केरल का पद्मनाभस्वामी मंदिर विश्वभर में इसके लिए विख्यात है कि यहाँ की अकूत धन-संपत्ति को एक ऐसे रहस्यमयी कक्ष में बंद किया गया है, जिसकी रक्षा नागराज करते हैं। इस गुप्त ख़ज़ाने की कहानियां भारत समेत विश्व के अनेक खोजियों के मन में कौतुहल जगाती है। पद्मनाभस्वामी मंदिर फिर से चर्चा में हैं क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने त्रावणकोर राजपरिवार की अपील स्वीकार करते हुए मंदिर प्रबंधन में उनके अधिकारों को मान्यता दे दी है।
इसके साथ ही त्रावणकोर राजपरिवार को मंदिर में रखी अकूत संपत्ति की देखरेख का अधिकार भी मिल गया है। ये खबर बाहर आते ही त्रावणकोर परिवार और मंदिर के खजाने को लेकर मीडिया पर रोचक ख़बरें चल पड़ी है और वैसे भी छुपे खजानों को लेकर भारतीय जनमानस में बड़ा कौतुहल होता है।
तीन दिन पूर्व सोशल मीडिया में एक गौरवर्णीय युवा का फोटो तेज़ी से वायरल हुआ। ये युवा त्रावणकोर राजवंश की वर्तमान पीढ़ी के राजकुमार आदित्य वर्मा थे। वे जिन्हें आलिंगन में बांधे हुए थे, वो उनकी माता महारानी गौरी पार्वती थीं। हमने सत्तर वर्ष लोकतंत्र में बिताए हैं।
अब ऐसे दृश्य हमें न केवल आल्हादित करते हैं बल्कि सोचने पर विवश करते हैं कि मंदिरों में रखे खरबों रूपये की संपत्ति पर सरकार का नियंत्रण क्यों है। जबकि हम देखते हैं कि अन्य धर्मों के धर्मस्थलों को अपना आर्थिक प्रबंधन करने का सम्पूर्ण अधिकार है लेकिन दो शताब्दियों से मंदिर की देखरेख कर रहे त्रावणकोर राजपरिवार को ये अधिकार क्यों नहीं है।
ऐसे ही देश के अनेक मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण क्यों विद्यमान है। त्रावणकोर राजपरिवार की जीत ने मंदिरों की स्वतंत्रता के मुद्दे को फिर जीवित कर दिया है। पद्मनाभ स्वामी मंदिर छठवीं शताब्दी में निर्मित माना जाता है। इसके गर्भगृह में विष्णु शेषनाग में शयन मुद्रा में विराजमान हैं।
सन 1733 में त्रावणकोर राजा मार्तण्ड ने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था। मंदिर के खजाने का मूल्य लगभग पांच लाख करोड़ आंका जाता है लेकिन इस आंकलन में वह रहस्यों से भरा सातवां दरवाज़ा शामिल नहीं है, जिसे अब तक खोला नहीं जा सका है।
ऐसा अनुमान है कि इस द्वार के पीछे और भी अधिक सोना हो सकता है। हालांकि कई लोगों का मानना है कि उस द्वार के पीछे कोई अनोखी चमत्कारिक वस्तु या उस समय का कोई अनूठा अविष्कार भी हो सकता है। जितने तहखाने न्यायालय के आदेश से खोले गए, उनमें लगभग 1,32,000 करोड़ के सोने और हीरे के जड़ाऊ गहने, सिक्के व अन्य प्राचीन कलाकृतियां हैं, जिनका पुरातात्विक मूल्य कहीं अधिक हो सकता है।
एक सवाल सभी के मन में उठता है कि इतना सोना मंदिर में कैसे आया। ये धन सम्पत्ति शताब्दियों से एकत्र की जाती रही है। इसमें विदेशी आक्रांताओं से लूटी संपत्ति भी शामिल है। उस समय में कई विदेशी व्यापारी जब यहाँ आते तो मंदिर को कुछ न कुछ दान कर जाते। सीरियाई व्यापारी ईसाई ओणम और विशुत आदि त्योहारों में भाग लेते थे, मंदिरों के उत्सवों में शामिल होते थे और हिन्दुओं की भांति मंदिरों में भेंट चढ़ाते थे।
खजाने में नेपोलियन काल के सिक्के मिले हैं। इसके अलावा बहुत सी अनूठी वस्तुएं प्राप्त हुई हैं, जैसे हाथी की मूर्तियां, बंदूकें, फ़्रांस और डच के सोने के सिक्के प्राप्त हुए। एक ऐसा बैग मिला, जिसका वजन लगभग 30 किलो था और इसमें सात अलग-अलग देशों के राष्ट्रीय सिक्के मिले थे।
सन 2011 में जब तहखानों को खोला गया था तो खजाने की गिनती करने के लिए आधुनिक मशीनों की मदद लेनी पड़ी और कई लोगों की टीम बनानी पड़ी। सन् 2011 में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर मंदिर के तहखाने में बने पांच खुफिया दरवाजे खोल दिए जो सदियों से बंद थे। और हर दरवाजे के पार उन्हें सोना और चांदी के अंबार मिलते गए । इसके बाद जब टीम आखिरी दरवाजे पर पहुंची तो पाया कि उसे आधुनिक तकनीक से खोला जाना संभव ही नहीं है।
इसी दरवाजे को ‘बी चेंबर’ नाम दिया गया। इस दरवाजे पर न कोई ताला है, न कोई मैकेनेजिम दिखाई देता है, जिससे इसे खोला जा सके। ऐसा कहा जाता है कि इसे किसी ज्ञानी पुरुष ने ‘नाग बंधम’ या ‘नाग पाशम’ मंत्रों का प्रयोग कर बंद किया है। इसे खोलने के लिए ऐसा ही व्यक्ति चाहिए, जो संभवत इस विश्व में ही मौजूद नहीं है और है तो विश्व को उसके बारे में कुछ नहीं मालूम है।
नाग इस खजाने की रक्षा करते हैं। सन 1930 में पद्मनाभ मंदिर में बड़ी रोचक घटना घटी। कुछ विदेशी ‘ट्रेजर हंटर’ इस सातवें द्वार तक पहुँच गए और इसे खोलने का प्रयास करने लगे। वे हर तरह से असफल रहे और उस वक्त प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि इन चोरों को कई ज़हरीले साँपों ने घेर लिया था और उन्हें जान बचाकर भागना पड़ा।
नाग यहाँ की संपत्ति के पहरेदार क्यों हैं, उसका रहस्य तिरुअनंतपुरम के नाम में ही छुपा हुआ है। इस नाम में ‘अनंत’ एक नाग का नाम है। चेंबर बी के दरवाजे पर साफ़ शब्दों में चेतावनी लिखी हुई है कि किसी ने इसे अविधि से खोलने का प्रयास किया तो परिणाम बहुत गंभीर होंगे।
ये भी कहा जाता है कि गलत ढंग से दरवाजा खोलने पर समुद्र का पानी पीछे से मंदिर में घुस जाएगा और चैंबर बी में मौजूद मूल्यवान खजाने को अपने साथ बहा ले जाएगा। एक अनुमान है कि भारत के सभी मंदिरों में लगभग 20,000 टन सोना हो सकता है। हर वर्ष इन मंदिरों में लगभग पांच हज़ार टन सोने की बढ़ोतरी हो रही है।
इनमे सबसे अधिक सोना निर्विवाद रूप से पद्मनाभ स्वामी मंदिर के पास रखा हुआ है। उस खजाने के बाजार मूल्य से अधिक उसका पुरातात्विक मूल्य हो चुका है। और सबसे विशेष है बी चैंबर, जिसमे क्या रखा है, कोई नहीं जानता। स्वयं त्रावणकोर राजपरिवार के वर्तमान सदस्य भी नहीं जानते कि उस आखिरी तहखाने में क्या रखा है।
इस मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है। छठवीं सदी में विष्णु की मूर्ति खुदाई में प्राप्त हुई थी। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि बी चैंबर का मंत्रयुक्त ताला सदियों पूर्व लगा दिया गया होगा। निश्चित ही उस तहखाने में सोने-चांदी से बढ़कर मूल्यवान वस्तु रखी हो सकती है। कहते हैं दुनिया में हर ताले की चाबी बनाई गई है। विश्व के किसी कोने में कोई तो ऐसा जानकार होगा जो ‘नाग पाशम’ की काट ‘गरुड़ मंत्र’ से करके इस तहखाने का रहस्य खोल सके।