विकास थपलियाल। सरस्वती वंदना
ॐ रवि-रुद्र-पितामह-विष्णु-नुतं, हरि-चन्दन-कुंकुम-पंक-युतम्!
मुनि-वृन्द-गजेन्द्र-समान-युतं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।।१
शशि-शुद्ध-सुधा-हिम-धाम-युतं, शरदम्बर-बिम्ब-समान-करम्।
बहु-रत्न-मनोहर-कान्ति-युतं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।।२
कनकाब्ज-विभूषित-भीति-युतं, भव-भाव-विभावित-भिन्न-पदम्।
प्रभु-चित्त-समाहित-साधु-पदं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।।३
मति-हीन-जनाश्रय-पादमिदं, सकलागम-भाषित-भिन्न-पदम्।
परि-पूरित-विश्वमनेक-भवं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।।४
सुर-मौलि-मणि-द्युति-शुभ्र-करं, विषयादि-महा-भय-वर्ण-हरम्।
निज-कान्ति-विलेपित-चन्द्र-शिवं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।।५
भव-सागर-मज्जन-भीति-नुतं, प्रति-पादित-सन्तति-कारमिदम्।
विमलादिक-शुद्ध-विशुद्ध-पदं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।।६
परिपूर्ण-मनोरथ-धाम-निधिं, परमार्थ-विचार-विवेक-विधिम्।
सुर-योषित-सेवित-पाद-तलं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।।७
गुणनैक-कुल-स्थिति-भीति-पदं, गुण-गौरव-गर्वित-सत्य-पदम्।
कमलोदर-कोमल-पाद-तलं,तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।।८
।।फल-श्रुति।।
इदं स्तोत्रं महा-पुण्यं, ब्रह्मणा परिकीर्तितं। यः पठेत् प्रातरुत्थाय, तस्य कण्ठे सरस्वती।।
त्रिसंध्यं यो जपेन्नित्यं, जले वापि स्थले स्थितः। पाठ-मात्रे भवेत् प्राज्ञो, ब्रह्म-निष्ठो पुनः पुनः।।
हृदय-कमल-मध्ये, दीप-वद् वेद-सारे। प्रणव-मयमतर्क्यं, योगिभिः ध्यान-गम्यकम्।।
हरि-गुरु-शिव-योगं, सर्व-भूतस्थमेकम्। सकृदपि मनसा वै, ध्यायेद् यः सः भवेन्मुक्त।।
हिन्दी अर्थ
रवि रूद्र पितामह(ब्रह्माजी)और विष्णु जी के द्वारा नमस्कृत
हरिचंदन और कुंकुम के लेप से युक्त।
मुनियों के समूह और गणेश जी द्वारा सम्मान से युक्त, आपके चरणकमलों को हे! सरस्वती मां! मैं नमन करता हूं।१।
चंद्रमा की चांदनी, हिम, शरद ऋतु के बादल के समान आपके मनोहर चरण रत्न विभूषित हैं। आपके चरणों में प्रणाम हो।२।
स्वर्ण विभूषित, भावपूर्ण प्रभुप्रीति दायक आपके श्रेष्ठ चरणकमलों को प्रणाम हो ।।३।।
मतिहीन लोगों का आश्रय, समस्त वेदादि विद्याओं से विभूषित,विश्व को ज्ञान से परिपूरित करने वाले आपके चरणयुगल में सादर प्रणाम ४।।
देवताओं के मुकुटों की मणियों से सज्जित,विषय वासनाओं के भय को हरने वाले, अपनी कांति से चंद्रमा और शिव को भी पराजित करने वाले आपके चरणयुगल में सादर प्रणाम ५।।
भवसागर में डूबने वालों के लिए सहारा, सन्तान आदि सुखों को देने वाले, निर्मल आपके चरणों में प्रणाम !६!!
मनोरथों को पूर्ण करने वाले, परमार्थ प्रदान करने वाले,देवस्त्रियों द्वारा सेवित आपके चरणों में प्रणाम ७।।
अनेक गुणों से युक्त, गौरवशाली,सत्यविभूषित ,कमल के समान कोमल आपके चरणों में प्रणाम ८!!
जो इस स्तुति का प्रातः नित्य पाठ करता है, उसके कंठ में सरस्वती जी निवास करती हैं। तीनों संध्याओं में जल,स्थल पर पाठ करने वाला विद्वान होकर ब्रह्मनिष्ठ हो जाता है । उसके हृदयकमल में वेद दीप ओंकार का प्रकाश हो जाता है जो योगियों के द्वारा ध्यान अवस्था में देखा जाता है।इसके ध्यान से मुक्ति मिलती है। बसंत पंचमी की शुभकामनाएं!!
(जय मां श्यामलाम्बा)