जिन दिनों ‘पद्मावत’ का प्रदर्शन रुकवाने के लिए करणी सेना देश में उग्र प्रदर्शन कर रही थी, उस दौर में मैंने अपने लेख में एक बात कही थी। मैंने लिखा था कि पद्मावत को आखिरी मत समझिये। आज राजस्थान के लोग हैं, कल गुजरात के होंगे। पद्मावत से शुरू हुआ सिलसिला बहुत जल्दी ‘केदारनाथ’ तक पहुँच गया। फिल्म उद्योग किसी भी ऐसे ट्रेंड को पकड़ने में माहिर है, जो बॉक्स ऑफिस पर नोटों की बारिश करवा सकता हो। बॉक्स ऑफिस पर फिल्म हिट करवाने का ये फार्मूला संजय लीला भंसाली ने दिया है।
ये विषय ऐसे हैं, जिन पर दुनियाभर में फ़िल्में बनाई जा रही है। प्राकृतिक आपदा, प्रलय, साइको थ्रिलर, आइडेंटिटी क्राइसिस, एक ही कमरे में बनाई गई फिल्म, सीरियल किलर, समय की यात्रा, राजनीतिक, सेक्स, सुपर हीरो, कोर्ट रूम ड्रामा, जातिवाद, समाज सेवा, इंटरनेट। इतने सारे विषय होने के बाद आप छलांग मारकर वहां क्यों पहुँचते हैं, जहाँ विवाद शुरू हो जाते हैं। आपको पद्मावती, महाभारत और नवरात्रि पर ही फिल्म क्यों बनानी है। केदारनाथ पर फिल्म बनाने का विरोध नहीं है। विरोध इसलिए हुआ क्योक़ि फिल्म में केदारनाथ प्रलय बैकग्राउंड में दिखाई दे रही है जबकि उस भीषण आपदा को मुख्य विषय होना चाहिए था।
देश के बहुसंख्यक समाज से जुड़े मुद्दों पर मीडिया का रवैया अब हैरान नहीं करता। जिस हादसे में हज़ारों मारे गए। कितनों की लाश न मिली। कितनों के घरवाले आज भी अपनों के लौटने का इंतज़ार कर रहे हैं। एक कांग्रेसी मुख्यमंत्री की विफलता ने देश की देह पर न भरने वाला जख्म बना दिया। उस घटना पर बनी फिल्म मीडिया द्वारा प्रचारित की जा रही है। सारा अली खान के नितांत निजी क्षण प्रचार के लिए इस्तेमाल किये जा रहे हैं और मीडिया चटखारा ले रहा है। 7 दिसंबर को फिल्म की प्रदर्शन तिथि तय कर दी गई है। ये तो दर्शक का विवेक है कि उसे ये फिल्म देखनी है या नहीं।
जब इस फिल्म को बैन करने की मांग की गई तो निर्देशक अभिषेक कपूर ने वही जवाब दिया, जो भंसाली और सलमान खान पहले दे चुके हैं। उनका कहना है हम किसी की भावनाएं आहत नहीं कर रहे। निर्माता का कहना है कि हमारा काम फिल्म को फिल्म प्रमाणन की शीर्ष संस्था सीबीएफसी से प्रमाणित कर इसे रिलीज कराना है। यानि निर्माता को प्रमाणपत्र मिल जाए बस इतना प्रयास है। उसे और निर्देशक को फिल्म के आपत्तिजनक कंटेंट पर कोई जवाब ही नहीं देना है।
ये कैसा स्पष्टीकरण हुआ। निर्माता निर्देशक से विरोध होने के बाद तर्कपूर्ण स्पष्टीकरण की अपेक्षा होती है लेकिन वे दूसरे शब्दों में कह रहे हैं कि स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति का बेजा उपयोग करने का पूरा अधिकार है। अब तो गेंद सरकार के पाले में चली गई है। भाजपा के ही एक नेता ने फिल्म के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।
क्या फिर से ‘पद्मावत’ की कहानी दोहराई जाएगी या इस विवाद के कारण विषाक्त हो रहे माहौल को साधने की कोशिश की जाएगी। निर्माता-निर्देशक आश्वस्त हैं कि फिल्म प्रदर्शित होकर रहेगी। संशय में तो देश का बहुसंख्यक है। वह इस संशय में है कि क्या करे। कोर्ट जाए तो दरवाजे बंद हैं। सरकार के पास जाए तो दरवाजे बंद है। सड़क पर उतरे तो दंगाई बता दिया जाता है। आखिर वह क्या करे।
URL: kedarnath movie will release on 7 dec.
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