पिछले साल हुई भीमा कोरेगांव हिंसा तथा प्रधानमंत्री की हत्या के साजिश के तहत पुणे पुलिस ने जिन दस शहरी नक्सलियों को गिरफ्तार किया है उसकी सच्चाई सामने आ गई है। उनके झूठ की पोल किसी और ने नहीं बल्कि सालों तक उनके लिए और उनके साथ काम करने वाले वरिष्ठ नक्सली पहाड़ सिंह ने खोली है। नक्सलियों में 48 वर्षीय पहाड़ सिंह की पैठ और कद का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उसके सिर पर महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ तथा मध्य प्रदेश सरकार ने कुल 47 लाख रुपये का इनाम घोषित किया था। इसके साथ ही उसने नक्सल कमांडर के रूप में माओवादी आंदोलन के लिए अपने 18 साल खपाए हैं।
लेकिन बाद के नक्सल आंदोलन से खफा होकर उसने हथियार त्याग दिया तथा सरकार की बेहतर आत्मसमर्पण नीति की वजह से 24 अगस्त को आत्मसमर्पण कर दिया। उन्होंने ही खुलासा किया है कि नक्सलियों की बैठक में गिरफ्तार शहरी नक्सली शामिल होते रहे हैं। उन्होंने अरुण फरेरा का नाम लेकर कहा है कि 2006 में नक्सलियों की आयोजित बैठक में वह मौजूद था। सवाल उठता है कि क्या अब आरोपी शहरी नक्सलियों की गिरफ्तारी को लेकर मोदी सरकार को कोसने वाले अब अपनों की सच्चाई को स्वीकार करेंगे?
मुख्य बिंदु
* जिन आदिवासियों के नाम पर काम करने का डंका पीट रहे हो उसकी सच्चाई को तो स्वीकारो शहरी नक्सलियों
* 45 लाख रुपये के इनामी नक्सल पड़ाड़ सिंह ने कहा है कि भोले-भाले आदिवासियों को भड़काते हैं शहरी नक्सली
गौरतलब है कि जब इन आरोपों के तहत पुणे पुलिस ने देश के अलग-अलग जगहों पर छापेमारी कर गौतम नवलाखा, वरवरा राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा और वरनॉन गोंजाल्विस को गिरफ्तार किया उस समय कई मीडिया घरानों के सुर में सुर मिलाते हुए तथाकथित बुद्धिजीवियों ने इन लोगों को आदिवासी अधिकारों के लिए लड़ने वाला बताया था। तथा मोदी सरकार पर गरीबों की आवाज उठाने वालों की आवाज बंद करने का आरोप लगाया था। लेकिन अब जब उनके साथ मिलकर करीब 18 सालों तक काम करने वाले नक्सल पहाड़ सिंह ने उन लोगों के झूठ की कलई खोल दी है तो अब ये लोग क्या कहेंगे? हैरान होने की कोई जरूरत नहीं, ये लोग इसमें भी मोदी सरकार की चाल ढूंढेगे नहीं तो पहाड़ सिंह को एहसानफरामोश बता देंगे, लेकिन उस आदिवासी की सच्चाई नहीं स्वीकार करेंगे जिन्होंने इनके बहकावे में आकर अपने 18 साल कुर्बान कर दिए।
जब से पहाड़ सिंह ने सरकारी नीतियों के कारण हथियार छोड़कर पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया है तभी से वह खूनी संघर्ष जारी रखने के हिमायती नक्सलियों के निशाने पर आ गया है। इसी कारण पहाड़ सिंह को पुलिस सुरक्षा में अनजान जगह पर रखा गया है। ओपी इंडिया के साथ साक्षात्कार के दौरान पहाड़ सिंह ने नक्सलियों की करतूतों के साथ ही शहरी नक्सलियों के कारनामों को उजागर किया है। उन्होंने बताया कि आत्मसमर्पण करने से पहले नक्सलियों के गढ़ कहे जाने वाले बस्तर जिले से सटे मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र तथा छत्तीसगढ के जिलों में सुकमा और दांतेवाड़ा के अपने साथियों के साथ मिलकर नक्सल गतिविधियों के विस्तार करने की जिम्मेदारी जिन चार लोगों को सौंपी गई थी उसमें से एक वह खुद था।
उन्होंने कहा कि जिन शहरी नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया है उनमें से कुछ को वे व्यक्तिगत रूप से जानते हैं। उन्होंने अपने साक्षत्कार के दौरान अरुण फरेरा के साथ व्यक्तिगत पहचान होने का दावा किया। उन्होंने दावा किया है कि 2006 में हुई नक्सलियों की बैठक में अरुण फरेरा आया था जहां उनसे व्यक्तिगत रूप से मिला था। इसी बैठक में उसे दो मंडल का सचिव बनाया गया था। उन्होंने कहा कि मैं उन बुद्धिजीवियों को चुनौती देता हूं जो आदिवासी अस्मिता की लड़ाई लड़ने का दावा करते हैं। उन्होंने कहा कि इस सशस्त्र संघर्ष से देश नहीं बदलेगा। इससे सिर्फ निर्दोष आदिवासियों की जान जाएगी। उन्होंने यह भी दावा किया है कि उस बैठक में केंद्रीय समिति के सदस्य (सीसीएम) पुलेंदु शेखर और विजय कुमार आर्य भी मौजूद थे। मालूम हो कि सीसीएम को सीपीआई (माओवादी) की केंद्रीय समिति यानि पोलित ब्यूरो से सीधे आदेश मिलता है। बाद में केंद्रीय समिति के सदस्य अपने साथियों को इसकी जानकारी देते हैं।
पहाड़ सिंह का शहरी नक्सलियों के बारे में कहना है कि वे लोग आदिवासियों के अधिकार की लड़ाई नहीं लड़ते हैं बल्कि अपने हित के लिए भोलेभाले आदिवासियों को भड़काते हैं।
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