विपुल रेगे। अमेरिकी न्यूज़ चैनल सीएनएन के लिए कार्य करने वाली रिपोर्टर क्लेरिस्सा वॉर्ड से सारा विश्व परिचित हो गया है। क्लेरिस्सा इन दिनों काबुल में तालिबान संकट के बीच रिपोर्टिंग करती दिखाई देती हैं। उनकी चर्चा इसलिए है क्योंकि वें अब बुर्के में रिपोर्टिंग कर रही हैं। तालिबानी राज का प्रभाव अफगानिस्तान में सभी दूर देखा जा रहा है। उससे मीडिया भी अछूता नहीं रहा है।
तालिबानी लड़ाकों के सामने खड़े होकर जब क्लेरिस्सा ये प्रश्न करती हैं कि आपके राज में महिलाओं को स्वतंत्रता क्यों नही है, तो दर्शकों का ध्यान उनके काले बुर्के की ओर चला जाता है, जिसमे इन दिनों वें कैद रहती हैं। वें जिस देश का प्रतिनिधित्व करती हैं, वहां उनके इस परिधान की समीक्षाएं की जाने लगी है। ये तथ्य भी विचारणीय है कि एक बंदी परिधान पहनकर क्लेरिस्सा तालिबानियों से कैसे प्रश्न कर पाती है कि आप महिलाओं को स्वतंत्र क्यों नहीं कर रहे।
जबकि एक तरह से वें स्वयं तालिबानी कानून का अनुसरण करती दिखाई दे रही हैं। जब उन्होंने काबुल के राष्ट्रपति भवन में प्रवेश करने का प्रयास किया तो तालिबानियों ने उन्हें ये कहकर एक तरफ होने का निर्देश दिया कि ‘तुम एक महिला हो।’ तालिबानी कमांडरों ने क्लेरिस्सा को कहा कि ‘यहाँ से निकलकर अपना रास्ता नापो।’ सिर से लेकर पैर तक हिज़ाब में रिपोर्टिंग कर रही इकतालीस वर्षीय साहसी रिपोर्टर के लिए ये तिरस्कार भरा आदेश था।
और ये भी गज़ब है कि क्लेरिस्सा तालिबान में महिलाओं को दिए जाने वाले अधिकारों की समीक्षा करने निकली हैं। मेरे विचार में उनकी सबसे बड़ी समीक्षा तो उसी समय हो गई, जब उन्होंने राष्ट्रपति भवन में जाने का प्रयास किया था। अमेरिका में लोग चर्चा कर रहे हैं कि अमेरिकी सेनाओं के रहते हुए तालिबानी किस तरह टहलते हुए काबुल में प्रविष्ट हो गए।
सीएनएन से विश्व की और विशेष रुप से अमेरिकी जनता की अपेक्षा थी कि अमेरिकी सेनाओं के इस तरह बेमन से लौट आने का कारण पता लगाया जाए। किन्तु ऐसा लगा कि सीएनएन तालिबान को कोट-टाई पहने देखने की कल्पना कर रहा है। सीएनएन का वह कैप्शन चर्चा का विषय बन गया, जिसमे तालिबानियों के मास्क पहनने की प्रशंसा की जा रही थी। काबुल के घर-घर की तलाशी शुरु हो गई है।
मंगलवार को क्लेरिस्सा ने नागरिकों से चर्चा की थी। इनमे से एक सोलह वर्षीय टीनएजर युवा भी था। वह रोते हुए कह रहा था कि एक माह पूर्व उसके माता-पिता की हत्या कर दी गई। उसने रोते-रोते बताया कि घर पर एक छोटी बहन है। वे दोनों इतने विवश हैं कि कहीं जा नहीं सकते। निश्चित रुप से तलाशी के दौरान तालिबानी इन भाई-बहन के घर भी पहुंचेंगे। क्या क्लेरिस्सा इन निर्दोष भाई-बहन की सुरक्षित निकासी के लिए कोई अपील करेंगी ?
यदि नहीं करेंगी तो वह लड़का गुलाम और लड़की वहशियों की भेंट चढ़ा दी जाएगी। आपने जो हिज़ाब पहना है क्लेरिस्सा, वह तो कल उतर जाएगा, किन्तु उस नन्ही बच्ची की तो आत्मा को ही गहन अंधकार में बंदी बना दिया जाने वाला है। पश्चिमी देश का मीडिया नारी आंदोलन से बहुत प्रेरित रहा है। तालिबान संकट में हम देखते हैं कि वह नारी आंदोलन बस एक स्टेटस सिंबल बनकर रहा।
जैसे इन दिनों गेमिंग इंडस्ट्री में एक बहस इतनी अधिक बढ़ गई कि मामला न्यायालय तक पहुँच गया। एक नारीवादी संगठन को आपत्ति है कि गेमिंग उद्योग में पुरुषों का वर्चस्व क्यों है। सामान्य सी बात है कि गेमिंग का संसार पुरुषों को महिलाओं से अधिक प्रिय होता है। वें इस उद्योग में अपनी रुचि के कारण सफल होते हैं। तो पश्चिम का नारी आंदोलन ऐसे महत्वहीन विषयों के लिए सक्रिय होता है। वह अफगानिस्तान में नारी आंदोलन का एक दिखावा कर रहा है। जैसे अफगान की गर्म भाप भरी हवाओं पर वें कोई मृग मरीचिका दिखा रहे हैं।