जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने धमकी दी है कि यदि इस राज्य से धारा-35ए हटाया जाएगा, तो इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे! यानी वह भारत गणराज्य और देश के संविधान को धमकी दे रहा है! इससे पूर्व उमर अब्दुल्ला के बाप फार्रुख अब्दुल्ला ने पाकिस्तान से कहा था कि वह कश्मीर समस्या के समाधान में हस्तक्षेप करे! न केवल फार्रुख-उमर, बल्कि उनके बाप-दादा शेख अब्दुल्ला भी भारत विरोधी ही था। वह पहला व्यक्ति था, जिसने कश्मीर घाटी के अमन-चैन को छीना और इसे इस्लामी जेहाद के रास्ते पर ले गया। आज उसके वंशज कश्मीर को जेहादी रास्ते पर ले जा रहे हैं।
बता दें कि धारा-35ए के कारण कश्मीर में किसी राज्य का नागरिक न तो संपत्ति खरीद सकता है और न ही जाकर बस ही सकता है। यही कारण है कि जेहादी मुसलमानों की जनसंख्या वहां बनी हुई है और अब्दुल्ला परिवार इसे बनाए रखना चाहता है ताकि अपनी विभाजक राजनीति की दुकान सदा चलाए रखे।
कश्मीर घाटी मुसलिम बहुल है, लेकिन शेख अब्दुल्ला की सक्रियता से पूर्व वह शांत था। वहां के हिंदू-मुसलमानों के बीच के सौहार्द्र को सबसे पहले शेख अब्दुल्ला ने ही नष्ट किया। शेख अब्दुल्ला भारत विभाजन के मुख्य केंद्र अलीगढ़ मुसलिम विश्विद्यालय से 1928 में एम.एस.सी करने के उपरांत निकला था। अलीगढ़ मुसलिम विवि से जिस जहर को उसने पाया था, उसे घाटी में जाकर बोना शुरु कर दिया था। उसके पहुंचने के बाद ही कश्मीर घाटी में सबसे पहला सांप्रदायिक दंगा 1930-31 में हुआ था, जिसमें कट्टरपंथी मुसलमानों ने बड़े पैमाने पर कश्मीरी पंडितों का नरसंहार किया था।
दरअसल कश्मीर की सीमाएं सोवियत रूस, और चीन से भी मिलती है, इसलिए शेख अब्दुल्ला इस्लामी और कम्युनिस्ट विचारधारा का कॉकटेल बनाकर कश्मीर घाटी को संप्रभु देश बनाने का ख्वाब पाल रहा था, जिसमें उसे इस्लामी और कम्युनिस्ट, दोनों देशों से भरपूर मदद मिल रही थी। इसकी पूरी जानकारी संदीप देव की पुस्तक ‘कहानी कम्युनिस्टों की’ और ‘हमारे गुरुजी’ में दी है।
शेख अब्दुल्ला के विभाजनकारी और सांप्रदायिक सोच को तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने जमकर हवा दी। शेख अब्दुल्ला की पार्टी का नाम पहले ‘मुसलिम कांफ्रेंस’ था और वह पाकिस्तान के निर्माण के लिए मुसलिम लीग के पक्ष में अभियान चला रहा था। कहा जाता है कि नेहरू की सलाह पर उसने खुद को कट्टर मुसलमान की जगह प्रगतिशील कम्युनिस्ट दर्शाने का खेल रचा और सबसे पहले अपनी पार्टी ‘मुसलिम कांफ्रेंस’ का नाम बदल कर ‘नेशनल कांफ्रेंस’ कर दिया और ‘फ्रेंड्स ऑफ द सोवियत यूनियन’ मंच का सहारा लेने लगा। अब नेहरू के धर्मनिरपेक्ष और समजावादी खांचे में वह फिट बैठ चुका था। अब वह पाकिस्तान में कश्मीर के विलय की जगह स्वायत्त कश्मीर की मांग का खेल खेलने लगा और जवाहरलाल नेहरू उसे प्रश्रय देते चले गये।
शेख अब्दुल्ला ने सन् 1946 में हिंसक ‘कश्मीर छोड़ो आंदोलन’ चलाया। यह अंग्रेज सरकार के खिलाफ नहीं हिंदू राजा हरि सिंह और हिंदू जनता के खिलाफ था। जब कश्मीर रियासत के राजा हरि सिंह की पुलिस ने शेख अब्दुल्ला को गिरफ्तार किया तो नेहरू भड़क गये और जून 1946 में अब्दुल्ला के पक्ष में कश्मीर का दौरा करने के लिए निकल पड़े। महाराजा हरि सिंह ने नेहरू के कश्मीर प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया और उन्हें वहां प्रवेश करते ही गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद तो पंडित नेहरू और खुलकर अब्दुल्ला की विभाजनकारी राजनीति को प्रश्रय देने लगे। नेहरू की शह पाकर शेख अब्दुल्ला ने जो खेल खेला, उसने पूरी घाटी को सांप्रदायिक बनाकर रख दिया।
शेख के बाद उसका बेटा फार्रुख अब्दुल्ला और पोता उमर अब्दुल्ला का भी कांग्रेस से खूब याराना रहा है। इन तीनों अब्दुल्लाओं ने कश्मीर को स्वर्ग से नर्क बनाकर रख दिया है। आज उमर अब्दुल्ला धमकी दे रहा है, और उसकी वजह यह है कि धारा-35ए के समाप्त होते ही उसके खानदान और उसकी विभाजनकारी राजनीति का सदा के लिए ‘द एंड’ हो जाएगा। जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती भी इसी लिए चीख रही है। वह भी जानती है कि धारा-35ए खत्म, कश्मीर घाटी की अलगाववादी राजनीतिक जमात की राजनीति भी खत्म! मोदी सरकार केंद्र में इतनी मजबूत है। उसे यह निर्णय ले लेना चाहिए। आखिर अब वह कब निर्णय लेगी?
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