अजय शर्मा, वाराणसी।भाग सको तो भाग लो, लूट के इस खेल में वाराणसी के वर्तमान कमिश्नर और तत्कालीन जिलाधिकारी कौशलराज शर्मा बेनकाब होने वाले हैं। सिंचाई विभाग के अपर मुख्य सचिव को एनजीटी कोर्ट ने व्यक्तिगत रूप से हाजिर होने का फरमान सुनाया है।
बालू की लूट को गहराई से समझ चुकी एनजीटी कोर्ट को नहर बनाने का तर्क और इससे बनारस के घाटों को बचाने की बेतुकी बात पच ही नहीं पाई, लिहाजा कोर्ट ने साहब जी को सीधे बुला लिया है।
मजेदार बात यह कि इसी दौरान अपर मुख्य सचिव की ओर से दुहाई दी गई है कि – ” ये अटपटा काम तो वाराणसी के जिला एडमिनिस्ट्रेशन ने किया है, जबकि सिंचाई विभाग की आपत्ति थी। ” सिंचाई विभाग का इशारा तत्कालीन डीएम कौशलराज शर्मा की तरफ है।
कुल मिलाकर बिना किसी विशेषज्ञ समिति की अनुशंसा के रेत में नहर खुदवा कर तत्कालीन डीएम ने बनारस के विकास और मां गंगा की रक्षा – क्रम में एक नया अध्याय जोड़ा है, जो कि काशी के इतिहास की किताब में अमिट हो चुका है।… सो इन साहब जी की कलई खुलने वाली है।
सच परेशान है लेकिन हारा नहीं है; रेत की नहर वाला सच तो बड़ा जिद्दी सच है, हारेगा भी नहीं। रेत की नहर तो बह गई लेकिन बड़े – बड़े साक्ष्य छोड़ती गई। हड़बड़ी में डीएम साहब भूल गए थे कि इतनी बड़ी नहर आखिर वो किसकी अनुशंसा पर बनवा रहे थे ? कौन थी विशेषज्ञ कमेटी, जिसने – ‘घाटों को बचाने के लिए बालू में नहर बननी चाहिए’, ऐसा कहा था? कहां है विशेषज्ञ समिति की लिखित रिपोर्ट ??
बहरहाल! अभी जिनको दिल्ली कोर्ट में तलब किया गया है; उन बड़े साहब ने लिखित रूप से अपना पल्ला झाड़ते हुए कह दिया है कि – ” मेरे विभाग ने तो समय रहते आपत्ति की थी, लेकिन वाराणसी के जिला प्रशासन ने अनावश्यक दबाव बनाकर मनमाना नहर निकाल दिया है, हुजूर! मुझे छोड़ दिया जाय और डीएम से पूछा जाय । ” अव्वल तो यह कि उस नमामि गंगे से भी सहमति नहीं ली गई, जिस नमामि गंगे का आजकल खूब धाक – पानी जमाया जा रहा है।
जिस नहर को घाटों की रक्षा के लिए बनाया गया था वो बेचारी खुद तीसरे महीने में ही डूब गई, वो घाटों को धंसने से क्या खाक बचा पाएगी , को खुद धंसने वाली हो..।
मामला मजेदार हो चुका है…। हमारी इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में कभी – कभी एक अदना आदमी भी सिस्टम के गुप्त द्वार में अंगुली कर सकता है, यह सोच कर मुझे बड़ा मजा आता है। इस पुनीत और साहसिक लड़ाई में महामना के मानस पुत्र प्रिय अनुज Saurabh Tiwari की सहयोग – साधना अनुकरणीय है। मैं निमित्त मात्र हूं।
मुझे पता है वर्तमान तंत्र में भ्रष्टाचार जड़े जमा चुका है, ऐसी छोटी कोशिशों से बहुत कुछ नहीं बदलने वाला है। लेकिन यह सोच कर एक आश्वस्ति मिलती है कि ‘ कुछ तो किया जा सकता है।’ अंत में आप फिर पूछेंगे कि – क्या किया जा सकता है ? तो मैं फिर कहूंगा कि – ” आओ मिलकर एक पत्थर उछालें, भ्रष्टाचारी इतने हैं कि बिना निशाना लगाए भी किसी एक को लगेगा ही। “आओ मिलकर पत्थर उछालें