अर्चना कुमारी। दिल्ली दंगे के दौरान दिलबर नेगी की वीभत्स तरीके से हत्या की गई थी । उत्तराखंड के रहने वाले नेगी एक स्थानीय मिठाई दुकान में काम करते थे और दंगे के दौरान उनके हाथ पैर को काटकर जिंदा जला दिया गया था लेकिन अब इस मामले को लेकर पकड़े गए 6 दंगाइयों को जमानत दे दी गई है। माना जा रहा है कि पीड़ित को न्याय दिलाने के लिए उनके पक्ष में ना तो पुलिस ने कोई खास सबूत पेश किया और ना ही वकील ने तार्किक तरीके से जिरह की, वहीं बचाव पक्ष ने अपना पक्ष इस तरह रखा कि कोर्ट उनकी बातों से संतुष्ट हो गई और इसके बाद आरोपियों को जमानत दे दी गई।
जानकारों का दावा है कि ऐसा इस वजह से संभव हुआ क्योंकि दंगा आरोपी के पक्ष से महमूद पराचा जैसे वकीलों की लॉबी लगी हुई है, वहीं पीड़ित हिंदुओं की ओर से केजरीवाल सरकार के वकील लगातार केस को कमजोर करने पर तुले हुए हैं। दिल्ली पुलिस ने भी पूरे मामले को लेकर गैर जिम्मेदाराना ढंग से जांच करने पर तुली हुई है और इस वजह से आरोपियों को जमानत मिलना संभव हो रहा है ।
महमूद प्राचा जैसे वकील जो दिल्ली दंगे को लेकर बार-बार अदालत तथा इसके बाहर दलील दे रहे हैं कि दंगे दरअसल सांप्रदायिक नहीं थे और संशोधित नागरिकता कानून तथा राष्ट्रीय नागरिक पंजी के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को बाधित करने के लिए कुछ निहित राजनीतिक स्वार्थ वाले लोगों की यह करतूत थी । इसमें एक राजनीतिक दल के लोग शामिल हुए थे। पूर्व में भी महमूद प्राचा दंगों में आलोक तिवारी नामक व्यक्ति की कथित तौर पर हत्या के आरोपी आरिफ की जमानत के लिए दलील देते हुए कोर्ट के भीतर इस तरह की बात कही थी।
उस समय इस वकील ने कोर्ट में दलील दिया था कि इस दंगे के दौरान सिर्फ मुस्लिम लोगों को निशाना बनाया गया और इन दंगों के बाद पुलिस ने केवल मुस्लिम समुदाय के लोगों को फंसाया। उस समय के तत्कालीन न्यायाधीश ने कहा था कि वकील का बयान न केवल बहुत गैर जिम्मेदाराना है बल्कि साफ तौर पर झूठ भी है।न्यायाधीश भट्ट ने कहा कि दंगों से जुड़े मामलों पर सुनवाई के दौरान उन्होंने पाया कि दोनों ही समुदाय के लोगों को आरोपी बनाया गया है और पुलिस ने उनके खिलाफ आरोप-पत्र दायर किए हैं।
उन्होंने वकील प्राचा को अनुचित, गैरजिम्मेदाराना और साफ तौर पर झूठी दलीलें देने से बचने की सलाह दी थी। बहरहाल ताजा मामले में, दिलबर नेगी की हत्या को लेकर गोकुलपुरी थाने में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 147, 148, 149, 302, 201, 436 और 427 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी। दिलबर नेगी को 24 फरवरी को शिव विहार चौराहे पर अनिल स्वीट हाउस के भीतर जिंदा काट कर जला दिया गया था । जाँच के दौरान मामले में 12 कथित दंगाइयों को गिरफ्तार किया गया।
वहीं छानबीन और जाँच के बाद 4 जून 2020 को चार्जशीट दाखिल की गई।लेकिन इस मामले में जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने मोहम्मद ताहिर, शाहरुख, मो. फैजल, मो. शोएब, राशिद और परवेज को जमानत दे दी । सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष ने जमानत का विरोध किया। लेकिन तार्किक ढंग से बहस नहीं कर पाए जबकि बचाव पक्ष ने दंगाइयों का पक्ष ऐसा रखा कि न्यायाधीश उनकी बातों से संतुष्ट हो गए ।
पीड़ित के वकील अमित महाजन ने दलील दी कि जहाँ दंगे सुबह शुरू हुए और देर रात तक जारी रहे, यह नहीं कहा जा सकता कि आरोपी व्यक्ति दोपहर में दंगा करने वाली भीड़ का हिस्सा थे न कि रात के दौरान पथराव करने वाली भीड़ का। महाजन ने कहा कि आरोपियों ने वीडियो में उस मिठाई की दुकान के सामने खड़े होने से इनकार नहीं किया है जहां दिलबर नेगी काम करता था लेकिन उनके बहस में खासा तर्क का अभाव दिखा।बता दें कि फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में तीन दिनों तक चली साम्प्रदायिक हिंसा में कम से कम 53 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि करीब 200 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे।