पिछले कुछ दिनों में मीडिया और मॉडर्न मेडिसिन ने मिलकर ब्लैक और व्हाइट फ़ंगस नामक एक नई महामारी को जन्म दे दिया है। मीडिया मॉन्गरिंग और बेबुनियाद बयानों और इन्टरव्यू की ताक़त ने ब्लैक और व्हाइट फ़ंगस को प्रादेशिक सरकारों के लिये एक नया स्टेट्स सिम्बल बना दिया है और सरकारों ने इसे आनन-फ़ानन में महामारी घोषित कर दिया। कोरोना में नाकाम होती मॉडर्न मेडिसिन ने ब्लैक और व्हाइट फ़ंगस को डाइवर्जनरी टैक्टिस की तरह प्रयोग किया है।
इस मुद्दे पर Sandeep Deo का Video
ब्लैक और व्हाइट फंगस के निम्न मुख्य कारण हैं- (1) मास्क (2) स्टेरॉयेड का अधिकाधिक प्रयोग (3) ज़्यादा दवाओं का प्रयोग (4) नॉन-प्यूरीफाइड ऑक्सीजन का प्रयोग
जबसे कोरोना का दौर शुरू हुआ मास्क कम्पलसरी हो गया। शुरुआत में अधिक जागरूक लोगों ने शौक़ में लगाया, फिर जागरूकता बढ़ी तो सरकार ने आदेश जारी कर दिया और अब तो क़ानून ही बन गया है। यह ना ही साइन्टिफिकली प्रूवेन है और ना ही कोई आँकड़े इस तथ्य पर रीलीज किये गये कि मास्क पहनने से कितने लोगों को कोरोना महामारी से बचाया गया।
मास्क पर लेख तो बहुत छपे पर किसी भी साइन्टिफिक संस्था ने इस विषय पर शोध कर यह नहीं बताया कि किस प्रकार का मास्क कोरोना महामारी से बचा सकता है। हमारे देश में गमछा, रुमाल, दुपट्टा, ट्रिपलेट (10 रू का सर्वाधिक प्रचालित मास्क), सूट के कपड़े का मैचिंग मास्क इत्यादि सभी देशवासियों को कोरोना से तो नहीं पर पुलिस और क़ानून से बचाने में बख़ूबी कारगर सिद्ध हुआ।
किसी भी प्रकार के मास्क से कोरोना रूक रहा है या नहीं यह अभी भी शोध का विषय है और जिन लोगों ने इस पर कुछ काम किया भी है तो महज़ अपने मास्क को दूसरों से अधिक उपयोगी दिखाकर मार्केटिंग के उदेश्य से किया है, अत: संदेह होना स्वाभाविक है। मास्क से कोरोना को रोकने में कोई मदद मिली या नहीं पर मास्क से शरीर को निम्न नुक़सान अवश्य हो रहा है
फेफड़ों से निकलने वाली हवा में नमी की अधिकता होती है। नमी का आकार बहुत बड़ा होता है, अत: निरंतर मास्क लगाये रहने से नमी बाहर नहीं निकल पाती। घुमावदार साइनस पैसेज में हवा को फेफड़ों में पहुँचने के पहले गरमाहट प्रदान की जाती है अत: नमी बढ़ने के कारण साइनस पॉकेट तथा उसके आसपास के इलाक़े में फ़ंगस पैदा होने की संभावना बढ़ जाती हैं।
शुरुआत में व्हाइट और समय के साथ ब्लैक फ़ंगस बन जाता है। फ़ंगस सड़न पैदा करता है जिससे धीरे-धीरे इन्फेक्शन फैलता है। यह इनफ़ेक्शन सूजन, बुख़ार, सिरदर्द, आँखों में दर्द और यदि इनफ़ेक्शन बढ़ गया तो आँखों की और जबड़ों की सर्जरी का कारण बन जाता है। फ़ंगस पता चलते ही मास्क का प्रतिबंध और सख्त हो जाता है और पेशेन्ट की फ़ंगस के इनफ़ेक्शन और घुटन से मौत हो जाती है।
निरंतर मास्क लगाये रहने से रक्त में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ती जा रही है। ब्रेन 70% रक्त का प्रयोग करता है, अत: रक्त में कार्बन डाइऑक्साइड बढ़ने से ब्रेन को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती, जिससे ब्रेन सेल में एनर्जी लेबल कम हो जाता है, फलस्वरूप लोग डिप्रेशन तथा एन्गज़ाइटी का शिकार हो रहे हैं।
रक्त में कार्बन डाइऑक्साइड बढ़ने और ऑक्सीजन की कमी से शरीर के अन्य सेल भी पर्याप्त एनर्जी नहीं बना पाते जिससे शरीर का एनर्जी लेबल डाउन होता है, फलस्वरूप शरीर की इम्यूनिटी कमजोर पड़ जाती है और आवश्यकता पड़ने पर समय से उपयुक्त एन्टीबॉडी नहीं पाती जिससे इनफ़ेक्शन तेज़ी से फैलता है और जानलेवा बन जाता है।
सभी को पता है कि स्टेरॉयेड के सीवियर साइड इफ़ेक्ट हैं और स्टेरॉयेड के प्रयोग से ब्रेन द्वारा शरीर के मैनेजमेंट की प्रक्रिया बाधित होती है। जितना ज़्यादा स्टेरॉयड का प्रयोग किया जायेगा ब्रेन उतना ही निष्काम होता जायेगा। ब्रेन की एनालाइजिंग एबिलिटी कम हो जायेगी और शरीर के अंदर अव्यवस्था फैल जायेगी। इस तरह से विभिन्न प्रकार की अनर्गल गतिविधियाँ शुरू हो जायेंगी जिसका ब्लैक और व्हाइट फ़ंगस एक नमूना है।
आज यह किसी से छुपा नहीं है कि मॉडर्न मेडिसिन के साइड इफ़ेक्ट होते हैं। सवाल उठता है कि साइड इफ़ेक्ट क्या है? मॉडर्न मेडिसिन को एलोपैथी नाम होमियोपैथी के संस्थापक डॉ सैमुअल हेनमैन ने 1810 में दिया था। उन्होंने यह नाम इसलिए दिया था क्योंकि यह सिस्टम उनकी पद्धति से एकदम उल्टा था। दूसरा उन्होंने स्वयं इन ड्रग्स को खाकर यह अनुभव किया कि यदि कोई व्यक्ति पूरी तरह से स्वस्थ है और उसे किसी भी बीमारी के ड्रग्स दिये जायें तो कुछ समय बाद वह व्यक्ति उस बीमारी से पीड़ित हो जायेगा।
आज कोरोना के इलाज में अन्य बीमारियों की दवायें दी जा रही है, स्वाभाविक है कि उन दवाओं का प्रतिकूल असर होगा। वैसे भी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना के लिये रेमडेसीवीर, आइवरमेक्टिन, हाइड्रोक्लोरोक्वीन, लोपीनावीर, रिटोनावीर, कॉर्टिकोस्टेरॉयेड के प्रयोग के विरुद्ध सिफ़ारिश की है और आई सी एम आर ने प्लाज़्मा थिरैपी को उपयोगी ना साबित होने के कारण बंद करने के आदेश दिये हैं।
कोरोना में बुख़ार और दर्द के अलावा किसी भी अन्य दवा का प्रयोग बीमार को साइड इफ़ेक्ट ही दे रहा। साइड इफ़ेक्ट सुधारने का इम्यूनिटी पर अतिरिक्त भार ऐसे वक्त पर पड़ता है जब इम्यूनिटी कोरोना जैसे घातक वाइरस से लड़ रही होती है। इस दौरान इम्यूनिटी और कमजोर पड़ जाती है जिससे कोरोना को विकराल होने का मौक़ा मिल जाता है। यही कारण है कि अस्पतालों में अधिक मौतें हो रही हैं।
एक और कारण जिसे ब्लैक तथा व्हाइट फ़ंगस का कारण माना जा रहा है वह है अनहाइजिनिक ऑक्सीजन। इसके कई पहलू हैं और इस पर भी जॉंच की जानी चाहिये कि जिस ऑक्सीजन को जीवनदायिनी समझ कर पेशेन्ट को दिया जा रहा है कहीं वह ही घातक तो नहीं सिद्ध हो रही है।
पिछले एक साल में कोरोना कंट्रोल करने का हर प्रयास असफल रहा। वास्तविकता तो यह है कि दवाओं और प्लाज़्मा थिरैपी की ही तरह वैक्सीन भी कोरोना में कारगर नहीं है बल्कि मौजूदा हालात में वैक्सीन कोरोना महामारी को फैलाने और उसे अधिक उग्र बनाने का काम कर रही है। वैक्सीन को लेकर मेरे कुछ विचार नीचे प्रस्तुत हैं जो वैक्सीन की उपयोगिता को समझने में मददगार साबित हो सकते हैं।
(क) वैक्सीन किसी प्रकार से इम्यूनिटी को नहीं बढ़ाता, परन्तु वैक्सीन से शरीर की इम्यूनिटी को वायरस विशेष के लिये उपयुक्त एन्टीबॉडी का पूर्वाभास दिलाया जाता है जिससे वायरस विशेष के शरीर में प्रवेश करते ही इम्यूनिटी अविलंब उपयुक्त एन्टीबॉडी बनाकर वाइरस को नष्ट कर शरीर को सुरक्षित कर देती है।
(ख) एक वैक्सीन सिर्फ़ एक ही वाइरस के लिये सुरक्षा प्रदान करता है और किसी भी प्रकार से आने वाले नये वाइरस के स्ट्रेन में कोई भी मदद नहीं मिलती। अत: लोगों को यह बताना तथ्यहीन है कि पुराने स्ट्रेन की वैक्सीन से नये स्ट्रेन की इनटेंसिटी कम होगी।
(ग) वैक्सीन लगवाने से इम्यूनिटी इंजेक्टेड वाइरस के लिये एन्टीबॉडी बनाने की प्रक्रिया में जुट जाती है और इससे कुछ समय के लिये इम्यूनिटी कमजोर पड़ जाती है। इस दौरान नये स्ट्रेन के अटैक की संभावनायें बढ़ जाती है और साथ ही नये स्ट्रेन की इंटेनसिटी भी अधिक होना लाज़मी है।
(घ) लोगों को एक और ग़लत बात बताई जा रही है कि कोरोना की एंटीबॉडी बहुत कम समय यानि कि लगभग तीन महीने तक ही रक्त में रहती है, अत: तीन महीने बाद पुन: वैक्सीन लेना पड़ सकता है। इस तरीक़े से हर तीन महीने में हर व्यक्ति को वैक्सीन लेने का सिलसिला शुरू हो जायेगा और सभी जीवन पर्यन्त वैक्सीन के गुलाम बन जायेंगे। सच्चाई यह है कि एंटीबॉडी का रक्त से विलोपित हो जाने का अभिप्राय यह है कि शरीर से वाइरस विशेष का संक्रमण समाप्त हो गया है और आगे एंटीबॉडी की आवश्यकता नहीं है।
उपरोक्त बातों से यह स्पष्ट होता है कि कोरोना के संदर्भ में मॉडर्न मेडिसिन सिस्टम पूरी तरह नाकाम सिद्ध हुई है। जो कुछ भी अस्पतालों में हो रहा है वह महज़ लक्षण कंट्रोल है जिसके घातक साइड इफ़ेक्ट परिणाम ब्लैक और व्हाइट फ़ंगस है।
पिछले एक साल से ज़ायरोपैथी (मॉडर्न आयुर्वेद – जिसका मूल सिद्धांत आयुर्वेदिक औषधियों पर आधारित है) ने प्रिवेन्टिका के माध्यम से हज़ारों लोगों को कोरोना इनफ़ेक्शन से प्रिवेन्शन प्रदान किया है और फूड सप्लीमेंट और ज़ायरो नेचुरल्स का प्रयोग कर अनगिनत लोगों को बिना हॉस्पिटल में एडमिट हुये घर पर ही कोरोना और उससे होने वाली विभिन्न कॉम्प्लिकेशन से निजात दिलाया है। यह पूरी तरह से नेचुरल है और इसके कोई भी साइड इफ़ेक्ट नहीं है।
मुझे याद है कि एक समय माननीय प्रधानमंत्री श्री मोदी जी ने मेडिसिन सिस्टम के इनंटीग्रेशन की पहल की थी। सभी अस्पतालों में आयुर्वेद, होमियोपैथी, यूनानी, सिद्धा और योग की शाखायें भी खुलीं परन्तु वास्तविक इन्टीग्रेशन कभी नहीं हो पाया। मेरा मानना है कि यदि माननीय प्रधानमंत्री जी की पहल के अनुरूप मेडिसिन सिस्टम का सही इन्टीग्रेशन हुआ होता तो देश कोरोना की जंग जीत चुका होता।
मेरा विश्वास है कि यदि एक बार पुन: इस संकट की घड़ी में मोदी जी की परिकल्पना के अनुरूप मॉडर्न मेडिसिन सिस्टम और ज़ायरोपैथी का सही इन्टीग्रेशन किया जाये तो देश को कोरोना महामारी से बचाया जा सकता है। इस महामारी के भीषण दौर में मेरी सभी से विनती है कि स्वार्थ और अभिमान से ऊपर उठकर मानव कल्याण हेतु काम करें।
मेरा सरकार और देश की स्वास्थ्य व्यवस्था से जुड़े लोगों से अनुरोध है कि लक्षण कंट्रोल के लिये मॉडर्न मेडिसिन सिस्टम का प्रयोग करें तथा कोरोना इनफ़ेक्शन से मरीज़ को बचाने के लिये ज़ायरोपैथी का प्रयोग करें। इस प्रयास से लाखों लोगों को कोरोना महामारी से बचाया जा सकता है।
सारांश:-
(क) वैक्सीन किसी प्रकार से इम्यूनिटी को नहीं बढ़ाता, परन्तु वैक्सीन से शरीर की इम्यूनिटी को वायरस विशेष के लिये उपयुक्त एन्टीबॉडी का पूर्वाभास दिलाया जाता है जिससे वायरस विशेष के शरीर में प्रवेश करते ही इम्यूनिटी अविलंब उपयुक्त एन्टीबॉडी बनाकर वाइरस को नष्ट कर शरीर को सुरक्षित कर देती है।
(ख) एक वैक्सीन सिर्फ़ एक ही वाइरस के लिये सुरक्षा प्रदान करता है और किसी भी प्रकार से आने वाले नये वाइरस के स्ट्रेन में कोई भी मदद नहीं मिलती। अत: लोगों को यह बताना तथ्यहीन है कि पुराने स्ट्रेन की वैक्सीन से नये स्ट्रेन की इनटेंसिटी कम होगी।
(ग) वैक्सीन लगवाने से इम्यूनिटी इंजेक्टेड वाइरस के लिये एन्टीबॉडी बनाने की प्रक्रिया में जुट जाती है और इससे कुछ समय के लिये इम्यूनिटी कमजोर पड़ जाती है। इस दौरान नये स्ट्रेन के अटैक की संभावनायें बढ़ जाती है और साथ ही नये स्ट्रेन की इंटेनसिटी भी अधिक होना लाज़मी है।
(घ) लोगों को एक और ग़लत बात बताई जा रही है कि कोरोना की एंटीबॉडी बहुत कम समय यानि कि लगभग तीन महीने तक ही रक्त में रहती है, अत: तीन महीने बाद पुन: वैक्सीन लेना पड़ सकता है। इस तरीक़े से हर तीन महीने में हर व्यक्ति को वैक्सीन लेने का सिलसिला शुरू हो जायेगा और सभी जीवन पर्यन्त वैक्सीन के गुलाम बन जायेंगे। सच्चाई यह है कि एंटीबॉडी का रक्त से विलोपित हो जाने का अभिप्राय यह है कि शरीर से वाइरस विशेष का संक्रमण समाप्त हो गया है और आगे एंटीबॉडी की आवश्यकता नहीं है।
उपरोक्त बातों से यह स्पष्ट होता है कि कोरोना के संदर्भ में मॉडर्न मेडिसिन सिस्टम पूरी तरह नाकाम सिद्ध हुई है। जो कुछ भी अस्पतालों में हो रहा है वह महज़ लक्षण कंट्रोल है जिसके घातक साइड इफ़ेक्ट परिणाम ब्लैक और व्हाइट फ़ंगस है।
पिछले एक साल से ज़ायरोपैथी (मॉडर्न आयुर्वेद – जिसका मूल सिद्धांत आयुर्वेदिक औषधियों पर आधारित है) ने प्रिवेन्टिका के माध्यम से हज़ारों लोगों को कोरोना इनफ़ेक्शन से प्रिवेन्शन प्रदान किया है और फूड सप्लीमेंट और ज़ायरो नेचुरल्स का प्रयोग कर अनगिनत लोगों को बिना हॉस्पिटल में एडमिट हुये घर पर ही कोरोना और उससे होने वाली विभिन्न कॉम्प्लिकेशन से निजात दिलाया है। यह पूरी तरह से नेचुरल है और इसके कोई भी साइड इफ़ेक्ट नहीं है।
मुझे याद है कि एक समय माननीय प्रधानमंत्री श्री मोदी जी ने मेडिसिन सिस्टम के इनंटीग्रेशन की पहल की थी। सभी अस्पतालों में आयुर्वेद, होमियोपैथी, यूनानी, सिद्धा और योग की शाखायें भी खुलीं परन्तु वास्तविक इन्टीग्रेशन कभी नहीं हो पाया। मेरा मानना है कि यदि माननीय प्रधानमंत्री जी की पहल के अनुरूप मेडिसिन सिस्टम का सही इन्टीग्रेशन हुआ होता तो देश कोरोना की जंग जीत चुका होता।
मेरा विश्वास है कि यदि एक बार पुन: इस संकट की घड़ी में मोदी जी की परिकल्पना के अनुरूप मॉडर्न मेडिसिन सिस्टम और ज़ायरोपैथी का सही इन्टीग्रेशन किया जाये तो देश को कोरोना महामारी से बचाया जा सकता है। इस महामारी के भीषण दौर में मेरी सभी से विनती है कि स्वार्थ और अभिमान से ऊपर उठकर मानव कल्याण हेतु काम करें।
मेरा सरकार और देश की स्वास्थ्य व्यवस्था से जुड़े लोगों से अनुरोध है कि लक्षण कंट्रोल के लिये मॉडर्न मेडिसिन सिस्टम का प्रयोग करें तथा कोरोना इनफ़ेक्शन से मरीज़ को बचाने के लिये ज़ायरोपैथी का प्रयोग करें। इस प्रयास से लाखों लोगों को कोरोना महामारी से बचाया जा सकता है।
कमान्डर नरेश कुमार मिश्रा
फाउन्डर ज़ायरोपैथी
टॉल फ़्री – 1800-102-1357
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