख नहीं है, भगवान कृष्ण ने अर्जुन को बहुत कम बार सनातनी कहा और भारत को सबसे अधिक बार। संकल्प करते समय भी हम जम्बूद्वीप, भरतखण्ड, भारतवर्ष आदि के बारे में उल्लेख करते हैं। इसकी शुरुआत इस तरह होती है। यानी हिंदुस्तान देश का मूल नाम नहीं है। सही नाम भारतवर्ष होना चाहिए। हाल के दिनों में कई शहरों के ऐतिहासिक नाम बदले गए हैं। इसे भारत का ‘भारतवर्ष’ ही कहा जाना चाहिए।
हिंदी हमारे देश की क्षेत्रीय भाषा नहीं है। हिंदी भाषा की जड़ें फारस में देखी जा सकती हैं। जब फारसियों ने भारत में प्रवेश किया, तो संस्कृत देश की प्रचलित भाषा थी। हमलावरों के लिए संस्कृत भाषा का उच्चारण करना बहुत कठिन था। हमलावर यथाशक्ति संस्कृत भाषा का उच्चारण करने लगे। फिर वह भ्रष्ट हो गई। उनका उच्चारण देखकर स्थानीय लोग भी हमलावरों की तरह ही उच्चारण करने लगे। आक्रमणकारियों के इस भ्रष्ट संस्करण को शुरू में हिंदुस्तानी कहा जाता था। फ़ारसी भाषा में ‘स’ अक्षर नहीं है। इसलिए उन्होंने ‘स’ की जगह ‘ह’ का उच्चारण करना शुरू कर दिया। इसी कारण वे सिन्धु को हिन्दू कहने लगे।
हिंदू शब्द सिंधु नदी के आसपास रहने वाले निवासियों से जुड़ा था। हमारे देश के विशाल भौगोलिक क्षेत्र के संदर्भ में हिंदू शब्द का अर्थ सीमित है। बाद में इसी गलती के कारण भारत को अंग्रेजी में हिंदू नाम से इंडिया कहा जाने लगा। हमलावरों ने इसमें फ़ारसी के कुछ शब्द मिला दिये।इस प्रकार हिंदुस्तानी का उदय हुआ। जब अरबी लिपि का प्रयोग हुआ तो वह उर्दू बन गई, स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान एक बार फिर स्थानीय लोगों ने वीर गाथाओं में देवनागरी का प्रयोग करना शुरू कर दिया। इसके बाद हिन्दी भाषा बन गई। अर्थात हिन्दी संस्कृत से बिगड़ी हुई भाषा है। इस अर्थ में हिन्दी कोई शास्त्रोक्त भाषा नहीं है।
अतः संस्कृत की आवश्यकता है। संस्कृत एक प्राचीन भाषा है। वेद, उपनिषद, मनुस्मृति, प्राचीन कानून, प्राचीन चिकित्सा, गणित और कई शास्त्रीय साहित्य संस्कृत में संरक्षित हैं। जब तक हम इसे नहीं पढ़ेंगे, हमारा ज्ञान निष्क्रिय एवं निष्फल रहेगा। जब संसद में इस बात पर बहस चल रही थी कि हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी होनी चाहिए या संस्कृत, फिर डाॅ. बाबा साहब अम्बेडकर संस्कृत के पक्षधर थे। नेहरू हिंदी के पक्षधर थे। डॉ। बाबासाहेब अम्बेडकर भाषा के महत्व के बारे में उत्कृष्ट ज्ञान रखने वाले एक दूरदर्शी नेता थे।
इस भाषा ने निम्न वर्ग के लोगों की कठिनाइयों को दूर कर दिया और वे उच्च वर्ग के लोगों की तरह ज्ञान प्राप्त कर सके। इस भाषा से जमीनी स्तर के लोगों को वेदों, उपनिषदों और विज्ञान, औषधियों, गणित और वाड्मय की कई पुस्तकों का उचित और विश्लेषणात्मक ज्ञान प्राप्त करने में मदद मिलती। डॉ। अम्बेडकर इस भाषा की क्षमता या क्षमता को जानते थे। इसीलिए वे संसद में इस भाषा के पक्षधर थे। दरअसल डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर ‘पंडित’ लेबल के बिना एक सच्चे पंडित (विद्वान) थे।
हमें मनुष्य की प्रतिभा देखनी चाहिए, उसका लेबल नहीं। हम डॉ।बाबा साहेब अम्बेडकर के दृष्टिकोण को देखने में असमर्थ रहे हैं। उनकी आगामी जयंती यानि 14 अप्रैल 2024 को ‘संस्कृत दिवस’ घोषित किया जाना चाहिए। हमें हिन्दी के साथ-साथ संस्कृत को भी राष्ट्रभाषा मानना चाहिए।
दक्षिण में एक विश्वविद्यालय की स्थापना की जाये और उसका नाम दक्षिणशिला रखा जाये। ‘दक्षिणशिला’ एक संस्कृत शब्द है। अंग्रेजी में इसका पर्यायवाची शब्द सदर्न स्टोन है। मुगल साम्राज्य में क्रूर मुगलों का सामना करने के लिए शिवराय को अदम्य साहस दिखाना पड़ा। छत्रपति शिवाजी महाराज तब दक्षिण की चट्टान की तरह खड़े थे और उनकी युद्ध रणनीति, उनकी वीरता और प्रबंधन कौशल के सामने मुगलों की हर तलवार विफल थी। इसलिए इन्हें ‘दक्षिणशिला’ कहा जाना चाहिए।
इसका नाम ‘दक्षिणशिला’ रखने की मांग का एक अन्य कारण यह है कि प्रस्तावित विश्वविद्यालय ने एक बार भारत में तक्षशिला के ज्ञान का प्रदर्शन किया था और इस विश्वविद्यालय को भी ऐसा ही करना चाहिए। तक्षशिला में बड़े प्रतिभाशाली लोग थे। इसलिए पाणिनि, चाणक्य, चरक, जीविका और विष्णु शर्मा को लगा कि इस विश्वविद्यालय का विकास इस प्रकार किया जाए कि यह तक्षशिला की प्रतिकृति बन जाए।
छत्रपति शिवाजी महाराज ने हिंदू स्वराज्य की मशाल जलाए रखी और एक मजबूत नींव रखी जिसने आक्रमणकारियों को अफगानिस्तान तक खदेड़ दिया। ‘दक्षिणशिला’ नाम केवल छत्रपति शिवाजी महाराज के लिए उपयुक्त है। तक्षशिला के जन्म के 2500 वर्ष बाद भी हम वह उपलब्धि हासिल नहीं कर पाये हैं।
तक्षशिला ने जोकिया ओ अभितक नही हासिल किया है, इसलिए ‘दक्षिणशिला’ की आवश्यकता है। तक्षशिला मे 10,000 छात्रों की क्षमता के साथ 300 कक्षाएँ और 64 विषय का पडायी होता था। भारत में किसी भी मौजूदा विश्वविद्यालय की छात्र क्षमता 2,000 से अधिक छात्रों की नहीं है। हमारे भावी छात्रों को दुनिया को अपना कौशल दिखाने के लिए अंग्रेजी और संस्कृत में पारंगत होना चाहिए, इसलिए हमें दक्षिणशिला की आवश्यकता है।
जुन्नार तालुका का नाम बदलकर ‘वीरभूमि’ करने की जरूरत है।’ छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म पुणे जिले के जुन्नार तालुका में शिवनेरी किले में हुआ था। मुगलों के खिलाफ लड़ाई में उनके असाधारण साहस के लिए उनकी जन्मभूमि का नाम बदलकर ‘वीरभूमि’ रखा जाना चाहिए। इससे पहले मुगलों के खिलाफ लड़ने का ऐसा साहस किसी ने नहीं दिखाया था।
जुन्नार को वीरभूमि और जम्मू (कटरा) राजमार्ग को शिवई-वैष्णोदेवी राजमार्ग का नाम दिया जाना चाहिए। शिवनेरी किले में शिवई नाम की एक देवी है। छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म देवी के आशीर्वाद से हुआ था। उन्होंने एक मजबूत नींव रखी, जिसने आक्रमणकारियों को अफगानिस्तान तक खदेड़ दिया, जिसे माँ वैष्णो देवी और मा शिवाई , दो मंदिरों को जोड़ने वाला राजमार्ग, द्वारा संभव बनाया गया। इसलिए इसका नाम शिवाई-वैष्णोदेवी राजमार्गः रखा जाना चाहिए।’