विपुल रेगे। यशोदा ज़ोमोटो पर काम करती है। पैसे की आवश्यकता उसे सरोगेट माँ बनने की राह पर ले जाती है। एक दिन एक कार आकर यशोदा को ले जाती है। बेहोश यशोदा को जब होश आता है तो वह खुद को एक ऐसी जगह पर पाती है, जहाँ माँ की कोख में पल रहा बच्चा एक ‘प्रोडक्ट’ है। कोख की इस फैक्टरी में बच्चों को अजन्मा ही मार दिया जा रहा है। इन अजन्मे बच्चों का प्लाज़्मा एक ऐसी ब्यूटी सीरम बनाने के लिए किया जा रहा है, जिसे पीने से महिलाओं युवा दिखने लगती है। यशोदा एक संदिग्ध कैरेक्टर है और फिल्म के मध्य में जबरदस्त ढंग से स्विंग मारता है।
बहुत वर्ष पूर्व एक फिल्म ‘परफ्यूम’ आई थी। इसमें एक युवा टीनएजर्स लड़कियों को मारकर उनके रक्त और मांस से एक इत्र बनाता है। इस इत्र का ऐसा जादुई प्रभाव होता है कि संपूर्ण जन समूह उसके आगे सिर झुका देता है। ‘यशोदा’ में एक युवा वैज्ञानिक इंसानी भ्रूण से ऐसा सीरम तैयार करता है, जो आयु को बांधकर रख सकता है। यशोदा की कहानी का प्लॉट ‘द आइलैंड’ से प्रेरित है।
इस हॉलीवुड फिल्म में इसी तरह लोगों का अपहरण कर एक गुप्त स्थान पर ले जाया जाता है और उनके ऑर्गन्स निकाले जाते हैं। हालाँकि ‘यशोदा’ ‘द आइलैंड’ से प्रेरित है, नकल नहीं। निर्देशक जोड़ी हरीश नारायण और के.हरि शंकर ने उस फिल्म से प्रेरित होने के बावजूद अपना ओरिजिनल प्लॉट तैयार किया है। इस एक्शन थ्रिलर की ग्रिप बड़ी मजबूत है। इसे छोड़कर मोबाइल चेक नहीं किया जा सकता। दृश्य दर दृश्य कसा हुआ है।
चुस्त एडिटिंग है। सस्पेंस आखिरी रील तक कायम रहता है। एक्शन पीठ पर तार बांधकर उड़ने वाले नहीं है। एक्शन वास्तविक हैं। एक्शन दृश्यों में आपको कोई वीएफएक्स नहीं मिलेगा लेकिन रोचकता भरपूर मिलती है। समांथा रूथ प्रभु के मजबूत कंधों ने फिल्म को ढोया है। ये एक ऑफबीट एक्शन थ्रिलर है। समांथा ने किसी पुरुष नायक की आवश्यकता महसूस नहीं होने दी है।
उनकी बड़ी-बड़ी आँखों से झरते आत्मविश्वास को देख दर्शक आश्वस्त हो जाता है कि ‘लड़की सब संभाल लेगी।’ उन्नी मुकुंदन प्रमुख खलनायक के रुप में दिखाई देते हैं। उनका किरदार काफी प्रभावी बनाया गया है। वरलक्ष्मी सरथकुमार, राव रमेश, मुरली शर्मा और संपथ राज अपनी भूमिकाओं में खरे उतरे हैं। फिल्म का क्लाइमैक्स और इसका ‘वाओ मूमेंट’ एक साथ ही घटित होता है।
इस शानदार क्लाइमेक्स के लिए निर्देशक जोड़ी प्रशंसा पाने के हकदार हैं। कोख को किराए पर देने का खेल अब बहुत आगे बढ़ चुका है और संगठित हो चुका है। इस काल्पनिक कथा के जरिये निर्देशक ये सन्देश भी देते हैं। लगभग 40 करोड़ बजट से बनी ‘यशोदा’ बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन कर रही है। ये हिन्दी पट्टी में भी अच्छा प्रदर्शन कर सकती थी लेकिन इसे पर्याप्त शो ही नहीं दिए गए।
प्राइम टाइम के स्लॉट ‘ऊंचाई’ और ‘वाकांडा फॉरएवर’ को मिल गए। ऐसे में यशोदा की हिन्दी पट्टी के कलेक्शन घट गए। यदि आप एक्शन थ्रिलर देखने के शौक़ीन है और समांथा को पसंद करते हैं तो ये फिल्म देख आइये। निराश नहीं होंगे। ‘यशोदा’ मेच्योर दर्शकों के लिए है। बच्चों को ये फिल्म नहीं देखनी चाहिए क्योकि इसमें अति हिंसा, रक्तपात और विचलित करने वाले दृश्य हैं।