विपुल रेगे। निर्देशक आदित्य सुहास जाम्भले की ‘आर्टिकल 370’ एक दस्तावेज़ी फिल्म है। ये फिल्म इस विवादित धारा के जन्म और अब तक की स्थिति को बहुत ही बेहतरीन ढंग से बयान करती है। लगभग 25-35 करोड़ बजट से बनी ‘आर्टिकल 370’ ने बॉक्स ऑफिस पर औसत शुरुआत की है। वास्तविक बैकग्राउंड में एक काल्पनिक कथा बुनी गई है। यामी गौतम की केंद्रीय भूमिका वाली ये फिल्म धीमे-धीमे दर्शकों में अपनी पैठ बना रही है। मौजूदा घटनाक्रम पर बनी इस फिल्म को दर्शकों की सराहना मिल रही है।
आर्टिकल 370
निर्देशक :आदित्य सुहास जाम्भले
कलाकार : यामी गौतम, अरुण गोविल, प्रियामणि, राज जुत्शी, वैभव तत्ववादी, किरण करमाकर
निर्माता : आदित्य धर
स्ट्रीमिंग : थियेटर
कश्मीर को पृष्ठभूमि बनाकर अब तक बहुत सी फ़िल्में बनाई जा चुकी है। उनमे से कुछ सफल रही और बहुत सी फ्लॉप के रास्ते पर चल दी। आतंकवाद, कश्मीर और पाकिस्तान पर इतनी फ़िल्में बनाई जा चुकी है कि अब इस विषय में कोई रस ही नहीं बचा। हालाँकि ‘आर्टिकल 370’ देशभक्ति के नारे वाले रास्ते से बचकर एक नया मार्ग खोज लेती है। इसका विषय धारा 370 है और ये मजबूती से अपने विषय पर केंद्रित रहती है। यामी गौतम, प्रियामणि, अरुण गोविल, ज़ुत्शी, दिव्या सेठ के स्निग्ध अभिनय से सजी ‘आर्टिकल 370’ न केवल दर्शक को एंगेज करने में कामयाब रहती है, बल्कि धारा 370 के इतिहास पर से पर्दा हटाती है। इसका बॉक्स ऑफिस भविष्य अच्छा रहने वाला है क्योंकि बजट काफी सीमित रखा गया है।
कहानी : ओपनिंग सीन राज्य सभा का है। 2019 में जब राज्य सभा में धारा 370 हटाने के लिए गृह मंत्री सदन में पेश होते हैं और हंगामा होता है। यहाँ से कहानी फ्लैशबैक में जाती है। सन 2016 में एक आईबी अधिकारी जूनी हक्सर अपने सीनियर की अनुमति लिए बिना हिज्बुल कमांडर बुरहान वानी का एनकांटर कर डालती है। एनकांटर के बाद घाटी में माहौल बुरी तरह बिगड़ जाता है। इस कार्य का प्रमोशन तो नहीं मिलता लेकिन सज़ा के तौर पर जूनी को दिल्ली भेज दिया जाता है।
दिल्ली में वह मंत्रियों के बच्चों की शादियों में विशेष लोगों को सुरक्षा उपलब्ध कराती है। घटनाक्रम बदलता है और जूनी को पीएमओ से बुलावा आता है। सेक्रेटरी राजेश्वरी स्वामीनाथन 370 को निरस्त करने के कार्यान्वयन से पूर्व जूनी को पुनः कश्मीर में नियुक्त करती है। इधर जूनी और उसकी टीम कश्मीर में अलगाववादियों पर नियंत्रण करते हैं और उधर संसद में आर्टिकल 370 को निरस्त करने की कार्रवाई गृहमंत्री द्वारा शुरु की जाती है।
अभिनय : यामी गौतम ने एक आईबी अधिकारी के रूप में बहुत सुंदर अभिनय का प्रदर्शन किया है। वे बड़ी ही विश्वसनीयता के साथ केंद्रीय भूमिका निभा ले गई हैं। यामी के हिस्से बड़े ही लाजवाब संवाद आए हैं। इन संवादों को यामी ने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ डिलीवर किया है। वे अपने कई दृश्यों में भावुकता को इतने गहरे निभाती हैं कि दर्शक भी रो देते हैं।
दूसरे नंबर पर यहाँ आते हैं अरुण गोविल। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका पहले भी और कलाकारों ने निभाई लेकिन अरुण गोविल कमाल कर देते हैं। वे प्रधानमंत्री को कॉपी करने की कोशिश नहीं करते। अरुण ने इस किरदार में बहुत शानदार अंडरप्ले किया है। इसके बाद आती हैं प्रियामणि।
राजेश्वरी स्वामीनाथन की भूमिका को बड़ी ही प्रमाणिकता के साथ निभाया है। एक पीएमओ अधिकारी का ठसका उनके इस किरदार में दिखाई देता है। अलगाववादी नेता के रुप में राज जुत्शी ने स्वाभाविक अभिनय किया है। वे बड़े दिनों बाद बड़े परदे पर दिखाई दिए हैं। किरण कर्माकर ने गृहमंत्री अमित शाह का किरदार सुंदरता के साथ निभाया है। उन्होंने भी बेवजह अमित शाह की कॉपी करने के फेर में किरदार को नहीं बिगाड़ा।
निर्देशन : आदित्य सुहास जाम्भले का निर्देशन मैच्योर है। उन्होंने मैच्योरिटी के साथ इस विषय को हैंडल किया है। एक और बात नोटिस करने योग्य है। फिल्म में कहीं भी, एक बार भी नरेंद्र मोदी और अमित शाह का नाम नहीं आया है। उन्हें फिल्म में प्रधानमंत्री और गृहमंत्री कहकर ही संबोधित किया जाता है। फिल्म एक व्यक्ति को हीरो बनाने के चक्कर में भी नहीं दिखती।
प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के किरदार सीमित समय के लिए परदे पर आते हैं और उनके दृश्य सिचुएशन के हिसाब से डाले गए हैं। इसे देखते हुए दर्शक आर्टिकल 370 के बारे में गहराई से जान पाता है। फिल्म को मनोरंजक बनाने के लिए काल्पनिक पात्र और दृश्य डाले गए हैं। यदि मनोरंजन का गोंद न हो तो दर्शक सीट पर चिपकेगा कैसे ?
आदित्य का सरस निर्देशन दर्शक को कुर्सी से चिपकाए रखता है। एक्शन दृश्यों में नवीनता दिखाई देती है। यामी गौतम और वैभव तत्ववादी के एक्शन दृश्य बहुत अच्छे ढंग से फिल्माए गए हैं। कुल मिलाकर कम बजट की ये फिल्म टिकट खिड़की पर सेफ दिखाई देती है। इसके कलेक्शन की गति काफी धीमी है।
आर्टिकल 370 कागजों पर तो हटा दिया गया लेकिन आज भी वहां जाकर हमारे मोबाइल का सिम कार्ड काम नहीं करता। ये सच है कि अब भी कश्मीर में बहुत समस्याएं हैं। ये फिल्म इसलिए देखी जानी चाहिए कि दर्शक आर्टिकल 370 का इतिहास और सत्य जान सके। ये दर्शक को एजुकेट करने वाली फिल्म है और अवतारवाद से कोसो दूर है। ये इसकी सबसे बढ़िया बात है। फिल्म में कोई आपत्तिजनक दृश्य नहीं है और अधिक खून-खच्चर भी नहीं है। इस वीकेंड ये फिल्म देखी जा सकती है।