
संघ परिवार – ईकोसिस्टम का इसरार!
पढ़िए शंकर शरण जी का लेख…
यहाँ बौद्धिक ईकोसिस्टम विद्वान नहीं, नेता बनाते हैं। अपने अनुकूल लेखकों, संपादकों, प्रोफेसरों, आदि को पद-स्थान देकर उसे फैलाते हैं। अतः वैकल्पिक ईकोसिस्टम बनाने की स्थिति संघ-भाजपा सत्ताधारियों की थी, जिसे उन्होंने सदैव गँवाया। वे कांग्रेसी-वामपंथी-जातिवादी-मिशनरी-इस्लामी विचारों व नीतियों पर ही चलते रहे। ऊपर से असहाय, नेतृत्वहीन हिन्दुओं को कोसते हैं। अन्धेनैव नीयमाना यथान्धाः!
भाजपा नेताओं के भाषणों में कांग्रेस के प्रति तंज, व्यंग्य में केवल सत्ता का घमंड झलकता है। कोई मौलिकता नहीं। जबकि भाजपा की नीतियाँ, क्रियाकलाप, तौर-तरीके, यहाँ तक कि सत्ता का दुरुपयोग भी कांग्रेस की ही नकल है। कांग्रेस से भिन्न भी भाजपा में जो दिख रहा, वह कम्युनिस्टों की नकल है। जैसे, घोर पार्टीवाद या संगठित भ्रष्टाचार। बंगाल में सीपीएम नेता व्यक्तिगत अपना घर नहीं भरते थे, इसलिए ‘ऑनेस्ट’ कहलाते थे। किन्तु उन की पार्टी क्या करती थी? उसी सत्ता का दुरुपयोग कर, हर व्यक्ति, दुकानदार, कंपनी, आदि से वसूली करती थी जिसे कोई काम हो।
लेकिन भाजपा ने तो राजनीतिक दलों द्वारा मनमाना विदेशी धन लेने को भी अबाध व गोपनीय अधिकार बना डाला! दलों को ‘सूचना के अधिकार’ के अंदर लाने के बदले, भ्रष्टाचार का विशेषाधिकार दे दिया। सुप्रीम कोर्ट में 11 अप्रैल 1919 को हलफनामा देकर कहा कि, (i) ‘‘लोगों को जानने की जरूरत नहीं कि राजनीतिक दलों को कहाँ से चंदा मिल रहा है’’; (ii) ‘‘समय की सच्चाई देखते हुए सोचना चाहिए’’; तथा (iii) ‘‘पारदर्शिता को कोई मंत्र नहीं बनाना चाहिए।’’ इस से अधिक भयंकर व संगठित भ्रष्टाचार, और इस के संभावित दुष्परिणामों की कल्पना भी कठिन है।
बाकी, इस्लामी तुष्टीकरण, चर्च-मिशनरियों को अपने धंधे की छूट, पोप को सलामी, और हिन्दू-विरोधी औपचारिक शिक्षा प्रसार में संघ-भाजपा और बढ़-चढ़ कर रही है। बड़े भाजपा पदाधिकारी ठसक से कहते हैं कि कांग्रेस ने मुसलमानों को ठगा, जबकि भाजपा उन को माल-मत्ता, विशेष ये वो दे रही है। जो सच है।
अतः केवल सत्ता की चमक से संघ-भाजपा का बौद्धिक दिवालियापन छिप रहा है। साथ ही, विरोधी दलों की इस्लामपरस्ती – जिस से भाजपा द्वारा हिन्दुओं के साथ विश्वासघात को कोई उजागर नहीं करता। कैसा दुर्भाग्य, कि संसद में सैकड़ों हिन्दू सांसदों में एक नहीं, जो भाजपा के इस विश्वासघात को उघाड़ सके! अन्यथा, भाजपा की स्थिति नंगे राजा जैसी है जिस का उल्लेख कोई अबोध बालक ही कर सकता है। सयाने, अपने-पराए दोनों, तो चुप रहेंगे।
उस राजा को कौन बताए कि नकल से ईकोसिस्टम नहीं बदलता। कि नेहरू की निंदा करना और नेहरूवादी नीतियों पर ही चलना लज्जास्पद है। कि कांग्रेस को हटाकर कांगेस बन जाना गौरव नहीं; अपितु देश के धन, समय, ऊर्जा की नाहक बर्बादी है। यही करने के लिए न संघ, न जनसंघ, न भाजपा बनाने की जरूरत थी। डॉ. हेडगेवार ने बिलकुल ठीक व्यवस्था दी थी कि जिस संघ स्वयंसेवक की रुचि राजनीति में हो, वह कांग्रेस, हिन्दू महासभा या किसी पार्टी से जुड़ कर करे। उस व्यवस्था को त्याग कर, पहले अपनी पार्टी बनाने, फिर केवल चुनाव जुगाड़ और अंततः सत्ता-निर्भर हो चुकने के बाद अब संघ-परिवार के विवकेशील भी चुप हैं। क्या करें? उन के अपने नेताओं के सामने इंदिरा गाँधी की मनमानियाँ भी छोटी लगने लगी है। गोविन्दाचार्य जैसे कुछ विचारशील भाजपा को ‘भगवा कांग्रेस’ कहते ही हैं।
इसलिए, भाजपा के मुँह से ईकोसिस्टम की बात हास्यास्पद है! जैसे नकल कर परीक्षाएं पास करने और जोड़-तोड़ से प्रोफेसर बन जाने वाला अपने को विद्वान समझे। कांग्रेसी-वामपंथी वैचारिकता भाजपा राज में यथावत शक्तिशाली बनी रही है, जिस का श्रेय संघ-परिवार को है। जो कदमताल और खोखले उपदेश ही मुख्य कार्य मानता है। शेष येन केन चुनाव जीतना, और राजकीय नीति, तरीकों, आदि में कांग्रेस अनुकरण। अपनी हिन्दू शिकायतें भी छोड़ देना। फलतः कांग्रेसी-वामपंथी ईकोसिस्टम को चुनौती तो दूर, उसे अतिरिक्त बल मिलता रहा है। आखिर, जब संघ-भाजपा भी वही सेक्यूलर, सूफी, दलित, गरीब, स्त्री, आरक्षण, आदि कसमें खाएं तो कांग्रेसी-वामपंथी वैचारिकता का दबदबा बना रहना स्वभाविक है।
ऐसे में भाजपा द्वारा कांग्रेस ईकोसिस्टम पर तंज हैरतअंगेज है। उन्हें यह भी पता नहीं कि ईको किसी आवाज की, किन्हीं विचारों की होती है। केवल पार्टीबंदी या राजकीय बिल्डिंगों पर नेता के नाम छाप देने की नहीं। यदि भाजपा भी मोइनुद्दीन चिश्ती पर चादर चढ़ा-चढ़ा, या तबलीगी सरपरस्त मौलाना वहीदुद्दीन को पुरस्कार दे-दे धन्य होती रहेगी, तो ‘ईको’ महाराणा प्रताप या सीताराम गोयल का कैसे बनेगा? वह तो इस्लामी दबदबे का ही बनेगा।
केवल सत्ता की चमक, नेता के नाटक, और दुनिया में हिन्दू-विरोधी दुष्प्रचार से हिन्दू ठगे जा रहे हैं। चौतरफा मार खाते बेचारे हिन्दू समाज को ही अंतर्राष्ट्रीय मीडिया, मिशनरी-तंत्र, और इस्लामी नेता दानव बताते हैं। इसी दुष्प्रचार को सच और ‘हिन्दुओं का सशक्तीकरण’ समझ मूढ़ लोग फूल रहे हैं!
जबकि भाजपा का दशकों से सत्ता में रिकॉर्ड है कि उस ने बुनियादी हिन्दू हित का एक काम नहीं किया। केवल बीच-बीच में दिखाऊ चुनावी लटके करना। बल्कि हिन्दू बयानबाजी भी वे केवल विपक्ष में रहते हुए करते हैं। सत्ता में आते ही हिन्दू उत्पीड़न पर मौखिक दुःख प्रकटन भी छोड़ देते हैं। उस के लिए देश-दुनिया को ललकारना, कुछ करना तो दूर रहा।
हाल में भी महाराष्ट्र, बिहार, बंगाल, दिल्ली से लेकर बंगलादेश तक हिन्दुओं पर जितने हमले, हत्याएं, अपमान या मंदिर विध्वंस हुए – उस पर बड़े संघ-भाजपा नेताओं का कोई भर्त्सना बयान भी ढूँढना कठिन है। कहीं पहुँच कर सांत्वना, सहायता देना तो छोड़िए! अभी 7 फरवरी को बंगलादेश के चकरिया में छः हिन्दुओं को गाड़ी से कुचल कर मार डाला गया। क्योंकि वे अपना एक मंदिर बनाना चाहते थे! पर भारतीय नेता चुप हैं, मानो यह सब मामूली घटनाएं हैं। उन के बोलने लायक नहीं। उन्हें देश-दुनिया में वैचारिक विमर्श बनने, बनाने या बदलने का ए.बी.सी. भी मालूम नहीं। ऐसे भोलेनाथों से क्या ईकोसिस्टम बनना है, जो सारे अवसर गँवा कर खुद को चतुर समझें?
अब वही चतुराई अनेक हिन्दू बौद्धिकों में आ गई है। जो वैसे तो जानकार हैं, किन्तु अब मुख्यतः कांग्रेस और गोलमोल विदेशियों की निंदा, तथा हर सही-गलत पर संघ-भाजपा का बचाव करते हैं। इसी को वैकल्पिक ईकोसिस्टम बनाना मानते हैं! कभी हिसाब नहीं करते कि बड़े नेताओं के ठोस वक्तव्य और कार्य ही विमर्श बनाते हैं। कोरी लफ्फाजी, नाटक, आडंबर, आदि नहीं। बल्कि उस से तो हिन्दुओं के दुश्मनों को ही दुष्प्रचार-मसाला मिलता है, जबकि हिन्दू समाज के पल्ले कुछ नहीं आता।
दुर्दशा यह है कि भारत में हिन्दू अपनी शिक्षा, और अपने मंदिरों पर उस अधिकार से वंचित है, जो मुसलमान, क्रिश्चियन को अपनी शिक्षा और अपने मस्जिद, चर्च पर है। ऊपर से, संघ-भाजपा का मंसूबा हिन्दुओं के सभी मंदिरों पर राजकीय/पार्टी कब्जे का है! वे हिन्दू समाज को पूर्णतः निर्बल निर्भर बनाकर अपने को सबल करना चाहते हैं। ऐसी मूढ़ता किशोर कालिदास भी नहीं दिखा सके थे।
यहाँ इतिहास यह है कि गत सौ वर्षों से राजनीतिक-अकादमिक विमर्श और मीडिया फैशन बड़े नेताओं ने स्थापित किया। बल और अहंकार पूर्वक। बड़े-बड़े मनीषियों को भी खारिज किया, यदि वे मतभेद रखते हों। गाँधीजी से लेकर, नेहरू, लोहिया, इंदिरा, वीपी सिंह, तक ने इस्लामपरस्ती, हिन्दुओं को जेब में समझना, वामपंथी प्रचार, जातिवादी द्वेष और ब्राह्मण-विरोध – यह सब नेताओं का किया धरा है। ऐसा करते हुए तब के श्रीअरविन्दो या टैगोर से लेकर आज के रामस्वरूप या अज्ञेय तक की बातें नितांत उपेक्षित की गईं।
अर्थात, यहाँ बौद्धिक ईकोसिस्टम विद्वान नहीं, नेता बनाते हैं। अपने अनुकूल लेखकों, संपादकों, प्रोफेसरों, आदि को पद-स्थान देकर उसे फैलाते हैं। अतः वैकल्पिक ईकोसिस्टम बनाने की स्थिति संघ-भाजपा सत्ताधारियों की थी, जिसे उन्होंने सदैव गँवाया। वे कांग्रेसी-वामपंथी-जातिवादी-मिशनरी-इस्लामी विचारों व नीतियों पर ही चलते रहे। ऊपर से असहाय, नेतृत्वहीन हिन्दुओं को कोसते हैं। अन्धेनैव नीयमाना यथान्धाः!
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