सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्ध हत्या में सीबीआई की लंबी चुप्पी अब देश को अखरने लगी है। जैसे केंद्र सरकार ओटीटी पर कानून बनाने के प्रश्न पर गहन मौन साध लेती है, वैसे ही सीबीआई एसएसआर की मौत की जाँच से जुड़े किसी भी सवाल का जवाब देने से बचती रहती है। कुछ लोग अब भी सीबीआई की चुप्पी तोड़ने के निष्फल प्रयास कर रहे हैं। कुछ दिन पूर्व वकील विनोद ढांडा ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर करते हुए मांग की है कि अब न्यायालय इस बात को सुनिश्चित करें कि 19 अगस्त 2020 से सुशांत सिंह राजपूत केस में जारी जांच अपने अंत तक पहुँचने से पूर्व दफन न हो जाए।
सर्वोच्च न्यायालय में दायर की गई इस याचिका में कहा गया है कि अब न्यायालय को इस केस में एक टाइम फ्रेम फिक्स कर देना चाहिए। याचिकाकर्ता ने कहा कि अधिक से अधिक दो माह का समय देकर इस जाँच को पूरा करने के निर्देश दिये जाए। ये भी कहा गया कि सीबीआई ने विशेष रुप से इस केस में ज़िम्मेदारी से काम नहीं किया।
याचिकाकर्ता का आरोप है कि नब्बे दिन से अधिक हो जाने के बाद भी इस केस में चार्जशीट दाखिल नहीं की गई। केंद्रीय एजेंसी अपने कार्य को करने में पूर्ण रुप से फेल रही। याचिकाकर्ता के अनुसार केंद्रीय एजेंसी के खराब प्रदर्शन ने भारत में ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व में न्यायिक व्यवस्था का नाम खराब किया है। इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज करते हुए याचिकाकर्ता को कहा कि वह उच्च न्यायालय जा सकता है। कुछ प्रकरणों में न्यायालय की भूमिका प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रही है।
सात माह से जारी इस केस के निष्कर्ष की प्रतीक्षा पूरा राष्ट्र कर रहा है। ये केस अब जनभावना से जुड़ा मुद्दा बन चुका है। होना तो ये चाहिए था कि सुशांत सिंह राजपूत केस में सीबीआई की संदिग्ध निष्क्रियता को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय स्वयं संज्ञान लेकर सीबीआई को फटकार लगाता। ऐसा ही कुछ सलमान खान के केस में हुआ।
जोधपुर कोर्ट ने फर्जी हलफनामा पेश करने के बाद भी सलमान खान को राहत दे दी? हम देख पा रहे हैं कि ये दोनों ही हाई प्रोफाइल मामले हैं और दोनों में ही न्यायालय अत्याधिक उदारता दिखा रहा है। सरकार ने अपनी केंद्रीय एजेंसियों को एक बार भी तलब नहीं किया, ये नहीं पूछा कि इतनी लंबी जाँच का परिणाम अंततः क्या प्राप्त हुआ है। और अब न्यायालय भी इस प्रकरण में मुंह फेरकर बैठ गया है।
भारत में न्यायिक व्यवस्था इतनी लचर है कि बेचारा याचिकाकर्ता जज साहब से पूछ भी नहीं सकता ‘ये अन्याय क्यों जज साहब।’ ये प्रश्न विश्नोई समाज भी नहीं पूछ सकता। अबूझ और बेमाने निर्णय न्यायिक व्यवस्था की साख को गिराते हैं। यदि आरोपी कोर्ट की सजगता के चलते भी बाहर घूम रहे हैं, झूठे हलफनामे पेश कर रहे हैं, शूटिंग के लिए इस्ताम्बुल जा रहे हैं, तो माननीय न्यायालय को इस विषय में सोचना चाहिए। एसएसआर प्रकरण अपने निष्कर्ष पर पहुँचने में जितना विलंब करेगा, उतने ही गहरे प्रश्न भारतीय न्यायिक व्यवस्था पर उठते चले जाएंगे।